बॉस से मुलाक़ात की याद, जैसे दिल में इक रौशन चिराग़

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शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। हर सुबह बॉस का इनबिल्ट टेप रिकॉर्डर दिमाग़ में बज जाता है..उसी से अपनी नींद खुलती है..ऐसा नहीं है कि दूसरे किसी गीत से मैं जागता नहीं..मगर अक्सर वो गीत बॉस का ही होता है…बहुत हड़बड़ी न हुई तो वही गीत यू ट्यूब पर सर्च कर शांति से सुना जाता है..दिन की शुरूआत होती है..जैसे अभी चल रहा है..चिंगारी कोई भड़के…। बॉस कौन है, आपको मालूम है न, अरे अपने पंचम दा..आरडी..जिनका 27 जून से पूरे एक हफ़्ते तक हैप्पी बर्थ डे मनता है। आज फिर आ रही है बॉस से अपनी मुलाक़ात की वो याद, जैसे दिल में इक रौशन चिराग़! हर दिन, हर पल अपने साथ: लोग कहते हैं, पंचम दा को गये सालों हो गये..मगर मुझे कभी नहीं लगा..हर दिन, हर पल बॉस अपने साथ रहते हैं। अपने दिमाग़ का लाइव रेडियो बजता ही रहता है..। हर सिचुएशन के मुताबिक..उसमें गीत चलते रहते हैं, मगर अक्सर उनमें बॉस के गाने होते हैं..उनका एक-एक गीत मैंने पचासों बार सुना होगा..कभी लगा नहीं पुराना हो गया है। ‘क़तरा क़तरा मिलती है..क़तरा-क़तरा जीने दो’…उनके संगीत का स्टाइल, ताल संयोजन, रिकॉर्डिंग, बैकग्राउंड सब अपने को ज़बरदस्त लगते हैं। बॉस ने एक से एक एक्सपेरिमेंट किये। बैकग्राउंड म्यूज़िक में भी और टाइटल या थीम म्यूज़िक में भी। अल्टीमेट। ( बॉस से इंदौर के होटल श्रीमाया में मुलाकात की एक तस्वीर। यह 1993 की बात है। तब आरडी इंदौर में लता मंगेशकर सम्मान के लिये इंदौर आये थे।) बॉस से हुई थी इंदौर में मुलाक़ात: बॉस के इंदौर आने की जैसे ही ख़बर मिली, हम उनसे होटल में मिलने पहुँच गये। तब मैं इंदौर के एक न्यूज़ पेपर ‘चौथा संसार’ में सेवारत था। मेरे साथ मेरे चित्रकार साथी सफ़दर शामी भी थे। जब पंचम दा से मुलाक़ात हुई। वो उनके संगीत के बारे में मेरी बातें सुनकर हैरान हुए। बॉस का संगीत अपन को पूरा याद था। बैकग्राउंड समेट रटा हुआ था। वो अचरज में पड़े। कहने लगे- ‘ शकील, तुम जर्नलिस्ट नहीं, मेरे फ़ैन हो ! बोले – ‘आ जाओ मुंबई, मैं ‘1942 ए लव स्टोरी’ का संगीत तैयार कर रहा हूं। साथ में रहना। उसका बैक ग्राउंड म्यूज़िक होना है और गानों के फायनल वर्क। देखना, किस तरह से काम करता हूं।’ (आरडी बर्मन के साथ श्रद्धा बोस की यादगार तस्वीर। वे भी तब उनसे मिलने के लिये होटल श्रीमाया में पहुँची थीं। उन्होंने तब नईदुनिया के लिये उनसे चर्चा की थी।) ज़िदंगी भर रहेगा अफ़सोस: बरसों बाद आरडी मिले थे, जैसे भगवान ने उनको हमसे मिलने के लिये भेजा था। तो जैसे मैंने कहा, उन्होंने मुलाक़ात के वक्त कहा, तुम मुंबई आ जाओ, 1942 का काम देखो,अफ़सोस मैं नहीं जा पाया ! या शायद उस बात की अहमियत को मैं तब समझ नहीं सका। अख़बार की नौकरी और अपनी नासमझी इस सुनहरे