धीरज कुमार, इंदौर स्टूडियो। ‘मैं जनार्दन को नहीं जानती, मेरा ‘मन वृन्दावन’ है जहाँ गोपियों के कृष्ण बसते हैं’। यह संवाद है नाटक ‘मन वृन्दावन’ का, इस नाटक का सफल मंचन दिल्ली के श्रीराम सेंटर में हुआ। माधुरी सुबोध लिखित इस नाटक का निर्देशन नीलेश दीपक ने किया। नाटक में छलके मीराबाई के दर्द ने दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया। अभिनय, मंच परिकल्पना, प्रकाश योजना, वेशभूषा और संगीत ने भी कलात्मक और भव्य प्रस्तुति को यादगार बना दिया।निर्देशक फेलोशिप के तहत हुआ मंचन: नाटक का मंचन, माधुरी सुबोध निर्देशक फेलोशिप के अन्तर्गत हुआ। सहयोग आद्यान्तरा संस्था ने किया। मंच पर इस नाटक का प्रदर्शन हिन्दी रंगभूमि रंगमंडल के कलाकारों ने किया।
मीराबाई के जीवन पर आधारित नाटक: ‘मन वृन्दावन’ भक्ति कालीन कवियत्री मीराबाई के जीवन पर आधारित है। मध्यकाल में मीराबाई और सूरदास कृष्णभक्ति में सबसे बड़े नाम रहे हैं। आज भी आम लोगों से लेकर गायक कलाकार तक मीरा के भजनों को मनोयोग से गाते हैं। नाटक ‘मीराबाई’ में बचपन, शादी और पति के मृत्यु के बाद वैराग्य जीवन की कहानी सामने आती है। बचपन में मीरा अपनी दादी से पूछती है मेरा दुल्हा होगा कौन? तो दादी, कृष्ण की प्रतिमा थमाते हुए कहती है कि यही तुम्हारे दुल्हा हैं।
आजीवन कृष्ण की भक्ति: दादी के इस कथन के बाद से ही मीरा कृष्ण भक्ति में डूब गईं। वे जीवन के अंत तक कृष्ण की भक्ति में ही लीन रहीं। मीरा अपने पति से कहती है -‘ मैं जनार्दन को नहीं जानती, मेरा ‘मन वृन्दावन’ है जहाँ गोपियों के कृष्ण बसते हैं’। मेड़ता राजस्थान में राव दुदा जी के परिवार में मीराबाई का जन्म हुआ। माता-पिता के निधन के बाद परवरिश दादा-दादी ने की। मेवाड़ के राजा भोजराज से शादी हुई। पति की अकास्मिक निधन के बाद और ससुराल में देवरों की यातना से परेशान होकर उन्होंने वैराग्य धारण कर तीर्थ पर जाना पसंद किया।
एक कलात्मक नाट्य प्रस्तुति: गीत, संगीत, नृत्य और अभिनय से सजी इस कलात्मक नाट्य प्रस्तुति में मीरा की जीवन य़ात्रा और उनकी कृष्ण भक्ति को दर्शाया गया है। हिन्दी रंगभूमि के कलाकारों ने नाटक को मनोरम और विलक्षण स्वरूप प्रदान किया है।
मीरा की भूमिका प्रभावशाली निशा: एक तरफ इस क्लासिक नाट्य प्रस्तुति में निशा उपाध्याय ने मीराबाई की भूमिका में नाटक की गति को बाँधकर दर्शकों को भाव-विभोर किया तो भोजराज में गौरव कुमार ने प्रेम दृश्यों को सारगर्भित स्वरूप प्रदान किया। जयमल की भूमिका में कृष्णा राजपूत, उमादे में इरम, उदाबेन की भूमिका में दीपिका, विक्रमादित्य में निर्भय और बीजावर्गी महाजन में सतीश पराशर ने दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ा।
मंच और नेपथ्य के कलाकार: नाटक की भव्य मंच परिकल्पना श्याम कुमार साहनी की थी जो नाटक को समीचीन अर्थ प्रदान करता है। प्रकाश विन्यास दिव्यांग श्रीवास्तव का रहा जिन्होंने नाटक के कथ्य का संप्रेषण आसान बनाया। मेकअप मुकेश झा ने किया। संगीत की परिकल्पना देवव्रत ने की। गीतों को स्वर ख़ुद देवव्रत के साथ कनुप्रिया झा ने दिया। नृत्य की संरचना आस्था गुप्ता ने की। आगे पढ़िये –
दर्शकों की ख़ामोशी तब ही टूटी, जब ख़त्म हुआ नाटक -‘कोई और रास्ता’