कला प्रतिनिधि, इंदौर स्टूडियो। एक ज़माना था जब इंदौर में बच्चों के वार्षिक नाट्य शिविर ‘हल्ला-गुल्ला’ का बच्चों के साथ ही अभिभावकों को भी इंतज़ार रहता था। ख्यात शिक्षिका और संस्कृतिकर्मी स्व. आशा कोटिया ने 1990 में इस शिविर की शुरूआत की थी। हर साल मई के महीने में यह आयोजन होता था जो कि वर्ष 2009 तक जारी रहा। फिर वक्त की धुंध में यह शिविर ऐसा गुम हुआ, कि इसे लौटने में पूरे 14 साल लग गये। इस साल (16 मई 2024) से इसकी नई शुरूआत हुई है। 4 लघु नाटकों, गीत-संगीत और नृत्य कार्यक्रमों के साथ 25 मई को इस शिविर का समापन हुआ।20 की जगह आ गये 45 बच्चे: हल्ला-गुल्ला 2024 के शिविर में लगभग 20 बच्चों को शामिल करने का लक्ष्य था किन्तु शिविर की घोषणा होने के कुछ दिन बाद ही 45 बच्चों ने शिविर में शामिल होने के लिए पंजीयन करा लिया। कई पुराने और नये साथी इस इस रंग शिविर में योगदान के लिये आ जुटे।
आसान नहीं था शिविर का आयोजन: बिना किसी आर्थिक मदद के इस शिविर को संचालित करना आसान नहीं था। मगर शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी तपन मुखर्जी के नेतृत्व में सामाजिक कार्यकर्ता डॉ.परशुराम तिवारी ने इसकी पहल की। वहीं शारदा रामकृष्ण विद्या मंदिर की वाइस प्रिसिंपल सीमा व्यास और सृजनधर्मी पत्रकार और कला समीक्षक शकील अख़्तर ने इसके प्रबंधन को गति दी। इस तरह इस आयोजन के फिर से शुरू होने का रास्ता आसान होता चला गया।
उत्कृष्ट बाल विनय मंदिर की प्राचार्य का मिला सहयोग: यह नाट्य शिविर इंदौर के शासकीय उत्कृष्ट बाल विनय मंदिर में आयोजित हुआ। पूर्व में भी अनेक बार इस स्कूल में इसका आयोजन हुआ था। शिविर के उद्देश्य की भावना का सम्मान करते हुए इस बार फिर इस स्कूल की वर्तमान प्राचार्य श्रीमती पूजा सक्सेना ने ख़ुद दिलचस्पी ली। उन्होंने न केवल आयोजन की सहमति दी, वरन आयोजन को सफल बनाने में अपने स्टाफ के साथ अपना विशेष सहयोग दिया। शिविर के आरम्भ से लेकर समापन दिवस तक वे शिविर में सक्रिय रहीं। समापन दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में प्राचार्य श्रीमती सक्सेना ने बच्चों की प्रस्तुतियों को देखा, उनकी सराहना की। बाद में रंग शिविर में प्रतिभागिता का सर्टिफिकेट देकर उनका हौसला भी बढ़ाया।
तपन दा का अनुभव काम आया: इस शिविर के निदेशक इंदौर के वरिष्ठ रंगकर्मी तपन मुखर्जी रहे। बहुविध प्रतिभा के धनी तपन दा की कमान में शिविर की गतिविधियां चलीं। बतौर सह-निर्देशक श्रीमती अंजुश्री मुखर्जी और श्रीमती रंजना तिवारी का उन्हें साथ मिला। साथ ही शिविर में इंदौर की नवोदित युवा रंगकर्मी सुश्री पूजा पटेल और वरुण जोशी ने भी सह निर्देशक के रूप में अपनी सराहनीय भूमिका निभाकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कमाल का दिखा कला का रंग: समापन दिवस पर प्रस्तुत कार्यक्रमों में बच्चों का कमाल का रंग दिखा। जबकि किसी भी नाट्य प्रस्तुति या मंचन की तैयारी के लिये दस दिन बहुत कम होते हैं। इसके बावजूद बच्चों ने तन्मयता से अपनी प्रस्तुतियां तैयार की। दस दिनों में ही चार लघु नाटकों एवं नृत्य गीतों को तैयार किया था।