प्रस्ताव को गवां गई। ख़ुदा को इस शख़्सियस से मुझे मिलाना था, बस वही मेरे नसीब में रह गया। यादों का इक रोशन चिराग़ बनकर। इस मुलाक़ात के दौरान मेरे साथ उस ज़माने में पत्रकारिता और स्टूडेंट पॉलिटिक्स में सक्रिय श्रद्धा बोस भी थीं। कुछ सालों बाद उन्होंने ही आरडी के साथ मुलाक़ात की ये तस्वीर साझा कर मुझे वो दिन याद दिलाया था। तब मैं युवा पत्रकार था। पंचमदा के संगीत के बारे में होश संभालते न जाने उनके बारे में क्या-क्या सोचा करता था। और उस मुलाक़ात के वक्त भी उनके साथ मैं वही सारी बातें कर रहा था। बाते करते हुए उनके संगीत के गहरे सागर में डूब गया था। वो भी डूबकर अपनी बातें कहते चले जा रहे थे।आरडी ने सुनाये थे 1942 के गीत: तब आरडी ने ‘1942 ए लव स्टोरी’ फ़िल्म के लिये तैयार किये जा रहे गीतों  ‘एक लड़की को देखा और रिमझिम रिमझिम, रूनझुन-रूनझुन ‘ को सुनाया था। ये कहते हुए.. ‘इंडस्ट्री में जिसने भी इन गीतों को सुना है, उन्हें यह गीत और उनकी धुनें पसंद आ रही हैं। इन गीतों के पीछे डैडी सचिन देव बर्मन हैं..उनके पास संगीत का बहुत सारा कलेक्शन है..मैं 1930-40 के दौरान बने उनके उसी संग्रह के गीत कई दिनों से सुन रहा था.. यह तैयारी थी इन गीतों के लिये और तब जाकर 1942 के गीतों की अलग धुनें बनीं..। अब किशोर कुमार तो रहे नहीं। कुमार सानू ये गीत गा रहे हैं। उन्होंने कमाल गाया है। ये गाने इंडस्ट्री में विदू विनोद चोपड़ा, शोभा कपूर, रमेश सिप्पी और मेरे कुछ करीबी दोस्तों ने सुने हैं। उन्हें ये पसंद आ रहे हैं। कह रहे हैं, इंडस्ट्री में ये गाने एक नया फ्लेवर लेकर आएंगे।…सच में हुआ भी ऐसा ही। मगर कामयाबी का ये कमबैक देखने से पहले ही आरडी 4 जनवरी 1994 को इस जहां से चले गये। वो संगीत, जिसमें शास्त्रीय और पश्चिमी दोनों ही संगीत का ख़ूबसूरत मेल था, एक नया अंदाज़ था, गीतों में संगीत के इस्तेमाल और उनके रख-रखाव का सिस्टम या प्रबंधन सबसे अलग था।इस तरह बना चुरा लिया है तुमने: उनसे इस इंटरव्यू के दौरान हमारी और बहुत सी बातें हुई। इंटरव्यू के वक्त उनके हाथ में पानी का एक गिलास था। उसे उन्होंने अपने हाथ की अंगुलियों से खनखनाया..उसे चम्मच से बजाकर सुनाया..और फिर फिल्म ‘यादों की बारात’ के गीत ‘चुरा लिया है तुमने जो दिल को’ का क़िस्सा सुनाया। कहने लगे, इस गीत की धुन में कुछ मज़ा नहीं आ रहा था। साजिंदों के साथ मैं इस गीत को बनाने के लिये देर तक बैठा रहा। मगर कुछ जम नहीं रहा था। लगा छोड़ो, अब बात में इस पर सोचेंगे।  म्यूज़िशियन्स को मैंने वाइंड अप करने के लिये कह दिया। फिर मैंने पानी पीने के लिये गिलास उठाया। पानी पीने के बाद दिमाग़ में जो आया, अंगुलियों ने वही गिलास पर बजा दिया और मिल गई…’चुरा लिया’ गीत की धुन ! टिंग टिरिंग टिंग टिरिंग ..! टिंग टिरिंग टिंग टिरिंग ..!…मैंने सबसे कहो,अरे बैठो बैठो…मिल गई धुन..