रवीन्द्र त्रिपाठी, इंदौर स्टूडियो। भारत रंग महोत्सव 2025 में इस बार ताइवान से आया नाटक ‘कर्ण’ अपनी प्रस्तुति और मूल कथा में नये आयाम (उपज) को लेकर चर्चा का विषय बना। इस प्रस्तुति में भारतीय तत्व भी थे और ताइवानी भी। नाटक का निर्देशन चोंगथम जयंता मितेई ने किया है। मणिपुरी मूल के मितेई राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली के स्नातक रह चुके हैं। उसके बाद उन्होंने सिंगापुर में नाट्य प्रशिक्षण लिया। पिछले कुछ बरसों से वे ताइवान में रह रहे हैं और वहां रंगकर्म भी कर रहे हैं। उनके द्वारा निर्देशित इस नाटक को लिखा है हिमांशु बी जोशी ने जो दिल्ली के नाट्य जगत में बरसों से सक्रिय हैं।आस्वाद करने में कठिनाई न हो: कर्ण से जुड़ी कथाएं तो भारतीयों के लिए परिचित हैं ही पर निर्देशक ने इनको इस तरह पेश किया है कि ताइवानी या विदेशी दर्शकों को समझने और उसका आस्वाद करने में कठिनाई न हो। कर्ण का जीवन कई प्रकार की विडंबनाओं से घिरा रहा। कुंती ने जब उसे जन्म दिया तो वो अविवाहित थी। ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए एक वरदान, जो ये था कि वो कभी भी देवताओं को आमंत्रित कर सकती है, के बाद वो इसे आजमाने के लिए सूर्य देवता का आह्वान करती है। सूर्य आते हैं, कुंती से उनका समागम होता है और कुंवारी कुंती मां बनती है।
लोकलाज के डर से नदी में पुत्र अर्पित: लोकलाज के कारण अपने नवजात पुत्र को नदी में बहा देती है जिसे आगे जाकर शूद्र अधिरथ और उसकी पत्नी राधा पालती है। बड़ा होने पर जब कर्ण वीर धनुर्धर बन जाता है तो महाभारत के युद्ध मे कुंती के दूसरे पुत्रों यानी पांडवों के खिलाफ ही लड़ता है। आखिर में वो अर्जुन के हाथों तब मारा जाता है जब उसके रथ का पहिया पृथ्वी में धंस जाता है और उसे निकालने का प्रयास करते हुए वो निहत्था हो जाता है।
कर्ण कथा से अलग क्यों है ये नाटक: पर क्या ये नाटक सिर्फ कर्ण कथा है? बिल्कुल नहीं। निर्देशक ने, और नाटककार हिमांशु ने भी, इसमें एक नया आयाम जोड़ा है जो कर्ण के व्यक्तित्व को नैतिक रूप से कुछ और अधिक आभावान बना देता है।
प्रस्तुति में नई चीज जोड़ी गई: नाटक में ये दिखाया गया है कि अपने रथ का पहिया पृथ्वी में धंसा होने के बाद भी कर्ण अर्जुन पर वो एक बाण नहीं चलाता जो इंद्र ने उसे दिया था। हालांकि मूल कथा में ये नहीं है लेकिन इस प्रस्तुति में ये नई चीज जोड़ी गई है। और इसमें किसी तरह का अनौचित्य भी नहीं है क्योंकि महाभारत विकसनशील काव्य रहा है। उसकी रचना एक बार में नहीं हुई है। समय समय पर उसमें नए प्रसंग जोड़े जाते रहे हैं। इसलिए इस नाटक में इस कथा को जोड़ना एक नवीन उद्भावना है।
मूल कथा के समीप है उपज: पर इससे कर्ण का व्यक्तित्व उदात्ततर हो गया। और ये उपज मूल कथा के समीप भी है। कर्ण की मूल कहानी में ये है कि रणभूमि नें अर्जुन से युद्ध के समय एक नाग कर्ण के तीर पर आकर बैठ गया था और कहा था कि मुझे तीर समेत अर्जुन पर फेंको, मैं उसे डस लूंगा और वो मर जाएगा। दरअसल वो नाग अर्जुन से खांडववन जलाने को लेकर क्रुद्ध था और बदला लेना चाहता था। (खांडववन नागों की भूमि थी।) पर कर्ण ने उस विषधर का अनुरोध नहीं माना था। यह भी कर्ण का एक उज्ज्वल नैतिक पक्ष था। इस नाटक में ये दूसरी तरह से आ गया है।
