एक लेखक की अनुभूतियों का नाट्य संग्रह ‘ख़्वाबों के सात रंग’

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अभिराम भडकमकर, इंदौर स्टूडियो। सात लघु नाटकों का संग्रह ‘ख़्वाबों के सात रंग’ जब मेरे हाथ में आया तो उसकी पृष्ठभूमि करुणा से भरी थी। इस नाटक संग्रह के लेखक आलोक शुक्ला हैं। अपनी पुस्तक की भूमिका में वे कहते हैं- ‘ हमारे जीवन में बहुत सी घटनाएं घटित होती हैं, उनमें से कुछ लोगों को दिशा देती हैं, कुछ सोचने पर मजबूर करती हैं, और मेरे जैसा कोई लेखक उन्हें शब्द दे देता है, और फिर उनसे कोई कहानी, नाटक या कविता बन जाती है। ‘ख़्वाबों के सात रंग’ ऐसी ही अनुभूतियों वाले 7 नाटकों का संग्रह है’। आइये जानते हैं संग्रह के इन्हीं नाटकों के बारे में। समीक्षा के साथ विवरण में प्रस्तुत चित्र लेखक आलोक शुक्ला के अभिनय और अन्य कार्यक्रमों से सम्बंधित हैं। बूढ़े व्यक्ति का एक सपना: संग्रह में प्रस्तुत ‘ख़्वाब’ एक पात्रीय नाटक है, जिसमें एक बूढ़े व्यक्ति का एक सपना है और उस बूढ़े की खड़ी की हुई दुनिया में उसका परिवार केवल एक सपना मात्र है जिसे देख दर्शक सहम जाता है। ‘उसके साथ’ दो पात्रों का नाटक है। इसमें एक भिखारन फुटपाथ पर बच्चे को जन्म देती है। उसके बाद उस स्त्री के जीवन संघर्ष पर यह नाटक है। आलोक इस नाटक में अभिनय भी करते हैं। उन्होंने यह नाटक रेडियो के लिये भी लिखा था।हास्य लघु नाटक आत्महत्य::;:’आत्महत्या’ एक हास्य-व्यंग्य लघु नाटक है, ऐसे गंभीर विषय पर हास्य-व्यंग्य नाटक लिखना आसान नहीं है। आलोक ने इसमें ‘बघेली’ भाषा का इस्तेमाल किया है। उन्होंने लिखा है कि नाटक के लेखन के बाद जब मंचन का समय आया तो हमने इसमें कुछ समसामयिक घटनाओं और सन्दर्भों को भी रखा। इसके बाद कभी युवा पीढ़ी में से जब भी कोई यह नाटक करना चाहें तो उन्हें बेझिझक इसमें बदलाव करते हुए उसमें तात्कालिक प्रसंग और समसामयिक परिस्थितियों व घटनाओं का उपयोग करना चाहिए। शायद ही कोई लेखक इस तरह की अनुमति देता है। यथार्थवादी और ऍब्सर्ड नाटक: संग्रह में प्रस्तुत ‘इंसान’ एक नुक्कड़ नाटक है। यह नाटक यथार्थवादी भी है और ऍब्सर्ड भी है। उनका एक नाटक ‘एक्टिंग वर्कशॉप’ अभिनय प्रशिक्षण और एक भूमिका निभाते समय एक अभिनेता की मानसिक अवस्था और मानसिक तनाव पर आधारित है। संग्रह में दो फुल लेंथ नाटक: ‘बाप रे बाप’ नामक दो अंकों वाला एक फुल लेंथ नाटक है जो बहुत ही मज़ेदार है। इसमें डांस, ड्रामा, कॉमेडी, आंसू भी है और रहस्य है और मज़े की बात यह है कि उनका अपना एकांकी नाटक ‘ख्वाब’ इसी पर आधारित है। उसके बाद एक फूल लेंथ नाटक है- ‘देखो ना’। यह एक फैंटेसी नाटक है। एक राज्य में ‘देखो ना’ नाम की बीमारी हो गई है, और फिर राजा ने जो फरमान जारी किया, उससे सारा हंगामा, अराजकता मच गई। एक तरह से इसमें हम अपने आस-पास की वास्तविकता को देख सकते हैं। बहुत अलग तरह के नाट्य प्रयोग: संग्रह में दिये गये सभी नाटक अलग तरह के प्रयोग हैं। ये नाटक हमारे आसपास के समाज का दर्पण, हमारे मन की धड़कन प्रस्तुत करते हैं। यह नाटक समसामयिक भी है और महत्वपूर्ण भी। एक ही शैली में बंधे बिना अलग-अलग संभावनाओं को तलाशने वाले आलोक शुक्ला आज रंगमंच से मिली हुई ताकत के दम पर खड़े हैं। उनका काम आशा जगाने के साथ आश्वास्त करता है। (नाट्य संग्रह के समीक्षक अभिराम भडकमकर जाने-माने नाटककार और लेखक हैं। उनकी यह समीक्षा 30 मार्च 2024 के ‘सामना’ मुम्बई में मराठी में प्रकाशित हुई है। इसे इंदौर स्टूडियो के लिये अभिनेता विजय मिश्रा ने अनुदित किया है।) https://indorestudio.com/

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