भोपाल से तारिक दाद (इंदौर स्टुडियो डॉट कॉम)। आज़ाद बांसुरी नाट्य समारोह के अंतर्गत शहीद भवन प्रेक्षागृह में राजेश कुमार लिखित नाटक ” गांधी ने कहा था ” का मंचन हुआ जिसे केजी त्रिवेदी ने निर्देशित किया ! नाटक में यूं तो गांधी का किरदार बहुत छोटा है मगर पूरे नाटक पर गांधी का विचार हावी है और इसीलिए अनुपस्थिति में भी गांधी पूरे समय उपस्थित हैं। एक और लेखक जहां गांधी के विचार को प्रभावी ढंग से रचते हैं तो वहीं दूसरी तरफ निर्देशक गांधी के व्यक्तित्व को मंच पर सफलतापूर्वक गढ़ते हैं।
” गांधी ने कहा था ” नाटक की पृष्ठभूमि भारत के बंटवारे के समय की है , हिन्दू-मुसलमान दंगों में सैकड़ों लोगों की जान गई । गांधी ने दंगों में मारे गए एक हिन्दू बच्चे सूरज के पिता से कहा था एक ऐसे मुसलमान बच्चे को पालो जिसके मां-बाप दंगों में मारे गए हों । व्यक्ति ऐसा ही करता है मगर उसे परिवार, समाज और धार्मिक पेशवाओं से इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है , यहां तक कि उसकी पत्नी भी उस मुस्लिम बच्चे को स्वीकार नहीं करती। दंगों से नाटक शुरू होता ज़रूर है, मगर कहानी मुस्लिम बच्चे और हिन्दू मां की मीठी नोंक-झोंक और ममता के दृश्यों से ऐसे आगे बढ़ती है कि दंगे की कहानी कहीं गौण हो जाती है और मां बेटे के स्नेहिल प्रेम की कहानी रह जाती है ” गांधी ने कहा था। “
केजी त्रिवेदी को बच्चों के साथ काम करने का लम्बा अनुभव है, प्रति दिन 8 से 10 घण्टे बच्चों के बीच रहकर वो बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हैं और बच्चों से मंच पर कैसे काम लिया जाए उनके लिए चुनौती नहीं है ! मंच से परे भी के.जी ने इन्हीं बच्चों को तैयार किया है जो अपने अपने कामों में दक्ष हैं । गांधी ने कहा था में वेशभूषा , मंच , संगीत और प्रकाश सब कुछ नाटक के अनुकूल था ! वर्तमान राजनैतिक परिवेश में आज गांधी के विचारों को बच्चों के संज्ञान में लाना बहुत आवश्यक हो गया है , आज भले ही राजनैतिक दलों ने राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ने का षड्यंत्र किया हो मगर गांधी का जीवन संघर्ष और उनके विचार पर चलना ही वास्तविक राष्ट्रप्रेम है ! अफसोस इस बात है की महात्मा गांधी की छवि को आज नकारात्मक रूप में सामने लाया जाता है , केवल सत्ता हथियाने के लिए जबकि आज की परिस्थितियों से विकट परिस्थितियों को गांधी ने भोगा , एक तरफ फिरंगियों के अत्याचार , दूसरी तरफ साम्प्रदायिक दंगे , कट्टरपंथियों की उलाहना .. फिर भी गांधी अहिंसा के रास्ते पर अड़े रहे , क्योंकि उन्हें अंग्रेजों को भारत से भगाना था , खैर..बधाई टीम त्रिकर्षि !