नाटक का संगीत भी शानदार: इस नाटक का संगीत भी शानदार है। हर भावुक स्थल पर संगीतकारों सुनीत बोरा और भास्कर ज्योतिकंवर ने वो गहराई तथा वेधकता दी है जो दर्शक के चित्त को व्यथित करती है। वैसे इस प्रस्तुति में कर्ण – कथा के भावनात्मक पक्ष को अधिक उभारा गया है। कहानी पर जोर कम है। पर इसमें वैचारिकता भी आ गई है क्योंकि अंत तक पहुंचते हुए ये युद्ध-विरोधी हो जाता है। वैसे भी महाभारत एक युद्द काव्य होते हुए भी अपने मंतव्य में युद्ध विरोधी रचना है। इस नाटक के अंत में एक युद्ध विरोधी समूह गान है।
भारतीय के साथ ताइवानी तत्व भी: इस प्रस्तुति में भारतीय तत्व भी हैं और ताइवानी भी। ताइवान की भाषा चीनी है और वहां की संस्कृति भी। हालांकि ताइवान स्वतंत्र देश है पर वहां की भाषा, कला और दूसरे सांस्कृतिक पक्ष चीनी ही कहे जाएंगे। मिसाल के लिये चीनी ऑपेरा ताइवान की भी प्रदर्शनकारी कला है। जिस अंग्रेजी में फ्यूजन कहा जाता है और हिंदी में संकरता- वो इस प्रस्तुति में मौजूद है। कर्ण का चरित्र और उससे जुड़ी कथा भारतीय है। कुछ अभिनेता भारत के हैं और कुछ ताइवान के।
मुख्य भूमिकाओं में सरफ़राज़ और मेधा: कर्ण की भूमिका निभानेवाले मोहम्मद सरफराज भारतीय हैं। कुंती की भूमिका निभाने वाली मेधा आइच भारतीय मूल की हैं पर आस्ट्रेलिया में रहती है। कृष्ण और सूर्य की भूमिका में सायन सरकार हैं। पर बाकी भूमिकाओं में ताइवानी कलाकार। वैसे एक ताइवानी कलाकार कुछ वक्त के लिए कुंती का चरित्र भी निभाती हैं।
चीनी ऑपेरा के साथ नौटंकी और यक्षगान: निर्देशक ने ताइवान के चीनी ऑपेरा को तो रखा ही है पर भारत की नौटंकी और यक्षगान के कुछ तत्वों का भी इस्तेमाल किया है। हिंदीवाले कुछ संवादों में नौटंकी की संवादशैली प्रयोग में लाई गई है। सूर्य का वेश यक्षगान शैली का है। उसकी भंगिमाएं भी। भाषा हिंदी के साथ चीनी भी है। जहां अभिनेता चीनी बोलते हैं तो मंच पर पीछे उनका अंग्रेजी अनुवाद भी चलता है ताकि भारतीय दर्शकों को संवाद समझने में मुश्किल न हो।
मणिपुर के रंगमंच की नई गाथा: मणिपुर का रंगमंच हेशम कन्हाईलाल और रतनथियम जैसे रंगकर्मियों के कारण पहले से समादृत रहा है। अब जयंता मितेई जैसे रंगकर्मी उसे ओर भी बुलंदी पर ले जा रहे हैं। ये भारतीय रंगकर्म के विस्तार के लिए भी शुभ है। बस एक छोटा-सा सुधार निर्देशक को कर लेना चाहिए। इंद्र ने कर्ण से कवच-कुंडल मांगने के बदले ब्रह्मास्त्र नहीं दिया था। कुछ शक्तिशाली अस्त्र दिए थे। अधिक से अधिक उनको दिव्यास्त्र कह सकते हैं। ब्रह्मास्त्र एक अलग धारणा वाला अस्त्र है। (सौजन्य: सत्य हिन्दी डॉट कॉम। लेखक रवींद्र त्रिपाठी जाने-पहचाने पत्रकार होने के साथ ही, प्रख्यात फिल्म और कला समीक्षक, फिल्ममेकर और नाटककार हैं।) आगे पढ़िये – कनुप्रिया की प्रस्तुति के साथ भारंगम 25 का समापन https://indorestudio.com/kanupriya-ki-prastuti-brm-25/