राजेश बादल, इंदौर स्टूडियो। फिर सुधियों में आन बसी है वह बरजोरी, बिन होरी के तुमने खेली थी, जो होरी / दिल को छूने वाली ये कविता लिखी है कमलेश पाठक ने। हाल ही में उनका कविता ‘किताबें नदी होती हैं’ प्रकाशित हुआ है। कमलेश पाठक विज्ञान की छात्रा रही हैं लेकिन उनके लफ्ज़ दिमाग़ से नहीं, दिल से निकलते हैं। जब दिल से शब्दों के भाव निकलते हैं तो नदी की तरह बहते हैं और कमलेश की कलम बरबस चलती है। एक बैठक में पढ़ गया पूरा संकलन: मैं उनका नया संकलन एक बैठक में पूरा पढ़ गया। हम लोग क़रीब पचास बरस पहले बीएससी की एक ही कक्षा में पढ़ते थे। तब दूर-दूर तक अंदेशा नहीं था कि कमलेश रसायन शास्त्र की प्रयोगशाला में शब्दों के साथ ऐसे रासायनिक प्रयोग भी कर सकती हैं। कमलेश मिश्रा विवाह के बाद कमलेश पाठक बन चुकी हैं लेकिन मैं शादी से पहले की कमलेश मिश्रा को योद कर रहा हूँ। मुझे उनके बारे में याद आता है कि वे गुमसुम, कुछ-कुछ उदास और अपने में खोई रहने वाली सह पाठिनी थीं। उस कक्षा में अनेक लड़कियाँ थीं, सबके भीतर हिंदी धड़कती थी लेकिन वे अपना शब्द संसार नहीं रच पाईं। सबके भीतर यह संवेदनशीलता होती भी नही है। कमलेश के इस कविता संग्रह को पढ़ते हुए एक झटका सा लगता है कि वे 45 साल पहले ही लिख रही थीं –
फिर सुधियों में आन बसी है वह बरजोरी, बिन होरी के तुमने खेली थी, जो होरी / कैसे अपने मन को मनाऊँ, कैसे रूठा हुआ, ये दिल बहलाऊँ / किसके माथे पर, रंगों का तिलक सजाऊँ / तुम्हीं कहो परदेसी, खेलूं मैं किसके संग अब होरी / (होली पेंटिग, आधुनिक कला, स्रोत: पिक्साबे ) कविता संग्रह में 63 कविताएँ : इस संकलन में तिरेसठ कविताएँ हैं। किसका ज़िक्र करूँ और किसे छोड़ दूँ ? उलझन में पड़ जाता हूँ। आज तो बच्चों के लिए एक भी पत्रिका नहीं बची है और हम इन नौनिहालों को भारत का भविष्य बताते हैं। पाँच-सात साल के बच्चों को अश्लील गीतों पर टीवी शो में थिरकते हुए देखते हैं तो मन वितृष्णा से भर जाता है। ख़ास तौर पर तब, जब माएँ उनकी प्रणय मुद्राओं पर रीझती हैं और कमलेश को याद आता है,जब पत्रिकाओं के लिए बच्चों में छीना झपटी होती थी। यह उन दिनों के हिन्दुस्तान में औसत घर की एक प्रतिनिधि तस्वीर थी। इसीलिए वे कहती हैं कि किताबों से रिश्ता कभी ख़त्म हो ही नहीं सकता। चाहे कितनी ही साज़िशें क्यों न हों।
दुपट्टों के बहाने इश्क़िया दास्तानें: आज दुपट्टे पहनावे से ग़ायब हैं, मगर हम लोगों ने उन दुपट्टों के बहाने अनगिनत इश्क़िया दास्तानें लिखी हैं। ये दुपट्टे लड़कियों के बड़े सिरदर्द भी होते थे – कविता में इसे कमलेश ही व्यक्त कर सकती थीं। दुपट्टे के अपने दर्द भी होते थे, यह कमलेश की दुपट्टा पढ़कर ही पता चलता है। कमलेश यदि इस संकलन से दुपट्टा निकालकर सौ डेढ़ सौ पन्नों में सिर्फ़ दुपट्टे पर एक लंबी नज़्म सी लिखें तो शायद वे बेजोड़ शब्द शिल्पियों की कतार में खड़ी नज़र आएंगीं। वे जब लिखती हैं , दुकानदारों ने दुकानों से हटा दिया है अपशकुन की तरह दुपट्टों को – तो कलेजे में फाँस की तरह कुछ चुभता है। वक़्त नाम की कविता में कमलेश ने एक बिंब रचा है। कह सकता हूँ कि अपने ढंग का विश्व में यह अनोखा बिम्ब है। वे लिखती हैं – “हाथ थामा वक़्त का मैंने / चल पड़ी कुछ इस तरह / अपने लंबे सफ़र पर / जैसे स्कूल से लौटते समय / लटक जाती थी मैं खिलखिलाते हुए / भूसे से भरी बैलगाड़ी के पीछे (सतीश बिरादर की कृति)
बीस बरस से माँ के इंतज़ार: इस अहसास को आज की नस्लें कैसे समझेंगीं ? वैसे तो माँ और बेटी का भारत में रिश्ता बहुत गहरा है। सागर से भी गहरा। इतना गहरा कि पिता तक बेचारा ख़ुद अपने लाड़ की गहराई को भीतर ही भीतर सूख जाने देता है। कमलेश बीस बरस से माँ के इंतज़ार में हैं। माँ ,जो सात बार राई – नमक से नज़र उतारेगी और बेटी को संसार में सबसे ताक़तवर बना देगी। कातर कमलेश कहती है – “एक बार! बस एक बार / पहले की तरह / नींद में कुछ जागी / कुछ सोई सोई सी /अपनी कमल को खिला दो / कटोरे भर दूध रोटी / मेरी नज़र उतार दो माँ ! अब कमलेश को कौन समझाए कि आजकल माएँ नज़र उतारना भूल गई हैं। बेटी बीमार होती है तो टिफिन सिरहाने रखकर, मोबाईल हाथ में थमा कर,बाहर से दरवाज़े पर ताला लगाकर / काम पर चली जाती है माँ।
एक से बढ़कर एक कविताएं: ‘किताबें नदी होती हैं’ संग्रह की सारी कविताऍं एक से बढ़कर एक हैं। किनका नाम लूँ ? औरतें, दिनमणि, बेटियाँ, कबूतर,पल-पल उजाले और अ से अक्षरा। अदभुत है प्रेम और ममता का अनूठा लोक। बताने की आवश्यकता नहीं कि अक्षरा में कमलेश ने बेटी के लिए डबडबाई भावनाओं की पूरी सदी का एक सच बयान कर दिया है। वे सच ही लिखती हैं कि वह अब हमारी माँ बन गई है। कमलेश का यह संग्रह उनसे लंबी-लंबी कविताओं की एक दूसरी नदी की माँग करता है। हमें शुभकामनाएं। आपको बता दूँ कमलेश जी के पति हम सभी के प्रिय कमलेश के पति हरीश पाठक जी चोटी के कथाकार हैं। (समीक्षक राजेश बादल राज्य सभा टीवी के पूर्व कार्यकारी निदेशक रहे। आप फ़िल्म मेकर और स्वतंत्र लेखक-पत्रकार हैं। यू ट्यूबर होने के साथ आप निरंतर पत्र-पत्रिकाओं के लिये लिखते रहते हैं।)