दर्शकों की ख़ामोशी तब ही टूटी, जब ख़त्म हुआ नाटक -‘कोई और रास्ता’

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शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। मंच पर लिटिल थेस्पियन, कोलकाता के कलाकार क्या कर सकते हैं, इसकी एक मिसाल एलटीजी, दिल्ली में हुए एकल नाटक ‘कोई और रास्ता’ में देखने को मिली। इस नाटक में उमा झुनझुनवाला ने ऐसा अभिनय किया कि दर्शक उनके एकालाप में बहते और डूबते चले गये। दर्शकों की ख़ामोशी तब ही टूटी, जब यह नाटक ख़त्म हुआ। नाटक का लेखन ख्यात कवि, नाटककार और रंग निर्देशक प्रताप सहगल ने किया है। इसका प्रभावशाली निर्देशन निलॉय रॉय ने किया है। वे खुद भी सिद्धहस्त रंग हस्ताक्षर हैं। प्रदर्शन कला उत्सव में हुआ मंचन: नाटक का मंचन, संगीत नाटक अकादमी ने अपने ‘प्रदर्शन कला उत्सव’ के तहत किया। इस उत्सव में अकादमी द्वारा ‘अमृत पुरस्कार’ से सम्मानित कलाकारों की प्रस्तुतियां जारी हैं। अमृत पुरस्कार से 75 साल के वयोवृद्ध प्रताप सहगल भी नवाज़े गये हैं। मंचन के दौरान श्री सहगल के साथ ही अकादमी के उप सचिव सुमन कुमार और दिल्ली में रंगकर्म से जुड़े बहुत से कलाकार और संस्कृतिकर्मी भी मौजूद थे।एक मध्यम वर्गीय लड़की की कहानी: नाटक इंदु नाम की एक मध्यम वर्गीय मगर पढ़ी-लिखी लड़की की कहानी है। कहानी एक आम भारतीय महिला से अलग नहीं है। नाटक में इंदु के उसी परंपरागत क़िरदार को उमा झुनझुनवाला मंच पर जीती हैं। रिसेप्शिनिस्ट की नौकरी लगने के बाद इंदु को ऑफिस में नये साथी गौतम से प्यार हो जाता है। उतार-चढ़ावों के बाद उनकी शादी होती है। परंतु यह शादी इंदु की ज़िदंगी पर एक पहाड़ बनकर टूटती है। गौतम जिस एक कमरे और किचन वाले घर में रहता है, वहाँ उसके माता-पिता और 8 छोटे भाई-बहन पहले से ही है। इंदु के सपने इस परिवार की ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबकर दम तोड़ने लगते हैं। बाद में दोनों एक अलग फ्लैट में रहने चले जाते हैं। मगर गौतम को लगता है कि इंदु ने उसे परिवार से अलग कर दिया है। नाराज़ गौतम इंदू से  बात करना बंद कर देता है। साथ रहकर भी इंदु फिर अपनी टूटन और अकेलेपन को जीने लगती है। गौतम करने लगता है इंदु पर शक: एकाकी होती इंदू गौतम के दोस्त नवीन से बातें कर अपना अकेलापन बांटने लगती है। परंतु गौतम पत्नी के चरित्र पर शक करने लगता है। नवीन को राखी बाँधने के बाद भी यह शक नहीं जाता। इंदू के साथ गौतम मारपीट करने लगता है। एक रात पति के हमले से घबराकर इंदु अपनी सहेली वीणा के घर चली जाती है और फिर दोनों में तलाक हो जाता है। बाद में नवीन, वीणा और मां के कहने पर वीणा एक बिज़नेसमैन कमल के शादी कर अपनी नई ज़िदंगी शुरू करती है। इस तरह वह पारंपरिक स्त्री की तरह घुट-घुटकर जीने और अपनी ज़िदंगी को तबाह होते देखने की जगह एक नई नारी की तरह जीवन के नये सुखद रास्ते को अपना लेती है। वह एक जागरुक अस्तित्व वाली महिला में बदल जाती है। एक आम स्त्री के जीवन का सच: इस नाटक की कहानी आम ज़रूर है, मगर इसकी बड़ी ख़ूबी इसका एक आम स्त्री के जीवन से जुड़ा होना है, यही सामाजिक सत्य भी है। इसीलिये यह कहानी दर्शकों को हिलने का मौका नहीं देती। ऊमा इस कहानी में इंदु के चरित्र, उसकी आत्मा, अंर्तमन के संभाषण, उसकी देह भाषा, उसकी भावनाओं को बेहद उत्कृष्ट तरीके अभिव्यक्त और अभिनीत करती हैं। अपने अनुभवी अभिनय से वे इंदु के किरदार को और भी सशक्त बना देती हैं। मंच पर उनके