चलो करते हैं…! कई स्तरों पर हो रही थी रिकॉर्डिंग: हम बॉस पर आँख गड़ाये, उनकी बातें जज़्ब कर रहे थे। कई स्तरों पर अपने अंदर उनकी बातों की रिकॉडिंग चल रही थी। हमारी बातें फ़िल्म, ‘तीसरी मंज़िल, परिचय, हम किसी से कम नहीं, यादों की बारात से लेकर सनम तेरी क़सम’ जैसी फ़िल्मों के गानों और शोले, दि बर्निंग ट्रेन, शालीमार,अर्जुन जैसी फ़िल्मों के बैकग्राउंड म्यूज़िक पर भी हुई। कहने लगे, ‘तीसरी मंज़िल के संगीत सुनाने को लेकर मेरी सबसे ज़्यादा बेचैनी शम्मी कपूर को लेकर थी। वो उस समय के स्टार थे, उनके हिसाब से तब म्यूज़िक होता था। मगर मेरा उस दौर से बहुत अलग म्यूज़िक था। और थैंक गॉड, उन्हें मेरा म्यूज़िक बेहद पसंद आया और बात बन गई। मजरूह साहब ने फ़िल्म में मेरे संगीत के लिये नासिर साहब से सिफ़ारिश की थी। यह सिलसिला ऐसा जमा कि फिर नासिर हुसैन की फ़िल्मों में आगे भी मेरे संगीत का ही सिलसिला चलता चला गया। और सनम तेरी क़सम का वो गीत: आशा जी के साथ साज़ और आवाज़ के बंधन को याद करते हुए बॉस ने बताया। उनके साथ हर तरह के प्रयोग का मौका मिला। हम कार से स्टूडियो जा रहे थे फ़िल्म ‘सनम तेरी कसम’ का गीत रिकॉर्ड करना था। कार में झटका लगने पर आवाज़ कांपने लगी। मुझे लगा ये तो गाने की धुन में काम आ जायेगा। इस बात को मैंने आशा जी के गाये गीत, ‘जाने जां..ओ मेरी जाने जां’ में शामिल कर लिया। कार में ही धुन बना ली। आशा जी ने गुनगुनाकर देखा। और गीत बन गया। आरडी ने गुलज़ार की कलम को भी अपने संगीत में बेहद अलग तरह से ढाला। जब गुलज़ार की बात चली तो उन्होंने याद किया फ़िल्म ‘परिचय’ का गीत। वो रात को उसके गीत को बनाकर गुलज़ार के पास पहुँचे। और फिर रात में सड़क पर कार चलाते सुनाते रहे…मुसाफिर हूँ यारों, न घर है न ठिकाना, मुझे चलते जाना है..।..बातों में खुशबू, किनारा, मासूम का सफ़र भी याद आया। किसी अख़बार की ख़बर जैसा इजाज़त का वो गीत भी…मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है…! गब्बर की तस्वीरों ने दिया म्युज़िक थॉट: शोले के संगीत को लेकर आरडी ने बताया था – ‘इसके म्यूजिक को मैंने पहले अलग ढंग से तैयार किया था। पुरानी डाकू वाली फिल्मों के ट्रेंड पर। मगर रमेश सिप्पी जब अमजद ख़ान के कुछ फोटो शूट कराकर दिखाने आए। तब उन्हें देखकर मैं चौंक गया। उन फोटोग्राफ्स में गब्बर की भूमिका में आने वाले अमजद ख़ान फौजी की वर्दी पहने थे। हाथ में तम्बाकू की पुड़िया थी। तस्वीरें देखकर मेरा माइंड को एकदम से झटका लगा। पुराना म्यूज़िक मैंने कैंसल कर दिया। अब नया म्यूज़िक मेरे अंदर तैयार होने लगा। एक नया साउंड और थॉट क्रियेट होने लगा। इस तरह शोले का संगीत नये तरह से तैयार हुआ। (मुम्बई में लॉकडाउन से कुछ समय पहले प्रतिभाशाली म्यूज़िक प्रोड्यूसर मेघदीप बोस के साथ लेखक की मुलाक़ात। साथ में हैं मेरे दोस्त अभिनेता और रंगकर्मी साथी अरूण काटे।)