शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। 20 वें महिन्द्रा एक्सीलेंस इन थियेटर अवॉर्ड (META) के पहले दिन नाटक ‘चंदा बेड़नी’ का मंचन हुआ। इस नाटक के मंचन के साथ ही, ‘मेटा’ के मंच पर टॉप 10 ड्रामा शोज़ की जंग भी शुरू हो गई है। 20 मार्च को उत्कृष्ट रंगमंच के विभिन्न आयामों के लिये श्रेष्ठ नाटक और कलाकार पुरस्कार के पात्र होंगे। तब तक 367 नाटकों में से नामांकित शीर्ष नाटकों के मंचन का सिलसिला दिल्ली के कमानी ऑडिटोरियम और श्रीराम सेंटर में जारी रहेगा। इसके लिये जूरी ने प्रदर्शनों को ‘रंग’ कला के पैमानों पर कसना शुरू कर दिया है। जूरी में दादी पुदुमजी, सुधीर मिश्रा, लिलेट दुबे, ब्रूस गथरी और सुनीत टंडन जैसी रंगमंच हस्तियां शामिल हैं। कमानी में फेस्टिवल की औपचारिक शुरूआत: ‘चंदा बेड़नी’ के मंचन से पहले मेटा के थियेटर अवॉर्ड फेस्टिवल की औपचारिक शुरूआत हुई। कमानी ऑडिटोरियम में अतिथियों और दर्शकों का पारंपरिक बैंड और मेहमाननवाज़ी से स्वागत हुआ। सभागार में मेटा फेस्टिवल के शुभारंभ की घोषणा सीनियर वाइस प्रेसिडेंट, फेस्टिवल और प्रॉडक्शन के प्रमुख सूरज धींगड़ा ने की। उन्होंने फेस्टिवल के बदलते स्वरूप की जानकारी दी, साथ ही कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की कमान भी संभाली। इसके बाद ही नाटकों के चयन को लेकर सेलेक्शन कमेटी से जुड़ी फिल्म और फिर सभी नामांकित नाटकों की शॉर्ट फिल्म दिखाई गई। फिल्म के माध्यम से दर्शकों को नाटकों का प्रारंभिक परिचय दिया गया। बताया गया कि कौन सा नाटक पुरस्कार की किस श्रेणी की दौड़ में है।
दो नये नाटकों का हुआ विमोचन: इसके बाद वाणी प्रकाशन समूह की ओर से दो नाटकों ‘हुंकारो और ऑफ दि रिकॉर्ड’ के विमोचन की रस्म अदा की गई। वीणा प्रकाशन के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अरूण माहेश्वरी ने नाटकों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ‘मेटा के साथ प्रकाशन की यह यात्रा 2021 में शुरू हुई थी। अब तक पहले नाटक ‘अगरबत्ती’ के साथ ही हम कुल 3 नाटकों का प्रकाशन कर चुके हैं’।
महिन्द्रा ग्रुप के प्रयासों की प्रशंसा: श्री माहेश्वरी ने रंगकर्म के लिये महिन्द्रा ग्रुप के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, ‘महिन्द्रा ग्रुप नई पीढ़ी के साथ रंगमंच का एक नया मुहावरा रच रहा है। इसके लिये ख़ासतौर पर सर्वश्री शाह और रॉय, दोनों ही बधाई के पात्र हैं’। वहीं नाटक के लेखकों क्रमश: ध्वनि और कृतिका (फॉर दि रिकॉर्ड), चिराग खंडेलवाल और अभय (हुंकारो) ने नाट्य लेखन की प्रक्रिया के साथ ही अपनी नई ज़िम्मेदारी के अहसास की बात कही।
स्व. रवि दुबे के योगदान की आई याद: महिन्द्रा एंड महिन्द्रा समूह के वाइस प्रेसिडेंट और कल्चरल आउटरीच के हेड जय शाह ने अपने सम्बोधन में कहा, ‘बीसवें मेटा के आयोजन में आप दर्शकों का स्वागत बेहद ख़ुशी की बात है। उन्होंने इस आयोजन की कल्पना के पीछे, रंगकर्म गहरा लगाव रखने वाले थियेटर एक्टिविस्ट स्व. रवि दुबे और उनके योगदान याद किया। श्री शाह ने कहा, ‘हम इस रंग आंदोलन के लिये उनका भी शुक्रिया अदा करते हैं, जो इस यात्रा का हिस्सा बने और जिन्होंने हमें प्रोत्साहित किया। आज बीसवें मोड़ के अपने इस सफर में हम अपने ड्रामा प्रॉडक्शन्स तक आ पहुँचे हैं। हमारे समूह की तरह हमारी एक ही दृष्य और लक्ष्य है कि हम अपने मूल्यों के साथ आगे बढ़ें’। उन्होंने कहा, चयन समिति ने जो 10 बेहतरीन नाटक चुने है, विश्वास है, वह आप सभी को अच्छे लगेंगे। आपके साथ, मैं खुद भी यह देखने के लिये उत्साहित हूँ’।
