कला प्रतिनिधि, इंदौर स्टूडियो। इन्द्रवती नाट्य समिति द्वारा 18 दिवसीय फगुआ जोहार का आयोजन जारी है। पाँचवे दिन सीधी के इन्द्रवती लोक कला ग्राम हिनौता, सोनाखाड़, कुकुड़ीझर और पुराना बस स्टैंड में फाग महोत्सव का आयोजन हुआ। इन जगहों पर फाग गायन के कलाकारों ने डग्गा, उचटा और तीन ताला फाग गाकर श्रोताओं का मन मोह लिया। छठवें दिन फूलमती माता मंदिर, बटौली मंदिर, यूसीएन मास पब्लिक स्कूल और उत्तरी करौंदिया में फाग महोत्सव की बहार देखने को मिली। इसमें सभी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। संयोजन सूर्यभान कोल, रामचन्द्र रजक, सूर्यप्रकाश सिंह और अंकुश सिंह ने किया। कजरउटी हो मोर चोरी गई भय: पांचवे दिन फाग गायकों ने “कजरउटी हो मोर चोरी गई भय कजले कय बेरा” गीत विशेष तौर पर प्रस्तुत किया। आयोजन में बतौर कलाकार रजनीश कुमार जायसवाल, प्रजीत कुमार साकेत, मणिराज कोल, छोटेलाल कोल, रामकुमार विश्वकर्मा, लालबहादुर साकेत, रामसुंदर बढ़ई, बब्बू रावत और निर्भय द्विवेदी शामिल हुए। इन्द्रवती नाट्य समिति के रंग निदेशक रोशनी प्रसाद मिश्र ने कहा कि इस महोत्सव से हमारी पुरानी बघेली लोक संस्कृति को पुनर्जीवन मिल रहा है।
सोशल मीडिया पर उत्सव की चर्चा: समिति के संरक्षक डॉ अनूप मिश्र ने कहा, फगुआ जोहार “होली मिलन कार्यक्रम” एकता का मिसाल आयोजन है। सोशल मीडिया पर भी इसे ख़ासा समर्थन मिल रहा है। छठवें दिन नीरज कुंदेर, रजनीश कुमार जायसवाल, प्रजीत कुमार साकेत, निर्भय द्विवेदी, हनुमान रावत, रामप्रसाद रावत, राजकुमार प्रजापति, धनेश प्रजापति, शिवनाथ कोल, मनबहोर कोल, सूर्यभान कोल घनश्याम दास, परदेसी ,दीपक कुमार पनिका, रमाकांत, सूर्यप्रकाश सिंह, धीरज, विकास हलवाई, राजू, रुचि सिंह, पूर्णिमा श्रीवास्तव, अर्चना तिवारी, आरती सिंह, किरण सिंह बघेल, माया सिंह मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
लोक संस्कृति का प्रमुख त्यौहार: बघेलखंड की पारंपरिक लोक संस्कृति और तीज त्यौहार में फगुआ जोहार “फाग महोत्सव” प्रमुख त्यौहार माना जाता है। इस परंपरा में बसंत पंचमी से लेकर होली के बाद बुढ़वा मंगल और रंगपंचमी तक फाग गाने की परंपरा रही है। इस दौरान गांव के सभी फाग गायक दिनभर के काम काज को निपटाने के बाद रात्रि में दो से तीन घंटे फाग गायन करते थे। इसमें बच्चे, बूढ़े और नौजवान सभी शामिल रहते थे। इस परंपरा को देख और सुनकर नई पीढ़ी के कलाकार ढोलक, नगरिया, मजीरा, झेल, लोटा, बंसी, थाली बजाना सीखने के साथ ही फाग गायन सीखते थे।