नये प्रयोगों की भी हुई बात: आरडी से उनके संगीत में कई तरह के नये प्रयोगों और साउंड को लेकर भी बहुत सी बातें हुईं। उन्होंने बताया था, मैं दुनिया में जहां भी जाता हूँ, नये साज़ों को देखता और ख़रीदता हूँ। साउंड और रिकॉर्डिंग्स की नई-नई तकनीक को सीखता रहता हूं। अपने स्कूल को नहीं भूलता, मगर जो नया हो रहा है, वो जानने की कोशिश करता रहता हूं। मैं हर तरह का संगीत सुनता हूँ। वेस्टर्न,अरेबिक,फोक,सब। 3 हज़ार धुनों का था खज़ाना: आरडी के शरीर छोड़कर जाने के बाद मुंबई के नवभारत टाइम्स में मेरा एक आलेख छपा था। इसमें मैंने बताया था – ‘आर डी के पास कोई 3 हज़ार धुनों का ख़ज़ाना था। यह बात पंचम ने मुझे ख़ुद बताई थी। मैंने लिखा था कि उन धुनों का उपयोग होना चाहिये। हर साल उनकी बनाई धुनों को लेकर कुछ गीत आ सकते हैं। मुझे लग रहा था, उनके गीतों के आधार पर ‘आरडी लाइव’ जैसे प्रोग्राम और अलबम रिलीज़ हो सकते हैं। मेरा यह लेख फिल्म इंडस्ट्री में पढ़ा तो बहुत गया। मगर पहल नहीं हो सकी। मैंने इस कॉन्सेप्ट को लेकर मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के आज के चमकते म्यूज़िक प्रोड्यूसर मेघदीप बोस और अपने पुराने संगीतकार साथी रोहित मांजरेकर से भी चर्चा की थी। मगर इस कॉन्सेप्ट पर बात आगे नहीं बढ़ सकी। आज लगता है कि काश उनकी उन धुनों पर काम हो। शायद आशा भोसले यह पहल कर सकें। उनके पास ज़रूर आरडी की बनाई बहुत सी धुनों और कंपोज़िशन्स के पुराने कैसेट्स होंगे। बीमारी में भी बनाते रहे धुन:  इस जीनियस संगीतकार ने कहा था, ‘हार्ट अटैक आने के बाद मैं कई दिनों तक  हॉस्पिटल में एडमिट रहा। विदेश में भी। मगर उस वक्त भी धुन बनाने का सिलसिला कभी रुका नहीं। बिस्तर पर पड़े-पड़े भी मैं नई-नई धुन बनाता रहा। उनके बारे में सोचता रहा। उन्होंने ही कहा था, ‘मेरे पास 3 हज़ार से ज़्यादा धुनों का बैंक है। काम हो न हो। मेरी तैयारी चलती रहती है’। आज ये कहते हुए दु:ख होता है कि फ़िल्म इंडस्ट्री ने इस क्रियेटिव संगीतकार से उनके गर्दिश के दिनों में किनारा कर लिया था। काम देना तो दूर, मिलना और बात करना भी बंद कर दिया था। पहले यह बात सुनी थी, आज लगता है इंडस्ट्री सफलता के साथ उड़ान भरती है,नाकामी में नाता तोड़ लेती है।अगर किसी को पता चल जाये कि आप बीमार हैं, काम के काबिल नहीं या आपकी फिल्में फ्लॉप हो रही हैं, ग़ैरों की छोड़िये दोस्त तक आपका साथ छोड़ देते हैं। चार दशक की सफल संगीत यात्रा: 1961 में छोटे नवाब और 1966 में पहली हिट ‘तीसरी कसम’ से शुरू हुआ आरडी का सफ़र 1994 में थम गया। तब फिल़्म -‘1942 ए लव स्टोरी’ और ‘गर्दिश’ का संगीत धूम मचा रहा था। आरडी के जाने का मुझ जैसे करोड़ों प्रशंसकों को गहरा झटका लगा। उनके संगीत सफ़र पर मैंने ‘फ्री प्रेस जनरल, चौथा संसार’ में लेख लिखे। इंटरव्यू पब्लिश किया। आकाशवाणी, मुंबई के लिये मैंने उस