रवीन्द्र त्रिपाठी, इंदौर स्टूडियो। 71 साल पुराना नाटक ‘आगरा बाज़ार’ न सिर्फ़ हिंदी का बल्कि भारतीय नाट्य जगत की धरोहर बन गया है। भारत सरकार को चाहिए कि इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित करना चाहिये। ताकि इस नाटक के आगे भी मंचन सुगमता से होते रहें। ‘भारंगम 25’ में जब नाट्य प्रेमियों ने ‘आगरा बाज़ार’ देखा तो सबके मन में संतुष्टी का भाव उठा कि यह नाटक अपना पुराना जादू आज भी बरकरार रखे हुए है। हबीब साहब के सहयोगी रामचंद्र सिंह अब `नया थिएटर’ के निदेशक है।`आगरा बाज़ार’ पर निर्देशकीय नियंत्रण उनका ही है, हालांकि निर्देशक के बतौर नाम हबीब तनवीर का ही जाता है।1954 में पहली बार हुआ मंचित : ये नाटक पहली बार 1954 में खेला गया था। उस हिसाब से इसके 71 साल हो चुके हैं। कह सकते हैं कि यह हिंदी के सबसे दीर्घजीवी नाटकों में से एक है। चार साल बाद ये पचहत्तर साल का हो जाएगा। प्लैटिनम जुबली की ओर। ‘आगरा बाज़ार’ एक जादू है। इसका जादू इस बार भी कमानी सभागार में दिखा। और इस जादू में किसी तरह की हाथ की सफाई नहीं है। किसी तरह की भव्यता नहीं है। पर इसमें साधारणता का सौंदर्य है।
नज़ीर के जीवन पर आधारित नाटक: ये नाटक उर्दू के लोकप्रिय शायर नज़ीर अकबराबादी (1735 – 1830) के जीवन और साहित्य पर केंद्रित है। ये नज़ीर की शख़्सियत का बखान है। पर साथ ही ये हबीब तनवीर की महिमा का बखान भी है। नज़ीर अकबराबादी के बारे में उर्दू के लोग जानते हैं उन्होंने सामान्य लोगों पर शायरी लिखी, ककड़ी, तरबूजों और लड्डू पर लिखी, होली पर नज़्म कही। आदमी की महानता पर लिखा।
नज़ीर को शुरू में स्वीकार नहीं किया गया: जैसा कि हर साहित्यिक दुनिया में होता है – एक काव्य शास्त्र विकसित होता है और अच्छी कविता क्या है इसके लक्षण निर्धारित कर दिए जाते हैं। नज़ीर अकबराबादी के समय़ भी ऐसा था औऱ तबके उर्दू अदब के लोगों के बीच मीर तकी मीर और जौक का शायरी को ऊंचा दर्जा दिया जाता था। जब नज़ीर उर्दू साहित्य जगत में आए तो शुरू में लोगों ने उनको स्वीकार नहीं किया। हिकारत की नज़र से देखा। भला ककड़ी या लड्डू पर शायरी लिखने वाला एक बड़ा शायर कैसे माना जा सकता है? लेकिन नज़ीर आगे चलकर एक बड़े शायर के रूप में पहचाने और सराहे गए। और उनकी शायरी के सौंदर्यशास्त्र को भी सराहा गया।नज़ीर की शायरी पर आम ज़ुबान में बहस:`आगरा बाज़ार’ एक काव्य शास्त्रीय बहस भी है। पर शास्त्रीय शब्दावली में नहीं। आम लोगों की ज़ुबान में। जिस शायर या कवि को आम लोग पसंद करें, उसकी शायरी को अपने रोजमर्रा के जीवन में ढाल लें, वो भी एक बड़ा शायर है। इस नाटक में यही कहा गया है। इसमें एक ककड़ी बेचने वाला चाहता है कि कोई उसकी ककड़ियों पर शायरी लिख दे। फिर उसकी ककड़ी बिकने लगेगी। पर एक साधारण दुकानदार की ये ख्वाहिश कौन पूरा करे? शहर के नामचीन शायरों को इसे तरह की मांग पसंद नहीं। लेकिन जब वो नज़ीर के पास जाता है वो लिख देते हैं। और भी लोगों के लिए लिख देते हैं जो बाज़ार में अपने सामान बेचना चाहते हैं।
