शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। एक ही वक्त में एक लड़की को दो पुरूषों से प्यार हो गया है। पहला वो, जो वादे के मुताबिक, एक साल बाद उससे मिलने के लिये आने वाला है। दूसरा वो, जो संयोग से, विरह में डूबी लड़की से एक रात मिलता है और उसका दोस्त बन जाता है। अब लड़की किसे अपना जीवन साथी बनायेगी? 15 साल बड़े उस प्रेमी को, जिसका उसे बेचैनी से इंतज़ार है या उस राइटर से जो बेहद संवेदनशील,नेक और तन्हा नौजवान है। एक तरफ़ लड़की उलझन में है और दूसरी तरफ़ इस रोमांटिक म्यूज़िकल ड्रामा शो को देखते हुए दर्शक, इस बात को देख और समझ रहे हैं कि ‘ये प्यार,प्यार क्या है’?रूसी लेखक के उपन्यास पर आधारित नाटक: ये कहानी रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की की शॉर्ट स्टोरी ‘व्हाइट नाइट्स’ पर आधारित है। 1848 में प्रकाशित हुई एक ऐसी क्लासिक कहानी जिसमें नास्तेनका नाम की युवती अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन साथी चुनती है। इस उपन्यास को मंच के लिये जानी-मानी लेखक, एक्टर और निर्देशक पूर्वा नरेश ने तैयार किया और इसे एक कमाल के थियेटर अनुभव में बदल दिया। बेशक इस सशक्त और दिल को छूने वाली प्रस्तुति में उनकी प्रॉडक्शन टीम और अभिनेताओं का ज़बरदस्त समन्वयन रहा। सभी ने मिलकर इसे यादगार ड्रामा शो बना डाला। ‘आरंभ मुंबई’ की यह प्रस्तुति आदित्य बिड़ला ग्रुप के आद्यम थियेटर के सातवें सीज़न में दिल्ली के कमानी सभागार में पेश की गई। 1 और 2 मार्च को इसके कुल तीन शोज़ हुए। सभी में दर्शकों ने नाटक पर अपना भरपूर प्यार बरसाया।
चार चाँदनी रातों के वक्त में फैला नाटक: दोस्तोयेव्स्की की शॉर्ट स्टोरी के अनुरूप यह नाटक चार चाँदनी रातों के वक्त में फैला है। तीन रातें इंटरवल से पहले हैं और फिर चौथी रात इंटरवेल के बाद। कहानी सेंट पीटर्सबर्ग की है। नेवा नदी के किनारे बसा वो शहर, जो कभी रूसी साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। सेंट पीटर्सबर्ग में हर साल रजत या व्हाइट रातें शहर पर अपना जादू बिखेरती हैं। जून के महीने में तो यहां जैसे रातें गायब ही हो जाती हैं। शहर गुलाबी शामों में नहा जाता है। इन दिनों में जैसे समय अपना सारा अर्थ खो देता है। दुनिया के लोग यहां इन रातों में जश्न मनाने आते हैं। फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की ने इसी माहौल से प्रभावित होकर ही लेखन के शुरूआती दौर में ये कहानी लिखी थी।
संगीत से भरी स्टालाइज़्ड प्रस्तुति बड़ी ख़ूबी: नाटक की बड़ी खूबी इसकी स्टालाइज़्ड प्रस्तुति है। रूसी कहानी होने के बावजूद नाटक को भारतीय दर्शकों की अभिरूचि के हिसाब से रूपांतरित किया गया है। कवितामयी भावों और गीत-संगीत इस नाटक की खूबी है जो नाटक को ज़बरदस्त रफ़्तार देते हैं। लाइव बैंड के साथ कलाकार, नाटक में भारतीय और पाश्चात्य संगीत के अनुरूप गीत गाकर दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर देते हैं। पहले थीम सांग ‘ये प्यार प्यार क्या है’ से ही यह नाटक, दर्शकों को अपने जादू में जकड़ लेता है।
कहानी में चाहत के दूसरे रंग भी: कहानी उस नरेटर से शुरू होती है जो ‘ दीवाना बार’ में अपनी माशूका से 20 साल पहले हुई मुलाक़ात का जश्न मनाने आया है। वो इस जश्न में शामिल होने के लिये सभी को निमंत्रण देता है। बार में सर्विस देने वालों में नताशा और विशाल भी हैं। उनकी अपनी प्रेम कहानी चल रही है, इस प्रेम कहानी की अपनी उलझने हैं। इसी तरह से बार चलाने वाली इकात्रिना की अपनी संघर्ष भरी कहानी है। मगर ये सभी किरदार कहीं न कहीं नाटक की मूल कहानी से जुड़े हुए हैं। नरेटर यानी कथावाचक बारटेंडर के कहने पर 20 साल पुरानी अपनी प्रेम कहानी सुनाना शुरू करता है। इस तरह कहानी जीवंत होना शुरू होती है और बार में अपनी दुनिया में गुम रहने वाले एक राइटर (दीवाना) की एंट्री होती है। अंत में सभी प्रेम की उस मंज़िल पर पहुँचते हैं जिसे आप सुखद भी कह सकते हैं और दु:खद भी। कहानी संदेश देती है – ‘प्यार करने का मतलब अपनी चाहत को बाँधना नहीं, उसे उसके हिस्से की आज़ादी देना है’। कहानी ये भी कहती है, कि इस दुनिया को कुछ ऐसे दीवानों की ज़रूरत भी है जिनका प्रेम निस्वार्थ हो, भले दुनिया की नज़र में वो महान मूर्ख हों!
