दुनिया देखना था, इसलिये बना सिनेमैटोग्राफ़र: संतोष सिवन

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अजित राय, इंदौर स्टूडियो। ‘मैं इसलिए सिनेमैटोग्राफर बना क्योंकि मुझे यात्राएं करनी थी और दुनिया को देखना था। आप देखिए कि एक जीवन हमारे हिंदुस्तान को भी शूट करने के लिए काफी नहीं है। मैं अभी तक भारत में ही कई ऐसी जगहों पर शूटिंग नहीं कर पाया जिन्हें मैं वर्षों से शूट करना चाहता हूं’। मशहूर सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन ने यह बात उनसे हुई बातचीत में कही। ख़ास बात ये है कि संतोष सिवन को 77 वें कान फिल्म समारोह में प्रतिष्ठित ‘पियरे आंजनेऊ एक्सीलेंस इन सिनेमैटोग्राफी’ सम्मान से नवाज़ा गया है। इस सम्मान के अवसर पर ही कैन्स फिल्म महोत्सव में उनसे यह विशेष बातचीत हुई।  कमाल की रही सिनेमाई यात्रा: अपनी लंबी सिनेमाई यात्रा के बारे में संतोष ने कहा-‘यह यात्रा अमेजिंग रहीं हैं। मुझे दस साल पहले जब अमेरिकन सिनेमैटोग्राफिक सोसायटी की सदस्यता मिली तो मैं आसानी से हॉलीवुड में बस सकता था। लेकिन मैंने भारत में रहना पसंद किया क्योंकि मैं यहां जो सिनेमा सोच सकता हूं वह वहां नहीं हो सकता’। अपने फ़न के माहिर इस सहज, सरल व्यक्तित्व ने कहा – ‘भारत में भी करने को इतना सारा काम है कि कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। हालांकि मुझे दुनिया में कहीं भी काम करने का अवसर मिलता है तो मैं काम करता हूं और वापस अपने देश भारत आ जाता हूं’।कान फिल्म समारोह की प्रशंसा: कान फिल्म समारोह की प्रशंसा करते हुए संतोष ने कहा -‘आप देखिये, जिस पैशन, कमीटमेंट और स्टाइल के साथ कान फिल्म समारोह आयोजित किया जाता है उससे हम भारतीयों को सीखना चाहिए। ये लोग केवल ऐक्टर डायरेक्टर को ही नहीं तकनीशियन को भी सम्मान देते हैं। इस बात से कौन इनकार करेगा कि सिनेमा को बनाने में तकनीशियनों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उनके बिना आप फिल्में नहीं बना सकते’। सबसे अच्छा है खेती-किसानी का काम: उन्होंने कहा – ‘किसानों पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाते हुए मैंने महसूस किया दुनिया में सबसे अच्छा काम खेती-बाड़ी है। यदि मैं सिनेमैटोग्राफर नहीं होता तो किसान होता। मैंने सोचा कि मेरा बेटा शहरी प्रदूषण से दूर प्राकृतिक माहौल में पले तो मैंने पांडिचेरी में कुछ जमीन खरीदी और एक घर बनाया। उसे भी यह सब अच्छा लगता है। मैं सिनेमा से ब्रेक लेकर खेती-बाड़ी करूंगा। मैं दोनों काम एक साथ नहीं कर सकता। अभी मेरी जितनी शूटिंग बाकी है वह सब पूरी करके मैं सिनेमा से लंबा ब्रेक लूंगा और खेती-बाड़ी करूंगा’। (फाइल फोटो: अभिनेत्री एश्वर्य राय के साथ संतोष सिवन )पैन इंडियन फिल्मों का नया परिदृश्य: यह पूछे जाने पर कि जब हम भारतीय सिनेमा के बारे में सोचते हैं तो केवल मुंबईया सिनेमा ही ध्यान में आता है जो सच नहीं है। बंगाल, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु का सिनेमा भी बहुत बड़ा है तो हम भारतीय सिनेमा किसे कहेंगे? उन्होंने कहा कि अब हालात बदल रहे हैं। ऐसा धीरे-धीरे होने लगा है। अब हम एक नया शब्द प्रयोग में लाने लगे हैं – पैन इंडियन फिल्म। हाल के वर्षों में दक्षिण भारतीय फिल्में उत्तर भारत खासकर बॉलीवुड में बहुत लोकप्रिय हुई। बॉलीवुड ने भी दक्षिण का फॉर्मूला अपनाना शुरू किया।ओटीटी की सिनेमा को बड़ी चुनौती: संतोष सिवन ने आगे कहा -‘वहीं बिग हीरो, सुपर हीरो, लार्जर दैन लाइफ और ओटीटी के कारण आपको थियेटर के लिए बहुत बड़ा करना पड़ रहा है दिखाना पड़ रहा है। अब बॉलीवुड में भी दक्षिण का लार्जर दैन लाइफ का फार्मूला डामिनेट कर रहा है। इसलिए अब बॉलीवुड भी बदल रहा है’। विविध सिनेमा की पहचान बनी रहेगी:  अनुभवी सिनेमैटोग्राफ़र ने कहा-‘ मेरा मानना है कि बॉलीवुड या साउथ की फिल्में दोनों एक नहीं हो सकते। मिसाल के लिये आप मलयाली सिनेमा को ही लीजिये। उन्हें अपना हाऊस प्लान चाहिए। आप याद कीजिए कि राज कपूर और करण जौहर ने भी ऐसे प्रयोग किए थे। पर क्या हुआ। ये कभी एक नहीं हो सकते। भारत में हर तरह के सिनेमा का चरित्र बना रहेगा क्योंकि यह संस्कृति से जुड़ा हुआ है’। संदीप रेड्डी वांगा और एटली जैसे दक्षिण के फिल्म निर्देशकों द्वारा बॉलीवुड फिल्में बनाने के ट्रेंड पर उन्होंने कहा कि यह तात्कालिक प्रवृत्ति है। (अजित राय प्रख्यात फिल्म और कला समीक्षक हैं। दुनिया के प्रमुख फिल्म उत्सवों को वर्षों से कवर कर रहे हैं। साथ ही एक रचनात्मक व्यक्तित्व के रूप में कला के विविध क्षेत्रों में अपना विशिष्ट योगदान दे रहे हैं।) आगे पढ़िये – https://indorestudio.com/cannes-film-festival-me-santosh-sivan/

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