आम लोगों को भी कविता से लगाव: कविता के प्रेमी सौदर्य के रसिक होते हैं। उनको लगता है कि आम लोग कविता का क्या समझेंगे। लेकिन हकीकत ये है आम लोगों में भी कविता के लिए लगाव होता है। पर वे अपने रोज़मर्रा की जिंदगी के दायरे में कविता या कला को समझना चाहते हैं। उनकी कविता से मांगें होती हैं। जो कविता ये मांग पूरी कर दे वो उनको अपनी और अच्छी लगने लगती है। इस तरह `आगरा बाज़ार’ कविता की एक परिभाषा पेश करता है। ये परिभाषा अकादमिक नहीं है, विद्वानों की भाषा में नहीं है, लेकिन एक मुकम्मल परिभाषा है। हिंदी में नागार्जुन जैसे कवियों की रचनाएं काव्य शास्त्रीय मानंदडों से बाहर जाकर लिखी गईं और फिर आरंभिक उपेक्षा के बाद सर्व स्वीकृत हुईं।
बड़ा नाटक आम किरदारों पर भी हो सकता है: हबीब और नज़ीर नाटक की दुनिया में हबीब तनवीर ने वही काम किया जो कविता या शायरी की दुनिया में नज़ीर अकबराबादी ने किय़ा। `आगरा बाज़ार’नाटक में ये शुरू से अंत तक दिखता है कि बड़ा नाटक किसी धीरोदात्त या धीरललित नाटकों के इर्द-गिर्द ही नहीं लिखा जाता। नाटक उस मदारी और उसके बंदरों के बारे में भी हो सकता है जो दो पैसे के लिए किसी चौराहे पर रखकर खेल दिखाता है और फिर कुछ ताकतवर लोगों द्वारा दुत्कारा और भगाया भी जाता है। ये उस असफल प्रेमी के बारे में भी हो सकता है जो अब बोलना बंद कर चुका है। नाटक में वे उभयलिंगी भी किरदार हो सकते हैं जो अपने जीवन में कभी सम्मान नहीं पाते। हालांकि अब हम उस दौर में पहुंच गए हैं जब उभयलिंगियों पर फिल्में और वेब सीरीज बन रही है। लेकिन जब `आगरा बाज़ार’ तैयार हो रहा था (ये कई चरणों में बना) तब ऐसी स्थिति नहीं थी।
‘आगरा बाज़ार’ अपने में क्लासिक नाटक: ये हबीब तनवीर की ही महिमा है अति साधारण लोग मंच पर आए और अब दूसरे नाटकों में भी आ रहे हैं। इसी कारण ये नाटक अपने में क्लासिक बन गया है। नाट्यालेख के रूप में भी और नाट्य-प्रस्तुति के रूप में भी। हबीब तनवीर की प्रतिष्ठा एक नाट्य निर्देशक के रूप में है लेकिन वे नाटककार भी थे। `आगरा बाज़ार’ भी इसका एक उदाहरण है और `चरणदास चोर’ भी। उनके दूसरे नाटक भी।
`आगरा बाज़ार’ नाटक एक विरासत: बतौर नाट्य प्रस्तुति `आगरा बाज़ार’ एक विरासत है। जिसे अंग्रेजी में `इनटैंजिबल’ धरोहर कहते हैं। बे-ठोस विरासत। ये सिर्फ हिंदी की धरोहर नहीं बल्कि भारतीय नाट्य जगत की धरोहर है। भारत सरकार को चाहिए कि इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे। इसका व्यावहारिक अर्थ ये होगा कि इसका लगातार मंचन होता रहे, इसकी व्यवस्था की जाए। (लेखक रवींद्र त्रिपाठी जाने-पहचाने पत्रकार होने के साथ ही, प्रख्यात फिल्म और कला समीक्षक, फिल्ममेकर और नाटककार हैं। सौजन्य: सत्य हिन्दी डॉट कॉम।) आगे पढ़िये – महिंद्रा थियेटर अवॉर्ड्स 2025 के लिये चयनित 10 नाटक कौन से? https://indorestudio.com/mahindra-theatre-awards-2025/