शकील अख़्तर,इंदौर स्टूडियो। उन अभिभावकों का जीवन कितना मुश्किल होता है जिनके घर में सामान्य से अलग कोई ऐसा बच्चा है, जिसे हर वक्त देखभाल की ज़रूरत है। ऐसी परिस्थिति में एक माँ को सबसे ज़्यादा वेदना और ज़िम्मेदारियों से गुज़रना पड़ता है। जया सरकार का लिखा नाटक -‘एक फ़ैसला ऐसा भी’ एक बच्ची के हालात से जुड़ी कहानी है। जया जी ने जिस संवेदनशीलता के साथ सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारी को लेकर यह नाटक लिखा और प्रस्तुत किया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाये कम है। ऐसे विषय पर लिखने और उसे रंगमंच तक लाने का साहस करना आसान नहीं है। यह रंगमंच के उन निर्देशकों के लिये सबक है जो पुराने नाटकों और उनके घिसे-पिटे विषयों को ही मंच पर प्रस्तुत कर ख़ुश होते रहते हैं। नये विषयों को न तो उठाने की हिम्मत करते हैं, न ही नये विषयों को मंच पर लाने का जोखिम ही लेते हैं।
दो बेटियों से जुड़ी नाटक की कहानी : यह एक ऐसे माता-पिता के इर्द-गिर्द घूमती है जिनकी दो बेटियाँ हैं। एक होनहार और प्रतिभाशाली। दूसरी मानसिक पक्षाघात (सेरेब्रल पाल्सी) जैसी बीमारी से ग्रस्त। एक का नाम है नेहा, दूसरी का नुपुर। दोनों के जीवन में क्या कुछ घटता है और इसका प्रभाव कैसे पूरे परिवार पर पड़ता है, माँ इन बेटियों की परवरिश और उनके जीवन को बचाने के लिये क्या कुछ करती और फैसला लेती है, यही इस नाटक में दिखाया गया है।
यूएई के बाद दिल्ली में हुआ नाटक का मंचन: दिल्ली में बीते दिनों इस नाटक का डिफेंस सर्विसेस ऑफिस इंस्टीट्यूट में ‘जनमित्र’ संस्था के सहयोग से हुआ है। इस मंचन का निर्देशन प्रमोद मह्डेश्वर ने किया था। मंचन के लिये उनकी पूरी टीम दो हज़ार किलोमीटर का सफ़र तय कर गोवा से दिल्ली पहुँची। सभी कलाकारों ने इस संवेदशनशील नाटक में सराहनीय अभिनय किया। बड़ी बात ये है कि इस नाटक के यूएई में तीन प्रदर्शन पहले ही चुके हैं। परंतु देश में इस नाटक का यह पहला प्रदर्शन था। अब इस नाटक का इंदौर में दूसरा प्रदर्शन ‘सूत्रधार’ संस्था द्वारा होने जा रहा है। इस बार नाटक को भोपाल के कलाकार प्रस्तुत करेंगे। रंगमंच पर एकदम नये विषय का नाटक:रंगमंच के लिये लिखा गया यह एक नया और अलग तरह का नाटक है। ऐसे विषय को चुनने और उसे रंगमंच तक लाने का फैसला आसान नहीं है, इस साहस का श्रेय लेखिका जया सरकार को जाता है। चूँकि वे एक संवेदनशील कवि भी हैं, इसलिये वे नाटक में बहुत सी जगहों पर पात्रों के संवादों के ज़रिये दिल को छूने वाली बातें कहती हैं, बड़ी कशमकश और उलझन पैदा कर देती हैं। नाटक की बड़ी खूबी ये भी है कि ये सिर्फ समस्या को उठाता भर नहीं है,उसके समाधान को भी दर्शकों को सामने रखता है। इस तरह यह नाटक उद्देश्यपूर्ण को एक नई दिशा दे जाता है।
कसा निर्देशन और सराहनीय अभिनय: नाटक का निर्देशन प्रमोद मह्डेश्वर ने किया है। वे दुबई में भी एक अलग टीम के साथ इस नाटक का निर्देशन कर चुके हैं। चूँकि वे गोवा के ही स्थापित रंगमंच कलाकार और प्रशिक्षक हैं इसलिये वे स्थानीय कलाकारों की एक नई टीम के साथ नाटक को बाँधने में सफल रहे। नाटक में नुपुर की भूमिका में सरीन ने बहुत अच्छा अभिनय किया। वे पूरे समय अपने किरदार में ही रहीं और दर्शकों में इस तरह के रोगियों के प्रति सहानुभूति जगाने और अपनापन पाने में सफ़ल रहीं। उनकी माँ दीपा के भूमिका में प्रांजल मराठे ने बखूबी अपने किरदार को निभाया। उनकी भावप्रवण अभिव्यक्ति ने बहुत बार दर्शकों को उनके भीतर चल रहे द्वन्द तक पहुँचाया। पिता अतुल के रूप में ज्ञानेश्वर पारस्कर ने कुछ अतिरेक के साथ सराहनीय अभिनय किया। वहीं चैती कड़कड़े, कृष्णा माजिक,अर्जुन गवास,प्रमोद म्हाडेश्वर ने अपनी भूमिकाओं को संतुलित ढंग से प्रस्तुत किया।
‘संभावना गीत’ के लिये हो और भी संभावना: नाटक का थीम गीत ‘कुछ हमारी आँखों में..संभावना’ शास्त्रीय गायक और संगीतकार गौतम काले ने तैयार किया है। इसका नाटक के अंत में उपयोग होता है। परंतु इस अच्छे गीत का नाटक में प्रारंभ के साथ कुछ और अनुकूल जगहों पर प्रयोग के बारे में विचार किया जा सकता है। चूँकि यह नाटक किसी ऑडिटोरियम में नहीं बल्कि एक हॉल में मंच बनाकर किया गया था। इसलिये कलाकारों की एंट्री-एक्ज़िट को लेकर अपनी दिक्कतें रहीं। इसका मंच सज्जा पर भी प्रभाव पड़ा। इसके बावजूद कलाकारों ने इन मुश्किलों को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया। प्रकाश योजना और पार्श्व संगीत नाटक के अनुकूल रहा। मंच पार्श्व की ज़िम्मेदारियों का नितिन पोकले,प्रमोद सावंद और दीपक गवास ने सफल निर्वहन किया।मानसिक पक्षाघात की बीमारी में होता है क्या?: मानसिक पक्षाघात या सेरेब्रल पाल्सी एक ऐसी बीमारी है जिसके लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं। यह बीमारी हावभाव और गति की अवस्थाओं को प्रभावित करती है। इस वजह से बोलने,चलने-फिरने,सुनने-देखने पर असर पड़ता है। माँस पेशियों में तनाव और अकड़न पैदा हो जाती है। ऐसे विकारों वाले बच्चों के शारीरिक विकास में भी बाधा पहुँचती है। उनके मनो-मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है। ज़ाहिर है ऐसे बच्चों को बहुत ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है। हाँ,अगर उपचार शुरू करने पर रोगी की क्षमताओं में काफी हद तक सुधार की संभावना पैदा हो जाती है।