इन चार नाटकों का हुआ मंचन: रंग शिविर में बच्चों ने चार नाटकों को प्रदर्शन किया। इनमें क्रमश: शकील अख़्तर द्वारा महात्मा गाँधी के बचपन पर लिखे नाटक ‘मोनिया दि ग्रेट’ से चयनित दृश्य, तपन मुखर्जी रचित ‘बुद्धि का चमत्कार’, श्रीमती सीमा व्यास लिखित ‘मैना का बलिदान’ और वरूण जोशी लिखित नाटक ‘साइबर क्राइम’ रहे।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के गीत पर नृत्य प्रस्तुति: 4 नाटकों के साथ ही गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित गीत पर नृत्य की प्रस्तुति ने भी दर्शकों को प्रभावित किया। इसके अलावा बाल कलाकारों ने शकील अख़्तर के लिखे दो बाल गीतों को भी प्रस्तुत किया। सभी प्रस्तुतियों की दर्शकों ने सराहना की।
श्री नरहरि और श्रीमती पलटा ने किया शुभारंभ: इस शिविर का शुभारंभ मालवी कवि श्री नरहरि पटेल एवं पर्यावरणविद श्रीमती जनक पलटा मगिलिगन के आतिथ्य में हुआ। उन्होंने बच्चों का मार्गदर्शन किया एवं अपने काम के अनुभव साझा किये। बच्चों ने दोनों ही दिग्गजों की बातों को बड़ी दिलचस्पी से सुना।
कला गुरुओं और दिग्गजों ने बच्चों से किया संवाद: शिविर में हर दिन शहर के विविध कला क्षेत्रों के स्थापित गुरूवरों का आगमन हुआ। उन्होंने बच्चों के साथ अपनी विधा या ख़ास विषय पर बातचीत की। प्रमुख प्रतिष्ठित कलाकारों में मूर्तिकार श्री देवेंद्र अत्रे, वरिष्ठ रंगकर्मी श्री राजन देशमुख, चित्रकार सुश्री अमिता पांचाल, कथक नृत्यांगना श्रीमती ऋषिना नातू विशेष रूप से शामिल रहीं।
कार्टून कला से लेकर ट्रैफिक पर संवाद: इसी तरह शिविर में कार्टूनिस्ट इस्माइल लहरी, इंदौर ट्राफिक पुलिस आइकॉन श्री रणजीत सिंह, वरिष्ठ रंगकर्मी श्रीराम जोग, वरिष्ठ नाट्य निर्देशक सतीश श्रोती, नंदकिशोर बर्वे, कबीर जन समूह के डॉ. सुरेश पटेल, राजकुमार जैन, पूर्व ‘हल्ला-गुल्ला’ प्रतिभागी तन्मय मुखर्जी एवं निलेश गंधे आदि शामिल रहे। सभी ने बच्चों को दिलचस्प जानकारियां दी। अपने हुनर के बारे में बताया। इनके साथ ही शिविर में कार्टूनिस्ट श्री इस्माइल लहरी, इंदौर ट्राफिक पुलिस आइकॉन रणजीत सिंह एवं यातायात सुधार अभियान के संचालक राजकुमार जैन, वरिष्ठ रंगकर्मी श्रीराम जोग, वरिष्ठ नाट्य निर्देशक सतीश श्रोती, नंदकिशोर बर्वे, कबीर जन समूह के डॉ. सुरेश पटेल, पूर्व हल्ला-गुल्ला प्रतिभागी श्री तन्मय मुखर्जी एवं निलेश गंधे आदि ने भी बच्चों से संवाद किया। सभी ने बच्चों को दिलचस्प जानकारियां दी, अपने हुनर के बारे में बताकर प्रेरित किया।