मूल कथ्य में किये गये कई ज़रूरी बदलाव: इस कहानी को कहने के लिये बेशक पूर्वा नरेश ने कई स्तरों पर काम किया है। कई सामयिक बदलाव किये हैं। इस बात को गहराई सोचा है कि क्या आज पहले वाला प्यार रहा है? रूसी परिवेश को ज़ाहिर करने के लिये उन्होंने नाटक में कहीं-कहीं छोटे रूसी संवाद रखे हैं। जबकि नाटक में, प्रेम से जुड़ी भावनाओं को ज़ाहिर करने के लिये हमारे समय के कुछ कवियों की कविताएं शामिल की हैं। इनमें विनोद कुमार शुक्ल, अशोक बाजपेयी, नरेश सक्सेना और केदारनाथ सिंह की कविताएं शामिल की हैं। नाटक के लिये ख़ुद पूर्वा के साथ निरंजन अयंगर और मंत्र मुग्ध ने गीत लिखे हैं। सृजनात्मक लाइव संगीत, कैज़ाद घेरडा का है। साथी साज़कारों में ऐश्वर्या पगारे (मेंडोलिन), जोएल लोपेज़ (वायलिन), राम बेलबंशी (तबला और ढोलक) और अर्जुन चक्रवर्ती (ड्रम्स) शामिल हैं। गीत-संगीत में रूसी माहौल के साथ भारतीय संगीत की सरगम है। ज़ाहिर है कि नाटक अपने परिपेक्ष्य में क्लासिक दौर की कहानी तो कहता है, मगर वह भारतीय अनुभूतियों से दूर नहीं होता।
सेंट पीटर्सबर्ग में आया नाटक का आइडिया: अपने कथ्य में राइटर,डायरेक्टर पूर्वा ने लिखा है- ‘उनके दिमाग़ में इस नाटक की कल्पना सेंट पीर्टर्सबर्ग में ही आई थी। उस वक्त, जब वे अपने पिता का एक हाथ थामे, नेवा नदी के किनारे मौजूद ब्रिज पर सैर को निकली थीं। पिता के दूसरे हाथ में ‘व्हाइट नाइट्स’ स्टोरी का हिंदी अनुवाद था। वो कहती हैं, दोस्तोयेव्स्की की यह कहानी किसी न किसी रूप में ब्रेसऑं, विस्कॉन्ती से लेकर संजय लीला भंसाली जैसे सिनेकारों के ज़रिये सिल्वर स्क्रीन तक तो पहुँची, मगर रंगमंच पर यह कभी नहीं आई। उन्होंने सोचा, क्यों ना इस कृति पर एक नई रंग-दृष्टि के साथ आज के दौर के हिसाब काम किया जाये’।
मुख्य भूमिकाओं में जाने-पहचाने कलाकार: नाटक में मुख्य भूमिकाओं में वो कलाकार हैं जिन्हें दर्शकों ने रंगमंच के साथ ही टीवी और फिल्मों में देखा है। इन जाने-पहचाने एक्टर्स में मंत्र मुग्ध (दीवाना), गिरिजा ओक गोडबोले (नास्तेनका), दानिश हुसैन (प्रेमी), अनामिका तिवारी (मैडम इकात्रिना और मात्र्योश्का) जैसे कलाकारों के साथ ही कौस्तव सिन्हा, शिमली बसु, सुभश्री साहू के साथ ही नानी की यादगार भूमिका में तृप्ति खामकर को देखना सुखद है। इसी तरह से राइटर के मनोभावों को दर्शाने वाले सहयोगी कलाकारों का भी ज़बरदस्त अभिनय है जो बहुत बार आपको गुदगुदाते हैं। दूसरी सहयोगी भूमिकाओं में गिरिश शर्मा, राज शेखर, पियूष कुमार और प्रेरणा के साथ ही आशीष मिश्रा जैसे कलाकारों ने भी बढ़िया काम किया है।
प्रस्तुति में बैक स्टेज टीम की बड़ी भूमिका: गीत-संगीत,अभिनय और निर्देशन की खूबियों वाले इस नाटक की खूबियां यहीं पर खत्म नहीं होती। नाटक का सैट पहली ही नज़र में आपको सीधे सेंटपीर्टर्स बर्ग में पहुँचा देता है। जहां पर नेवा नदी के किनारे लैम्प पोस्ट वाला ब्रिज है। ब्रिज के नीचे, बार, नानी और राइटर का घर है। नाटक की प्रकाश और ध्वनि योजना भी आपको पूरे माहौल से जोड़ देती है। ये सारी चीज़ें आपको एक उत्कृष्ट प्रॉडक्शन का अहसास कराती हैं। नेपथ्य की इस टीम में अस्मित पाठारे (क्रियेटिव प्रोड्यूसर), कुशल महंत (प्रॉडक्शन डिज़ाइनर), संकेत पारखे (लाइट डिज़ाइनर), हृदय भाटिया और वैष्णवी कुलकर्णी (अस्सिटेंट डायरेक्टर), अरिहंत बोथरा, दिपेंद्र वर्मा, मोहित गुप्ता, सुधांशु गिरी, संजीत ओबराय, राखी कश्यप (प्रॉडक्शन), हर्ष डेढ़िया (वेशभूषा), वरुण गुप्ता (साउंड डिज़ाइनर), निखिल वर्गिस (साउंड इंजीनियर) और अंजलि पोलाइट (कोरियोग्राफ़ी) शामिल हैं।