साथ लिटिल थेस्पियन के चार  कलाकारों का भी उपयोग किया गया है। मगर ये कलाकार मंच पर मां, गौतम, नवीन, चायवाला, बाराती, सहेलियां जैसे सहयोगी पात्रों के भूमिका में मौजूद हैं। इस तरह से इस नाट्य एकालाप में पूरा दारोमदार ऊमा झुनझुनवाला पर ही हैं। वे पूरे डेढ़ घंटे तक अनथक, इंदु पर बीती यादों की तहों को खोलते हुए कथानक को आगे बढ़ाती हैं। अंत में वे पूरी ‘रंगमय ऊर्जा’ के साथ स्त्री जीवन को एक नई आशा दे जाती हैं। निलॉय रॉय का प्रशंसनीय निर्देशन: मंच पर इस नाटक की प्रभावशाली प्रस्तुति के पीछे निर्देशक निलॉय रॉय की कल्पना की जितनी प्रशंसा की जाये कम है। वे ख़ुद भी एक बेहतरीन अभिनेता और नाटककार हैं। उन्होंने इंदु के किरदार को रंगमंच पर प्रस्तुत करने के जिस तरह से अवसर पैदा किये हैं, वह कई जगह दर्शकों को झकझोरकर रख देते हैं। मसलन दो दृश्य ख़ासकर याद किये जा सकते हैं। पहला, शक होने पर जब गौतम एक दुपट्टे से, इंदु का गला पीछे से खींचकर दबाने नाकाम कोशिश करता है। दूसरा, जब एक जाल के अंदर पूरे मंच पर लोटते हुए छटपटाती इंदु अपने बदतर हालात को बयान करती है। नाटक की प्रकाश योजना इस प्रस्तुति का एक और उजला पक्ष रही। इनमें चलती ट्रेन के समय साउंड के साथ प्रकाश संचालन या बैक लाइट से सफेद कर्टन पर उभरे इंदु की गहरी व्यथा के दृश्य याद किये जा सकते हैं। इसी तरह नाटक का संवेदना को उभारती संगीत भी अपना पूरा असर छोड़ता है। नाटक के बीच दृश्यों के अनुरूप सैट, प्रॉपर्टीज़ और पहनावों का इस्तेमाल भी बख़ूबी किया गया है। बहुत कम समय में बना यह नाटक: नाटक के बाद उमा जी ने बताया, यह नाटक हमने 20 दिनों की रिहर्सल में तैयार किया। इसी साल जून के अंत में तैयारी शुरू हुई और जुलाई में इसका कोलकाता में पहला मंचन हो गया। उन्होंने कहा-‘मुझे ख़ुशी है कि प्रताप साहब ने मेरे आग्रह पर 20 दिन में यह सोलोलिकी लिखकर दिया’। उन्होंने मंच पर कहा-‘ हमारी क़िस्मत, यह नाटक लिखा गया और हमें प्रस्तुति के लिये दिल्ली में संगीत नाटक अकादमी मंच मिला’। नाटक में सहयोगी कलाकारों की भूमिका संगीता व्यास, पार्वती रघुनंदन, प्रियंका सिंह, इंतेखाब वारसी ने अदा की। वेशभूषा और प्रॉपर्टी का दायित्व भी इंतेख़ाब ने निभाया। सैट मदन गोपाल हलदर और शंकर का रहा। संगीत परिकल्पना मुरारी राय चौधरी और संगीत संचालन अनिंदिया नंदी और सव्यसाची पाल का था। प्रकाश योजना जॉयदीप रॉय की थी।तीन दशक की अनवरत रंग-यात्रा: लिटिल थेस्पियन ने हाल ही में अपने 29 साल पूरे किये हैं। तीसवें वर्ष में प्रवेश के साथ ही इस रंगमंडल ने रंगकर्म के हित में कई घोषणाएं की है। उनपर काम शुरू कर दिया है। इनमें रंग अड्डा को विस्तार के साथ फेलोशिप जैसी योजनाएं शामिल है, बाकी सब पहले की तरह। इसके साथ ही अगले साल ‘जश्ने ए अज़हर’ 19 जनवरी से किया जाना तय हो चुका है। तीस बरस के ‘थेस्पियन’ ने 200 से अधिक प्रॉडक्शन के सैकड़ों शोज़ किये हैं। कई नवोदित कलाकारों को रंगकर्म का प्रशिक्षण दिया है। कोलकाता में हिन्दी,उर्दू रंगकर्म की नई धारा बनाई है। स्व.एसएम अज़हर आलम तो एक उच्च दर्जे के लेखक,निर्देशक,अभिनेता रहे ही, लिटिल थेस्पियन की संस्थापक निदेशक उमा जी ख़ुद भी 50 से अधिक नाटकों में अभिनय के साथ ही इससे दो गुना नाटकों का निर्देशन किया है। अब उनकी अनुशासित युवा कला टीम के साथ बेटी गुंजन भी उनका हाथ बटां रही हैं। आगे पढ़िये –

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