वक्त वहाँ प्रोड्यूसर रहे राकेश जोशी जी के सहयोग से पंचम दा पर 1 घंटे का विशेष प्रोग्राम लिखा। जो देश भर के करीब 192 स्टेशनों से प्रसाारित हुआ। किताब का अधूरा रह गया काम: इसी तरह आरडी के संगीत पर मैंने किताब भी लिखने का काम शुरू किया था। उस क़िताब के बारे में लता अलंकरण समिति से जुड़े रहे मेरे मित्र और लोकप्रिय सूत्रधार संजय पटेल जानते हैं। वे आज भी उस क़िताब और उसके काम को लेकर मुझे प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने ही उस किताब के प्रकाशन को लेकर कुछ काम आगे भी बढ़ाया था। परंतु वह काम भी आगे नहीं बढ़ सका। हालांकि इस काम के लिये मैंने मुंबई का दौरा किया था और  गुलज़ार से लेकर उनके समकालीन कुछ संगीतकारों, गायकों से बातें की थीं। उस वक्त भी यह बार-बार महसूस होता रहा था कि आख़िर बॉस सुपरहिट संगीत के बॉस क्यों हैं ? 2020 में लॉकडाउन के दौरान मैं मुंबई में फंस चुका था। एक रात मुझे मुंबई फिल्म इंडस्ट्री को नई बुलंदियों पर ले जाने वाले बहुत से नामी सितारों की याद आई। मैंने आसमान की तरफ़ देखा, और आरडी को याद कर कहने लगा, सॉरी बॉस आपने मुझे मुंबई बुलाया था। मैं तब तो नहीं आ सका। अब आया हूं। मगर आप अब सितारों में हैं, मैं यहां ज़मीन पर नीचे, मुझे माफ कर देना। ताज़ादम है आरडी का यादगार संगीत: आरडी का संगीत उनके जाने के सालों बाद, आज भी बेहद मॉर्डन और ताज़ादम है। एफएम पर जमकर बज रहा है। नई जनरेशन अब भी उन्हें सुन रही है। कितने संगीतकार उनके ही बनाई राह पर चल रहे हैं। सच में बॉस आज भी सुपरहिट गीतों के सरताज हैं। उनका हैप्पी बर्थ डे अब ज़्यादा ज़ोर शोर से मनाया जा रहा है और रेडियो पर आज भी उनके हिट गीतों का सफ़र चल रहा है। चलते-चलते आप भी कीजिये पंचम के संगीत वाली कुछ फिल्मों को याद। इस फेहरिस्त में कुछ ही नाम हैं। मगर हर नाम इस संगीतकार की विलक्षण प्रतिभा का अमर परिचय है। बॉस के सुपरहिट संगीत का सफ़र: तीसरी मंज़िल (1966), हरे रामा हरे कृष्णा (1971), कारवां ( 1971), परिचय (1972), पड़ोसन (1968), अमर प्रेम (1971), अपना देश (1972), यादों की बारात (1973), खोटे सिक्के ( 1974),आपकी क़सम (1974), ख़ुशबू (1975), शोले (1975), दीवार (1975), मेहबूबा (1976), किनारा (1977), चांदी सोना (1977), हम किसी से कम नहीं (1977), शालीमार (1978), द ग्रेट गैम्बलर (1979), द बर्निंग ट्रेन (1980), अलीबाबा चालीस चोर (1980), शान (1980), अब्दुल्लाह (1980),रॉकी (1981), ज़माने को दिखाना है (1981), लव स्टोरी (1981), सत्ते पे सत्ता (1981), लव स्टोरी (1982), सनम तेरी क़सम (1982), मासूम (1983), सागर (1985), अर्जुन (1985), सागर (1986), इजाज़त (1987), 1942 ए लव स्टोरी (1993)  आदि। आगे पढ़िये –

पीयूष मिश्रा,मालिनी अवस्थी और कविता सेठ को मानद सम्मान


 

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