‘अलवर रंगम्’ से होगा देश में अलवर का नाम- डॉ.देशराज मीणा

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शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। ‘मैं चाहता हूँ “अलवर रंगम्” के माध्यम से पूरे हिन्दुस्तान में हमारे शहर अलवर का नाम हो। लोगों को पता चल सके कि केवल दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में ही नाटकों के बड़े उत्सव नहीं हो सकते,अलवर जैसे छोटे शहर में भी हो सकते हैं। इसी उद्देश्य के साथ ‘अलवर रंगम् नाट्य महोत्सव’ का संकल्प हम साथियों ने लिया है। आयोजन को गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कराने की कोशिश है’।
पहले रंगम् से बढ़ा उत्साह: यह बात ‘रंग संस्कार थियेटर ग्रुप’ के निदेशक डॉ. देशराज मीणा ने कही। वे अपने ग्रुप के माध्यम से अलवर में 75 दिवसीय नाट्य महोत्सव आयोजित करने जा रहे हैं। 13 जनवरी से शुरू हो रहे इस उत्सव में 75 दिनों तक 75 नाटकों के मंचन होंगे। इसमें हिन्दी नाटकों के 63 और सात बंगाली, दो मराठी और एक-एक उड़िया, संस्कृत और उर्दू नाटकों के प्रदर्शन होंगे।डॉ. मीणा पिछले साल मार्च में भी 27 दिनों का ऐसा ही उत्सव कर चुके हैं। उस उत्सव से मिली प्रतिक्रियाओं और शहर को मिली नई पहचान से प्रोत्साहित होकर उन्होंने इस साल पूरे 75 दिन तक ‘अलवर रंगम्’ को आयोजित करने का फैसला किया। डॉ. मीणा ने बताया, दरअसल पिछले साल का अलवर रंगम् 37 दिनों का हुआ था। 27 दिन तक यह आयोजन अलवर में हुआ और बाकी के दस दिन तक अलवर से 10 किलोमीटर दूर हाजीपुर डढीकर में हुआ। इस तरह पहला रंगम् 37 दिन तक निरंतर चलने वाला नाट्य उत्सव था।
( डॉ. देशराज मीणा के निर्देशन में मंचित नाटक ‘गुड बाय स्वामी’ के कलाकार)
75 दिन बिना रूके होंगे 75 नाटकडॉ. मीणा ने कहा, ‘मेरे साथ प्रबंधन के लिये मेरे कलाकार साथियों की एक अच्छी टीम है और हम सब इस काम में पूरी लगन से जुटे हैं। ताकि यह कार्यक्रम सफल हो सके’। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि 75 दिन के इस आयोजन में कुछ नाट्य दल अपनी प्रस्तुति नहीं दे पायेंगे और उन्होंने फेस्टिवल में आने से मना कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘फिलहाल ऐसी स्थिति नहीं है। सभी दल अपने नाटक लेकर यहाँ पर आ रहे हैं। कार्यक्रम पहले से तय हो चुका है। अलबत्ता जो लोग घोषणा के बाद अब नाट्य उत्सव में शामिल किये जाने का आग्रह कर रहे हैं, उन्हें आयोजन में शामिल कर पाना हमारे लिये मुश्किल होगा’।
(डॉ. देशराज मीणा निर्देशित रंग संस्कार थियेटर की प्रस्तुति ‘उसके इंतज़ार में’।)रंगबाज़ और मत्स्य’ नाम से भी उत्सव : अलवर रंगम् के अलावा डॉ. मीणा रंग संस्कार थियेटर के माध्यम से हर साल नाटकों के तीन दूसरे आयोजन भी कर रहे हैं। इनमें ‘अलवर रंग महोत्सव’, ‘रंगबाज़’ और ‘मत्स्य ड्रामा फेस्टिवल’  शामिल हैं। वे कहते हैं, ‘अलवर के पुराने नामों में एक नाम ‘मत्स्य नगर’ रहा है। इसलिये वे इस नाम से भी आयोजन करते हैं। ‘मत्स्य नाट्य समारोह’ और ‘रंगबाज़’ फेस्टिवल हम दस और पाँच दिनों के लिये करते हैं। डॉ. मीणा ने कहा, ‘नाट्य उत्सव के आयोजन हम, गायत्री रोड के जिस ऑडोटोरियम में करते हैं, वहां पर तीन नाट्य दलों के 35 से 40 लोगों के रूकने की सुविधा भी है। वहीं पर हम उनके भोजन आदि का भी प्रबंधन करते हैं। इसके साथ ही हमारे साथियों के ऑडिटोरियम में रहने की भी अलग से व्यवस्था है। इस तरह आयोजन करना काफी हद तक आसान हो जाता है।
(देशराज मीणा, अलवर रंगम के साथ ही हर साल तीन अन्य नाट्य उत्सव भी आयोजित कर रहे हैं।)रंगमंच से तीन दशक पुराना नाता: रंगमंच के प्रति इस जुनून और दिलचस्पी की एक बड़ी वजह डॉ.देशराज मीणा का ख़ुद एक थियेटर एक्टर और डायरेक्टर होना है। वे पिछले तीन दशकों से रंगमंच के पर काम कर रहे हैं। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के ड्रामा विभाग से ‘पारसी रंगमंच में दृश्य विन्यास की परंपरा’ विषय पर पीएचडी की है। जयपुर में रहते हुये उन्होंने कई नाटकों में काम किया। इनमें बहुत से प्रतिष्ठित निर्देशक शामिल रहे। डॉ.देशराज कहते हैं, ‘मैंने तकरीबन 50 नाटकों में काम किया है। इनके कई शोज़ हुये हैं। इनमें कमला, जनशत्रु, अंधा युग, आषाढ़ का एक दिन, आधे-अधूरे और आख़िर इस मर्ज़ की दवा क्या है, जैसे नाटक शामिल हैं। फिलहाल इनकी मुझे याद आ रही है।
(रंगम् में इस बार 8 राज्यों के नाट्य दल 28 मार्च तक नाटक प्रस्तुत करेंगे। रंगकर्म के लिये यह बड़ी सौगात होगा।)स्थानीय लेखकों के साथ रंगकर्म: रंगकर्म की इस यात्रा से गुज़रते हुये करीब 8 साल पहले मीणा ने अलवर में ही रंगकर्म की शुरूआत की। उन्होंने एक और अच्छा काम किया। उन्होंने दलीप बैरागी और प्रदीप कुमार जैसे स्थानीय लेखकों को अपने साथ रंगकर्म में जोड़ने का काम किया। उनके लिखे नये नाटकों को मंच के लिये तैयार करने का काम शुरू किया। इस क्रम में उन्होंने ‘उत्तर कामायनी’ और ‘उसके इंतज़ार में’ जैसे नाटकों को तैयार कर उनके लगातार मंचन शुरू किये। इसके साथ ही उन्होंने सुशील कुमार सिंह लिखित नाटकों का निर्देशन भी किया। उनके नाट्य समहू ने  ‘बापू की हत्या हज़ारवीं बार’, ‘गुड बाय स्वामी’, ‘दि ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’, ‘हत्या एक छोटे आकार की’ जैसे नाटक भी निर्देशित मंचित किये हैं। (यह भी देखे -Pehtiya: Amazing Drama Show)

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