20 साल पहले, 20 साल बाद: टीम आर्टवर्क के निदेशक संजय के. रॉय ने भी अपने सम्बोधन में रवि दुबे को याद किया। उन्होंने कहा, पहली बार वो ही आनंद महिन्द्रा जी के पास अपना प्रस्ताव लेकर गये थे। उनका सपना था कि क्यों ना हम सिने अवॉर्ड्स की तरह थियेटर अवॉर्ड्स की शुरूआत करें। आज इस स्वप्न को साकार हुए 20 साल गुज़र गये हैं। कहने को यह 20 साल पहले या 20 साल बाद जैसी किसी हिन्दी मूवी का टाइटल सा लगता है, मगर हक़ीक़त में ये सपना पूरा हुआ है। उन्होंने कहा, सेंट स्टीफ़न के दौर में हम ऑफ वेस्टर्न या ऑफ़ ब्रॉडवे प्लेज़ करते थे। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरू के थियेटर से परिचित थे। मगर मेटा के मंच पर आज भारत भर के थियेटर ग्रुप्स के नाटक आ रहे हैं। हमारी सेलेक्शन कमेटी के साथी मानते हैं कि सच में मेटा ने कितना बडा काम कर दिखाया है। हर साल हम नये निर्माणों को सहयोग और समर्थन दे रहे हैं’।
अभाव और संघर्ष के बीच रंगकर्म: श्री रॉय ने कहा, थियेटर ग्रुप्स बेहद अभावों में काम कर रहे हैं। उनके पास ना पैसे हैं, ना सहयोग है, ना पॉलिसी, ना परमिशन। सरकार तो छोड़िये, समाज भी कलाकारों की अभिव्यक्ति के खिलाफ़ खड़ा है। मतलब यह बात सिर्फ पैसों भर की नहीं, जुनून के ज़िंदा रहने की है। मेटा दोनों ही तरह से कलाकारों के साथ खड़ा है। मेटा के लिये ये दोनों ही बातें महत्वपूर्ण हैं। आख़िर एक कलाकार को क्यों न उसकी मेहनत का प्रतिफल मिले। जब दूसरे बढ़िया कार खरीद सकते हैं। बढ़िया स्कूल में बच्चों को भेज सकते हैं। तब कलाकार ऐसा क्यों नहीं कर सकते। हम समझते हैं कि मेटा ने 20 साल के सफर में अपने काम से बहुतों को प्रेरित किया है। 20 साल बाद हम कह सकते हैं, हां कुछ है जिसका जश्न मनाना चाहिये…हां, रंगमंच की विरासत के जिंदा रहने और आगे बढ़ने की ज़मीन अब तैयार है’।
एक नर्तकी वेश्या ‘चंदा’ की कहानी: पहले दिन कोलकाता के ‘रंगकर्मी’ समूह ने नाटक ‘चंदा बेड़नी’ का मंचन किया। स्व. अलखनंदन के लिखे इस नाटक का निर्देशन अनिरूद्ध सरकार ने किया है। यह नाटक बेड़नी जनजाति की एक नर्तकी वेश्या ‘चंदा’ की कहानी है, जिससे एक ब्राह्मन युवक लखन को प्यार हो जाता है।
जातिवाद के प्रपंच में उलझा समाज: चंदा और लखन के प्रेम के बहाने नाटक, समाज के उस कुरूप चेहरे से परदा उठाता है, जो जातिवाद के प्रपंचों में उलझा है। अंत में जो चंदा बेड़नी, राजा के पुत्र को बचाने के लिये, हवा में झूलती एक रस्सी पर नृत्य का अनुष्ठान करती है। उसे नृत्य के बीच में ही षडयंत्र से रस्सी को काटकर मार दिया जाता है। इस षडयंत्र का शिकार एक ईमानदार और मेहनती बुज़ुर्ग सुखिया मोची भी होता है। वह भी मृत्यु दंड का पात्र बन जाता है।
बेड़नी जनजाति के जीवन की व्यथा-कथा: इस सशक्त कथा के साथ ही यह नाटक ,बेड़नी जनजाति के जीवन की व्यथा कथा को भी उजागर करता है। नाटक का एक मार्मिक संवाद दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है -‘देखा आप सब ने, ऐसी है हमाई बिरादरी, हमाई दुनिया। जहां मदद करने जो सामने आये, उसई के जीवन की रस्सी, कटवा दी जाती है’! करीब 35 कलाकारों का ऊर्जा से भरा अभिनय और लोक संगीत इस नाटक की खूबी रही। साथ ही व्यंग्य बाण चलाते इसके चुटीले संवाद भी।
बेड़नी जनजाति के जीवन की झलक: मंच पर यह नाटक बेड़नी जनजाति और उनकी कला संस्कृति की भी झलक पेश करता है। दर्शक उत्तर प्रदेश के दक्षिणी और मध्य प्रदेश के उत्तरी हिस्सों में बोली जाने वाली बुंदेलखंडी बोली और लोक परंपराओं के भी साक्षी बनते हैं। नाटक में ओम तिवारी (साधु), रंजनी घोष (चंदा), अंकित शर्मा (लखन), शुभम (ढिंढोरची), मनोसीज़ विश्वास (राजा), सुभाष बिसवास (सुखिया मोची) जैसे कलाकार अपने अभिनय से याद रह जाते हैं।
कमियों के बावजूद पसंद किया गया नाटक: 1 घंटे 40 मिनट की अवधि वाले इस नाटक को दर्शकों ने पसंद किया। यद्दपि नाटक में कुछ दृश्यों में औघड़ संगीत और अभिनय में अतिरेक की वजह से अपना प्रभाव कम करता है। फिर भी कोलकाता के कलाकारों ने जिस तरह से इस नाटक को मंच पर जीवंत किया, यह उनके श्रमसाध्य रंगकर्म को ही दर्शाता है। बेशक इस नाटक को देखते हुए इसके लेखक और अपने दौर के बेहतरीन नाट्य निर्देशक स्व. अलखनंदन की प्रस्तुति बरबस याद आती है। इसी तरह से भानु भारती का निर्माण भी। इसके अलावा कई मंचों ने इस नाटक को प्रस्तुत किया है। आगे पढ़िये – अभिनव राष्ट्रीय नाट्य समारोह में दिये जायेंगे दो कला सम्मान https://indorestudio.com/20546-2-abhinav-rashtriya-samman/