व्हाट्सएप से आगे बढ़ी आयोजन की चर्चा: ‘हल्ला-गुल्ला’ की इस आयोजन की शुरूआत तब हुई जब पूर्व ‘हल्ला गुल्ला’ सह आयोजक डॉ.परशुराम तिवारी (भोपाल) के बनाये व्हाट्सएप ग्रुप में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हुई। सभी ने ‘हल्ला गुल्ला’ के पुराने दिनों को याद किया। साथ ही इस शिविर की पुनर्स्थापना में दिलचस्पी दिखाई। इनमें ऐसे साथी भी रहे जिन्होंने कभी ‘हल्ला-गुल्ला’ में बाल कलाकार के रूप में हिस्सा लिया था। सभी ने इस बच्चों के हित में इस शिविर को फिर से शुरू करने की माँग की।
ऑन लाइन बैठकों में बनी योजना: सभी की सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद शिविर के आयोजन की रूपरेखा बनाने के उद्देश्य से ऑनलाइन मीटिंग्स के दौर शुरू हुए। इन मीटिंग और व्हाट्सएप ग्रुप में चर्चा के द्वारा शिविर की योजना का खाका खींचा गया। तपन दा, परशुराम तिवारी, शकील अख़्तर, सीमा व्यास जी के साथ ही श्रीमती राजकुमारी सनत व्यास, कबीर जन समूह के संचालक डॉ. सुरेश पटेल, जयकिरण शोध संस्थान के संचालक श्री नीतेश जोशी (बड़नगर), पत्रकार श्री कमल हेतावल, हल्ला-गुल्ला के पूर्व कलाकारों (डॉ. श्रीमती हिल्सा मिश्रा, श्री पंकज टोकेकर, श्री अशोक अधिकारी, श्री प्रांजल व्यास एवं श्री परेश टोकेकर आदि) का सहयोग मिलने लगा। आयोजन के अंतिम चरण में तो कुछ प्रतिभागी बच्चों के पालकों ने भी शिविर में आर्थिक सहयोग दिया।
16 से 25 मई 2024 तक शिविर: योजना बनाते समय यह चिंता स्वाभाविक थी कि शिविर कहाँ लगे ? इसी चर्चा के बीच तपन दा ने शासकीय उत्कृष्ट बाल विनय मंदिर की प्राचार्य पूजा सक्सेना से बात की। उनका सहयोग और अनुमति मिलने के साथ ही 16 से 25 मई तक ‘हल्ला-गुल्ला’ रंग शिविर लगना तय हो गया। इसके बाद सभी ने मिल-जुलकर आर्थिक सहयोग दिया। जमा राशि का पारदर्शी तरह से संचालन में सदुपयोग हुआ। प्रारंभिक हल्ला-गुल्ला नाट्य शिविरों की तरह ही शिविर में भी बच्चों के प्रशिक्षण और संवाद के कार्यक्रम रखे गये।
हल्ला-गुल्ला’ का आरंभिक इतिहास: ‘हल्ला-गुल्ला’ बाल रंग शिविर का आयोजन 1990 में श्रीमती आशा कोटिया जी ने अपने पति स्व. कैलाशचन्द्र कोटिया की स्मृति में आरंभ किया था। इसमें उन्हें प्रो. डॉ.सनत कुमार का सहयोग मिला और साल 2005 तक इस बाल शिविर का सिलसिला जारी रहा। 5 जुलाई 2006 में श्रीमती आशा कोटिया का निधन का हो गया। उनके बाद डॉ. सनत कुमार जी, शहर के कलाकारों के सहयोग से, यह आयोजन वर्ष 2009 तक संचालित करते रहे। 1 दिसम्बर 2012 का उनका भी निधन हो गया। उसके बाद से शिविर का सिलसिला थम गया।‘हल्ला-गुल्ला’ के आधार स्तंभ: 1990 से 2009 तक चले हल्ला-गुल्ला में 500 से ज़्यादा बच्चों ने नाट्य कला को सीखा। अनेक कला कर्मी इससे जुड़े रहे। इनमें सर्वश्री एन.उन्नी, कवि चंद्रकांत देवताले, आकाशवाणी इंदौर के संदीप श्रोत्रिय, कवि और पत्रकार अरुण आदित्य, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. परशुराम तिवारी और वरिष्ठ रंगकर्मी प्रांजल श्रोत्रिय आदि अपनी-अपनी सक्रिय भूमिकाएं निभाते रहे। (छाया सहयोग: तनवीर फारूकी।) आगे पढ़िये – भोपाल में सौ से अधिक बच्चों के पाँच नाटक – https://indorestudio.com/bhopal-me-100-se-adhik-bachcho-ka-natak/