डॉ.विवेक गावड़े, इंदौर स्टूडियो। वयोवृद्ध वायलिन वादक और छह डिग्रियों को हासिल करने वाले 82 साल के शरद कुमार निगम ने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ को 50 रागों में स्वरबद्ध करने का अभूतपूर्व काम किया है। उनकी इन संगीत रचनाओं को शास्त्रीय गायिका डॉ. अपराजिता सिन्हा ने अपनी आवाज़ दी है। सभी 50 धुनों की जबलपुर में मौजूद राजेश पिल्लई के स्टूडियो में रिकॉर्डिंग की गई है, जो अब अंतिम चरण में है। राग भैरवी में पहले बनाई थी धुन: यह पूछने पर कि 50 रागों में वंदे मातरम् का खयाल कब आया, शरद जी ने बताया – ‘करीब पचास साल पहले 1973 में मैंने राग भैरवी में ‘वंदे मातरम्’ की धुन बनाई थी जो कि संगीत कार्यालय, हाथरस की पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। यह गीत बंकिमचंद्र चटोपाध्याय जी ने 1875 में लिखा था। सौ साल पूरे होने पर 1975 में इसका काशी में शताब्दी समारोह मनाया गया था। उसकी स्मारिका में भी मेरी यही स्वर लिपी छपी थी। जब आज़ादी के अमृत महोत्सव की प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की, उसके बाद मैंने भी इस अवसर पर कुछ हटकर करने के बारे में सोचा। तब मुझे विचार आया कि क्यों न मैं वंदे मातरम को राग भैरवी की तरह ही अलग-अलग रागों में निबद्ध करने का काम शुरू करूँ। इस तरह मैंने विभिन्न रागों में पचास धुनों की स्वर लिपी तैयार की।
धीरे-धीरे कई प्रमुख राग जुड़ते गये: वंदे मातरम् के लिये मैंने राग भैरवी के अलावा यमन, भूपाली, दुर्गा, भीमपलासी, सारंग, मल्हार, बहार, दरबारी जैसे रागों का उपयोग किया है। स्वर लिपियां तैयार होने के बाद हमने अच्छे गायकों की खोज शुरू की। आख़िर जबलपुर की शास्त्रीय गायिका श्रीमति डॉ. अपराजिता सिन्हा ने इन रागों में वंदे मातरम् गाने की स्वीकृति दी। उनकी आवाज में ‘वन्दे मातरम्’ की 50 धुनों की रिकॉर्डिंग का काम जबलपुर में राजेश पिल्लई के स्टूडियो में शुरू हुआ जो अब पूर्णता की ओर है।
निरंतर अध्ययन का नतीजा 6 डिग्रियां: एक और विशेष बात शरद जी के अध्ययन और अध्यापन से जुड़ी है। आपने निरंतर अध्ययन को लक्ष्य बनाकर छह डिग्रियां हासिल की। ये डिग्रियां भी एक उपलब्धि है। इस विषय में शरद कुमार निगम ने कहा – ‘1957 में मैट्रिक यानी दसवीं बोर्ड की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद से ही अध्ययन और शिक्षा का काम जारी रहा। मैट्रिक के बाद इंटर मीडियेट (11वीं-12वीं) धार से, 1964 में भोपाल से बीएसएस की डिग्री हासिल की। ग्रेजुएट होने के बाद ही मैं सेंधवा में टीचर बन गया। इसके बाद सन् 1970 में देवास से बीएड किया।
संगीत के लिये पढ़ाई निरंतर जारी रही: शरद जी ने कहा-‘संगीत में भी रूचि थी इसलिये मैंने 1972 में वॉयलिन में बी म्यूज की शिक्षा पूरी की। इसके बाद 1974 में अर्थशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन की परीक्षा में सफलता हासिल की। इस तरह साइंस ग्रेजुएट होते हुए भी मैंने इकॉनॉमिक्स में लेक्चरर बनने की योग्यता हासिल कर ली। इसके बाद भी मैंने अपनी शिक्षा जारी रखी। जब मुझे एमएससी के समकक्ष पीजीडी कोर्स की जानकारी मिली। तब मैंने भौतिक शास्त्र में यह परीक्षा पास कर ली। मेरी शिक्षा का लाभ मुझे नौकरी में मिला। पदों में वृद्धि हुई। अंत में मैं खरगोन ज़िले में प्रिसिंपल के पद पर पदोन्नत हुआ और 4 साल सेवारत रहने के बाद रिटायर हो गया। चूँकि शिक्षा के क्षेत्र में रहते हुए मैं संगीत साधना को आगे नहीं बढ़ा पा रहा था। इसलिये सेवानिवृत होने के बाद जब समय मिला, तब मैं एम म्यूज़ की शिक्षा हासिल करने के लिये कोशिश करने लगा। 2016 में मुझे राजा मानसिंह विश्व विद्यालय, ग्वालियर से इस शिक्षा को पूरा करने में सफलता मिली, मैं संगीत कला रत्न की परीक्षा में पास हो गया। इस तरह मेरी छह डिग्रियां पूरी हुईं। (डॉ विवेक गावड़े, कला समीक्षक और म्यूज़िक थेरेपिस्ट हैं। वर्ल्ड पार्लियामेंट मेंबर के साथ ही इंडिया बुक ऑफ रेकॉर्ड होल्डर हैं।) आगे पढ़िये-
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