सिनेमा की सुपर हिट मां थीं सुलोचना लाटकर

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राकेश अचल, इंदौर स्टूडियो। मशहूर अदाकारा सुलोचना लाटकर का नाम अब बहुत कम लोग जानते होंगे। वे करीब 16 साल पहले सिनेमा से मुक्त हो गई थी। एक दिन पहले 94 साल की उम्र में सुलोचना जी अपने जीवन से भी मुक्त हो गई। वे सिनेमा जगत की पूजनीय मां थीं। अपने जमाने की मशहूर फिल्म श्री 420’, ‘नागिन’ और ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ जिन दर्शकों को याद होगी उन्हें सुलोचना का चेहरा भी याद होगा। वे जिस फिल्म में मां बनी, वो फिल्म हिट हुई हो या न हुई हो लेकिन सुलोचना सुपर हिट मां रहीं।कई यादगार भूमिकाएं निभाई: सुलोचना लाटकर ने फिल्मों में कई यादगार भूमिकाएं निभाई। सुलोचना लाटकर ने फिल्मों में अमिताभ बच्चन, दिलीप कुमार और धर्मेंद्र जैसे दिग्गज एक्टर्स की मां की भूमिका भी अदा की। सुलोचना ने देश की आजादी के पहले 1940 में अपना फिल्मी करियर शुरू किया था। 30 जुलाई 1928 को जन्मी सुलोचना का उपनाम लाटकर था लेकिन वे अपने फिल्मी नाम नाम सुलोचना से जानी जाती हैं, जो मराठी और हिंदी सिनेमा की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं। इनको लगभग 250  मराठी फिल्मों में अपने अभिनय के लिए जाना जाता है।
सुलोचना जैसी संपूर्ण मां नहीं: हिंदी सिनेमा में 1950 तथा 1960 के दशक में सुलोचना के अलावा मां की भूमिका में किसी दूसरी अभिनेत्री का नाम चला ही नहीं। मां का ममतत्व, मां की चिंताएं, मां का धैर्य, आंसू  जैसे तमाम भाव सुलोचना के अपने चेहरे पर ऐसा चस्पा कर दिया था कि उनके आगे उस जमाने की तमाम फिल्मी माएं पानी भरती थीं। जिन लोगों ने ‘हिम्मतवाला’, ‘फुलवारी’, ‘राजतिलक’, ‘खून भरी मांग’, ‘गुलामी’, ‘प्रेम गीत’, ‘दोस्ताना’, ‘नागिन’, ‘रईस’, ‘कोरा कागज’ से लेकर ‘जीत’ जैसी फिल्मों को देखा होगा वे सुलोचना को शायद ही भुला सकें। फिल्मी मां की भूमिका में दुर्गा खोटे, निरूपाराय, को भी विस्मृत करना आसान नहीं है। मां हर फिल्म में हीरो के व्यक्तित्व को उभारने वाली भूमिका में होती है। सुलोचना हर भूमिका में संपूर्ण प्रमाणित होती थी। 
सुलोचना की वजह से फिल्में देखी: मुझे याद है कि मैंने सिर्फ सुलोचना की वजह से तमाम फिल्मों को देखा। दिल देके देखो (1959), आई मिलन की बेला (1964),आए दिन बहार के(1966), नई रोशनी(1967), संघर्ष(1968), दुनिया(1968), आदमी(1968), साजन (1969), जॉनी मेरा नाम (1970), कटी पतंग(1970), कसौटी(1974), प्रेम नगर(1974), कोरा कागज़(1974), सन्यासी(1975), गंगा की सौगंध(1978), मुकद्दर का सिकंदर(1978), क्रांति(1981) और अंधा कानून(1983) ऐसी ही फिल्में थीं।

500 फिल्मों में अभिनय किया: सात दशक लंबे अपने फिल्मी करियर ने सुलोचना जी में लगभग 500 फिल्मों में काम किया था। इन्होंने 150 से भी ज़्यादा मराठी फिल्मों, 250 से भी ज़्यादा हिंदी फिल्मों और कुछ दक्षिण भारतीय फिल्मों में भी एक्टिंग की थी। वक्त के साथ उम्र बढ़ी और सुलोचना जी ने खुद को फिल्मों से दूर करना शुरू कर दिया। साल 1986 में आई फिल्म ‘खून भरी मांग’ में ये शत्रुघ्न सिन्हा की मां के रोल में नज़र आई थी। उसके बाद सुलोचना जी ने फिल्मों से एक लंबा ब्रेक ले लिया। फिर ये नज़र आई साल 2003 में धर्मेंद्र की फिल्म ‘टाडा’ में। साल 1999 में भारत सरकार ने सुलोचना जी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके बाद साल 2004 में फिल्मफेयर ने भी इन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया था। (राकेश अचल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं। 45 वर्षों से पत्रकारिता के साथ ही विभिन्न विषयों पर निरंतर लेखन कर रहे हैं। ग़ज़लों और साहित्य संबंधित पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। संपर्क:achalrakesh1959@gmail.com) आगे पढ़िये – https://indorestudio.com/cannes-film-festival-me-ek-avismarneeya-prem-kahanai-fallen-leaves/

 

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