अजित राय, इंदौर स्टूडियो। विवादों में आई फ़िल्म ‘ओह माय गॉड-2’ शुक्रवार को रिलीज़ हो गई। मेरे विचार में भारत जैसे देशों के लिए यह एक जरूरी और शिक्षाप्रद फिल्म है। इस फिल्म को देश के हर स्कूल-कॉलेज में दिखाया जाना चाहिए। निर्देशक अमित राय ने फिल्म में बड़े तार्किक और दिलचस्प सिनेमाई कौशल के साथ, यह बात उठाई है कि हमारे स्कूली पाठ्यक्रम में सेक्स एजुकेशन क्यों जरूरी है?पुजारी के बेटे से जुड़ी कहानी: फ़िल्म की कहानी के अनुसार, कांति मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुजारी और शिवभक्त हैं। वे जिला अदालत में अपने बच्चे का अभिभावक होने के नाते खुद पर, स्कूल पर और अज्ञानता फैलाने में जुटे सेक्स की दुकान चलाने वाले लोगों पर मुकदमा कर देता है। दरअसल उनका बेटा दोस्तों के बहकावे में आकर हस्तमैथुन की आदत का शिकार हो जाता है। स्कूल के बाथरूम में हस्तमैथुन करने के कारण उसे स्कूल से निकाल दिया गया है और वह डिप्रेशन में आत्महत्या करने की कोशिश करता है। पिता अपने बेटे को बचाने और सामान्य बनाने की लाख कोशिशें करता है पर कुछ नहीं होता।
सेंसर बोर्ड का ‘ए’ सर्टिफिकेट क्यों: अपने भक्त का मार्गदर्शन करने, मदद करने साक्षात भगवान शिव (अक्षय कुमार) आते हैं। सेंसर बोर्ड के दबाव में इस चरित्र को शिव के गण में बदल दिया गया है जिसके कहने पर वह कोर्ट में केस करता है। इंटरवल के बाद की पूरी फिल्म इस मुकदमे की सुनवाई पर आधारित है। आश्चर्य है कि इसे सेंसर बोर्ड ने ‘ ए ‘ (वयस्क) सर्टिफिकेट और + 18 रेटिंग क्यों दी जबकि पूरी फिल्म में न तो कोई सेक्स सीन है न अश्लील संवाद, कोई चुंबन आलिंगन तक नहीं है।
ना बड़बोलापन ना डॉयलॉगबाजी: इस फिल्म में कहीं कोई उपदेश या बड़बोलापन या डायलॉगबाजी नहीं है। सबकुछ सिनेमाई व्याकरण में और मनोरंजन की शैली में कहा गया है। जिन लोगों ने अमित राय की पिछली फिल्में ( रोड टू संगम, आई पॉड) देखी है, उन्हें पता है कि वे एक जीनियस डायरेक्ट र- राइटर हैं। भीड़ के दृश्यों से अपना फोकस निकाल लेने में उनकी मास्टरी है। सांसारिक जीवन में मनुष्य के आपसी रिश्तों के मेलोड्रामा और उसके तनावों का सिनेमाई व्याकरण उन्हें आता है जिसके अभाव में अधिकांश मुंबईया फिल्में पटरी से उतर जाती है। इस फिल्म की पटकथा भी उन्होंने ही लिखी है जो इतनी कसी हुई हैं कि दर्शकों को एक बार भी मोबाईल फोन देखने का मौका नहीं देती। (मुंबई में फ़िल्म के प्रीमियर के दौरान अभिनेता पकंज त्रिपाठी के साथ समीक्षक अजित राय)
अक्षय और पकंज त्रिपाठी का दमदार अभिनय: अमित राय ने अक्षय कुमार जैसे टाइप्ड अभिनेता से बहुत उम्दा काम करवा लिया है लेकिन यह फिल्म तो पंकज त्रिपाठी की है। उनका अभिनय दमदार तो हैं ही, बेमिसाल भी है। उनके चेहरे की मासूमियत और मौन की अभिव्यक्तियां कमाल की है। वे एक क्षण में जादू करना जानते हैं। ऐसे दिग्गज अभिनेता जब किसी सुपर स्टार के साथ काम करते हैं तो इसके कई खतरे होते हैं। पंकज त्रिपाठी ने उन खतरों से खुद को बचाते हुए अक्षय कुमार के साथ अच्छी केमिस्ट्री बनाई है।
छोटी भूमिकाओं में भी बेहतरीन अभिनय: फ़िल्म में छोटी-छोटी भूमिकाओं भी कलाकारों से उम्दा काम किया है। चाहे उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुजारी बने गोविन्द नामदेव हैं या डाक्टर बने बृजेन्द्र काला या केमिस्ट के रोल में पराग छापेकर हों या स्कूल के मालिक बने अरुण गोविल। चेहरे पर नकाब चढ़ाए वेश्या की भूमिका में आर्या शर्मा (लंदन के लेखक तेजेन्द्र शर्मा की बेटी) ने केवल आंखों के एक्सप्रेशन से कोर्ट में पूरी बात कह दी है। वे आमिर खान के साथ लाल सिंह चड्ढा में भी ऐसा ही उम्दा काम कर चुकी हैं। सेशन जज की भूमिका पवन मल्होत्रा ने निभाई है जिन्होंने जगह जगह अपने इंप्रोवाइजेशन से पटकथा में अच्छा प्रभाव जोड़ा है। वकील की भूमिका में यामी गौतम है।
महाकाल की नगरी प्रतीक मात्र: फिल्म में उज्ज्यनी नगरी तो प्रतीक मात्र है। संवादों में मालवा की भाषा का स्पर्श हैं जिससे हास्य और करूणा का रस सृजित होता है। ‘ओह माय गॉड -2 ‘ का पूरा माहौल हमारे गांवों कस्बों का है। एक और ख़ास बात यह है कि अभिनेता जितनी बात संवाद बोलकर नहीं बताते, उससे अधिक अपने हाव-भाव से अभिव्यक्त करते हैं। दुनिया भर के लोगों को मुंबईया फिल्मों से शिकायत ही यहीं रहती है कि यहां अभिनेता लगातार बोलते ही रहते हैं और कैमरा नब्बे प्रतिशत केवल उनके चेहरे के क्लोज शाट लेने में लगा रहता है। अमित राय ने इन दोनों बातों से बचते हुए फिल्म में एक आकर्षक माहौल और लोकेल रचा है।
सेंसर बोर्ड ने लगाये 24 कट: सेंसर बोर्ड के कुल चौबीस कट और अड़ियल रवैए के बावजूद फिल्म पर इसका कोई असर नहीं दिखाई देता और फिल्म अपनी बात कह जाती है। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि यह वहीं सेंसर बोर्ड है जो ‘ आदिपुरुष को बिना रूके पास कर देता है और ओह माय गॉड को यूए के बदले ए (वयस्क) और +18 साल रेटिंग सर्टिफिकेट देता है जबकि कई मुस्लिम देशों में फिल्म को केवल एक कट के साथ और +12 साल रेटिंग के साथ रिलीज किया जा रहा है। यहां यह भी याद दिलाना जरूरी है कि इसी साल 76 वें कान फिल्म समारोह में मोली मैनिंग वाकर की ब्रिटिश फिल्म ‘ हाऊ टू हैव सेक्स ‘ को अन सर्टेन रिगार्ड खंड में बेस्ट फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला था। (अजित राय अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म उत्सवों के विशेषज्ञ और प्रख्यात कला एवं सिने समीक्षक हैं।) आगे पढ़िये –