आद्यम थियेटर की बेहद सराहनीय पहल: कहना ना होगा कि आदित्य बिड़ला ग्रुप के आद्यम थियेटर के संरक्षण और सहयोग से ऐसा प्रॉडक्शन का मुंबई और दिल्ली के दर्शकों तक पहुँचना असंभव था। आप इसे कर्मशियल ड्रामा शो ज़रूर कह सकते हैं, मगर यहीं पर यह तथ्य भी उभरता है कि किसी भी अच्छी प्रस्तुति के लिये अगर आपके साथ मज़बूत आर्थिक सहयोग नहीं है तो आप कला को वो ऊँचाई नहीं दे सकते जिसके लिये कलाकार अथक मेहनत करते हैं। कला और अनुभूति का नया संसार रचते हैं। दर्शकों को अपनी कला से नई उड़ान पर ले जाते हैं। ज़ाहिर है कि इसके लिये आदित्य बिड़ला ग्रुप के समर्पित थियेटर सहयोग की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है।
2015 से जारी है आद्यम थियेटर का सफ़र: आदित्य बिड़ला ग्रुप द्वारा स्थापित आद्यम रंगमंच का यह सफ़र 2015 से शुरू किया था। सातवें सीज़न के बढ़ते सफर के साथ यह 25 प्रस्तुतियों, 279 शोज़ और करीब दो लाख दर्शकों तक पहुँच गया है। इस पूरे कलाकर्म के प्रबंधन और संचालन में क्रियेटिव डायरेक्टर ब्रायन टेलिस के साथ ही नादिर ख़ान, शेरनाज़ पटेल जैसे रंग हस्ताक्षरों का योगदान है। आद्यम की कोशिश कितनी समर्पित है, यह इसके ब्रोशर के हाथ में आते ही पता चल जाता है। इस ब्रोशर में हर कलाकार को सम्मानजनक सचित्र जगह दी गई है। उनके योगदान को दर्शकों तक बशिद्धत पहुँचाया गया है। आद्यम थियेटर के सातवें सीज़न की प्रस्तुतियों में, चाँदनी रातें के साथ ही- ‘दि क्यूरियस इन्सीडेंट ऑफ ए डॉग इन दि नाइट टाइम, साँप सीढ़ी, मुंबई स्टार और दि हॉर्स’ जैसे शोज़ शामिल हैं। बता दें कि आद्यम थियेटर के मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरू में अपने दर्शक हैं।
(इस रिपोर्ट के लेखक, शकील अख़्तर लेखक, पत्रकार और कलाकर्मी हैं। 30 सालों से कला और कलाकारों पर लगातार लिख रहे हैं। कला केंद्रित वेबसाइट इंदौर स्टूडियो के संस्थापक संपादक हैं। एक कविता संग्रह के साथ ही 7 नाटकों का लेखन कर चुके हैं। उनके दो नाटक एनएसडी, दिल्ली में मंचित हुए हैं। किताबें Amazon और anootha.com पर उपलब्ध हैं। छह समाचार पत्रों में सेवारत रहे शकील अख़्तर, भारत के प्रमुख न्यूज़ चैनल इंडिया टीवी के पूर्व सीनियर एडिटर रहे। आपके कई गीत संगीतबद्ध हुए हैं। रंगमंच और रेडियो के बहुत से नाटकों में काम किया। एक दर्जन से अधिक टीवी रिकंस्ट्रक्शन्स और फिल्मों में अभिनय किया है। रचनात्मक कामों के लिये प्रशंसित और सम्मानित शकील अख़्तर इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया,बैंगलोर इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल और जागरण फिल्मोत्सव से जुड़े रहे हैं। आप पत्रकारों के संगठन स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश के उपाध्यक्ष हैं।) आगे पढ़िये – आगरा बाज़ार नाटक को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे सरकार – https://indorestudio.com/agara-bazar-rashtriya-dharohar/