अजित राय, इंदौर स्टूडियो। अकेलेपन से लड़ती दो औरतों की कहानी है ‘ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट’। 77 वें कान फिल्मोत्सव में पायल कपाड़िया की इस फिल्म का शानदार प्रीमियर हुआ। यह फ़िल्म ग्रैंड थियेटर लूमिएर में दिखाई गई। दर्शकों ने काफी देर तक तालियां बजाकर फिल्म का स्वागत किया। पायल कपाड़िया और उनकी टीम को गाजे-बाजे के साथ भव्य सेरेमोनियल रेड कार्पेट दी गई। कान फिल्म फेस्टिवल के निर्देशक थेरी फ्रेमों ने हाथ बढ़ाकर स्वागत किया। मुंबई में नर्स का काम करने वाली औरतें: कान फिल्म समारोह में उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस भी हुई जिसमें उन्होंने फिल्म की निर्माण प्रक्रिया पर बातें की। यह फिल्म मुंबई में नर्स का काम करने वाली केरल की दो औरतों प्रभा और अनु की कहानी है जो एक रूम किचन (वनआरके) साझा करती हैं। फिल्म में मुख्य भूमिकाएं कनी कस्तूरी, दिव्य प्रभा, छाया कदम, हृधुर हारून आदि ने निभाई है। दो औरतों का बेजोड़ बहनापा: फिल्म में सुदूर केरल से नर्स की नौकरी करने मुंबई आई दो औरतों का बहनापा बेजोड़ है। एक छोटे से कमरे में दोनों की साझी गतिविधियां एक भरा पूरा संसार रचती है। बड़ी नर्स प्रभा जब तक कुछ समझ पाती, उसके घरवालों ने उसकी शादी कर दी। शादी के तुरंत बाद ही उसका पति जर्मनी चला गया और उसने प्रभा की कभी खोज-खबर नहीं ली। प्रभा को इंतज़ार है और उम्मीद भी कि एक दिन उसका पति वापस लौटेगा। इस बीच अस्पताल का एक मलयाली डॉक्टर उसकी ओर आकर्षित होता है पर प्रभा इनकार कर देती हैं। जब आता है जर्मना से एक पार्सल: दोनों औरतें चौक जाती हैं जब एक दिन जर्मनी से एक पार्सल आता है। जाहिर है प्रभा के पति ने उसे सालों बाद कोई उपहार भेजा है। छोटी नर्स अनु केरल से मुंबई आए एक मुस्लिम लड़के शियाज से प्रेम में पड़ जाती है। वह इस भीड़ भरे शहर में उससे मिलने का एकांत खोजती रहती है। एक दूसरी अधेड़ औरत को बिल्डर ने धोखा दे दिया है। उसके पति के मरने के बाद उसके पास पैसे जमा कराने का कोई कागजी सबूत नहीं है।रणबीर का बेहद उम्दा छायांकन: रणबीर दास का छायांकन बहुत उम्दा है और अपने फोकस से कभी भटकता नहीं है। मुंबई की भीड़,आसमान, बादल, बारिश, हवा और समुद्र के साथ इस पास की आवाजें भी रणबीर दास के कैमरे से होकर जैसे फिल्म के असंख्य चरित्रों में बदल जाते हैं। रणबीर दास का कैमरा मुंबई की भीड़ में अपने चरित्रों के इर्द-गिर्द ही फोकस रहता है। सब्जी मंडी से शुरू करके लोकल रेलवे की आवा-जाही, रेलवे स्टेशन की भीड़ में आना जाना, भीड़ भरी सड़कों से गुजरना, छोटी सी रसोई में मछली तलना और बाथरूम में कपड़े धोना, बिस्तर पर सोते हुए शून्य को निहारना, यानी ये सब हम महसूस कर सकते हैं।अकेलापन कभी पीछा नहीं छोड़ता: मुंबई में साथ रहते हुए भी अकेलापन कभी पीछा नहीं छोड़ता। पायल कपाड़िया ने फिल्म की गति को धीमा रखा है जिससे छवियां और दृश्य दर्शकों के दिलो-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ सकें। प्रकट हिंसा कहीं भी नहीं है पर जीवन में मैल की तरह जम चुके दुःख की चादर पूरे माहौल में फैली हुई है। एक दृश्य में अनु घर की खिड़की से बादलों के जरिए अपने प्रेमी को चुंबन भेजती हैं। दूसरे दृश्य में वह अपने प्रेमी के घर जाने के लिए काला बुर्का खरीदती है। आधे रास्ते में उसके प्रेमी का मैसेज आता है कि घरवालों का शादी में जाने का प्रोग्राम कैंसल हो गया। अनु की निराशा समझी जा सकती है। पर प्रेम तो आखिर प्रेम है जो सिनेमा से बाहर जीवन में होता है।अधेड़ औरत के साथ घूमने का प्रोग्राम: प्रभा और अनु धोखा खाने वाली अधेड़ औरत के साथ मुंबई से बाहर एक समुद्री शहर में घूमने का प्रोग्राम बनाती है। अनु अपने प्रेमी को भी बुला लेती है कि उसे उसके साथ अंतरंग समय बिताने का मौका मिलेगा। एक दोपहर समुद्र किनारे एक बेहोश आदमी पड़ा मिलता है। नियति इन औरतों के जीवन से रोशनी को लगातार दूर ले जा रही है। प्रभा अनु से कहती भी है कि मुंबई मायानगरी है, माया पर जो विश्वास नहीं करेगा, वह यहां पागल हो जाएगा। इतने बड़े शहर में दो औरतें साथ-साथ रोशनी की चाहत में हैं जबकि उनके चारों ओर अंधेरा बढ़ता जा रहा है। (अजित राय प्रख्यात फिल्म और कला समीक्षक हैं। दुनिया के प्रमुख फिल्म उत्सवों को वर्षों से कवर कर रहे हैं। साथ ही एक रचनात्मक व्यक्तित्व के रूप में कला के विविध क्षेत्रों में अपना विशिष्ट योगदान दे रहे हैं।) आगे पढ़िये – https://indorestudio.com/cannes-film-festival-me-manthan/