शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। पीयूष मिश्रा लिखित और निर्देशित नाटक ‘गगन दमामा बाज्यो’ के मंचन के साथ दिल्ली के कमानी सभागार में 19 वें महिंद्रा एक्सलेंस इन थिएटर अवार्ड्स एंड फेस्टिवल (META) का शुभारंभ हुआ। सरदार भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन पर आधारित नाटक ‘गगन दमामा’ कई ज़रूरी सवालों को उठाता है। अपनी भाव-प्रवण संगीतमयी प्रस्तुति के साथ, एक अभिनव रंग-कला की अमिट छाप छोड़ जाता है। विशेष बात ये भी है कि नाटक का संगीत भी खुद पीयूष मिश्रा ने तैयार किया है। नाटक का निर्माण राहुल गाँधी ने किया है जबकि इसका सह निर्देशक हेमंत पांडे ने किया है। 2019 से जारी इस नाटक के 25 से अधिक शोज़ हो चुके हैं। दिल्ली के कमानी सभागार में 23 मार्च को इस नाटक के दो और शोज़ होने जा रहे हैं। बुक माई शो के ज़रिये इसके टिकट्स लिये जा सकते हैं। समारोह में शामिल हुईं रंग-हस्तियां: नाटक के मंचन से पहले ‘मेटा’ का शुभारंभ समारोह संपन्न हुआ। इसमें कुलभूषण खरबंदा, रघुवीर यादव, विनय पाठक, डॉली ठाकोर, कुसुम हैदर, महेश दत्तानी और स्मृति राजगढ़िया, जैसी थियेटर और सिनेमा की हस्तियां शामिल हुई। इनके साथ ही समारोह में ख्यात लेखक, कला समीक्षक अजित राय और अमिताभ श्रीवास्तव भी शामिल हुए। आप दोनों ‘मेटा जूरी 2024’ की नाट्य चयन समिति के सम्मानित सदस्य हैं।संतोष, गौरव और ख़ुशी के पल: आरंभ में दर्शकों को महिन्द्रा एंड महिन्द्रा लिमिटेड के उपाध्यक्ष और सांस्कृतिक आउटरीच के प्रमुख जय शाह ने सम्बोधित किया। श्री शाह ने कहा – ‘मेटा का 19 वां फेस्टिवल हमारे लिये गर्व और ख़ुशी की बात है। मेटा ने कई कला रूपों के साथ ही थिएटर को बढ़ावा देने के, हमारे नज़रिये को आगे बढ़ाया है। संतोष की बात ये भी है कि हमारी कोशिशों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। थियेटर कम्युनिटी के बीच में हमने अपना अग्रणी स्थान बनाये रखा है। आप जानते ही हैं कि हम देश के छोटे और बड़े थियेटर ग्रुप्स को, मंच प्रदान करने और उनके कला कर्म को आगे बढ़ाने में अपनी विनम्र भूमिका निभा रहे हैं। यह हमारा वर्षों से लक्ष्य रहा है’।‘मेटा’ विविधता को दर्शाने वाला मंच: टीमवर्क आर्ट्स के प्रबंध निदेशक संजय रॉय ने कहा, “मेटा एक ऐसा मंच है जो हमारी विविधता को दर्शाता है। हमारे देश की अलग-अलग भाषाओं, इलाकों की प्रतिभाओं और उनकी रचनात्मकता को प्रदर्शित करता है। असल में थियेटर हमारे समाज और उसकी चुनौतियों को अपने कला के आईने में प्रस्तुत करता है। हमें हालात की सच्ची तस्वीर से रूबरू कराता है। बेशक इस तस्वीर को हमारे सामने लाने में रंगकर्मी खुद कठिनाइयों और संघर्ष के दौर से गुज़रते हैं। मेटा, उनके इस जद्दोजहद को सम्मान देने की पहल का मंच है’। आपको बता दें कि महिंद्रा समूह 100 से अधिक देशों में ढाई लाख से अधिक कर्मचारियों वाली प्रतिष्ठित कंपनी है। जबकि ‘टीमवर्क आर्ट्स’ विभिन्न कला माध्यमों और उनसे जुड़े रचनात्मक कामों के लिये प्रतिबद्ध संगठन है।10 चुने हुए नाटकों का मंचन शुरू: 14 मार्च से शुरू हुए इस फेस्टिवल में 19 मार्च 2024 तक विभिन्न भाषाओं के 10 चुने हुए नाटकों का कामानी सभागार और श्रीराम सेंटर में प्रर्दशन होगा। इनके नाम हैं – रघुनाथ (असमी), अग्निसुता द्रौपदी (हिन्दी), भूतांगल (मलयालम), सियाचीन (हिन्दी), गोपाल एंड कंपनी (बंग्ला), एवलांच (हिन्दुस्तानी), घंटा घंटा घंटा (मराठी), डू यू नो दिस सांग (हिन्दी, अंग्रेज़ी), हयवदन (हिन्दी)। इनका चयन देश से मिले 390 नाटकों की प्रविष्टियों में से किया गया है। इस चयन में नाट्य क्षेत्र की नामी हस्तियों की जूरी शामिल थी। 20 मार्च को विभिन्न कैटगरी में अवार्ड्स प्रदान किये जायेंगे। शुभारंभ समारोह में अवार्ड की स्पर्धा में शामिल नाटकों, जूरी और महिन्द्रा के संगीत फेस्टिवल की शॉर्ट फिल्मस भी दिखाई गईं।बेचैन करने वाले सवालों का नाटक : मेटा के मंच पर मंचित पहला नाटक ‘गगन दमामा बाज्यो’ दर्शकों से प्रासंगिक और ज़रूरी सवाल करता है। ऐसे सवाल जिसका तसव्वुर खुद शहीद ए आज़म भगत सिंह ने किया था। नाटक पूछता है कि क्या आज हमारा देश भूख, गरीबी, भ्रष्टाचार, भाईचारा तोड़ने जैसी बातों से मुक्त हो गया है? क्या देश के लिये अपनी जान कुरबान कर देने वाले शहीदों को उनका सच्चा मान मिला है? नाटक 1919 से शुरू होकर 1994 तक का सफर तय करता है और पूछता है कि क्या हम भारतवासी उन क्रांतिकारियों से परिचित हैं, जो हमारे ही आसपास गुमनाम ज़िदंगी जीते रहे या जिन्हें अंतिम वक्त में जीवन यापन के लिये भी संघर्ष करना पड़ा। इन सवालों के परिपेक्ष्य में नाटक के अंत में निर्देशक पीयूष मिश्रा ने अपनी नाराज़गी भी ज़ाहिर की। उन्होंने कहा कि आज़ादी की जंग में अपना सर्वस्व बलिदान कर देने वाले सरदार भगत सिंह को हमारी पाठ्य पुस्तकों या इतिहास में भी उचित स्थान नहीं मिल सका है।अभिनव रंग-कल्पना नाटक की खूबी: नाटक अपनी प्रस्तुति और अभिनव रंग-कला से दर्शकों पर अपनी अमिट छाप छोड़ता है। नाटक में भगत सिंह के क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के माध्यम से इतिहास के अधखुले पन्नों की खोज की गई है। लंबे काल क्रम को रंगमंचीय परिकल्पना से आसान किया गया है। नाटक भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन से जुड़े असेम्बली में बम फेंकने जैसे घटनाक्रमों को सामने तो रखता है, मगर उसे पूरा दिखाने की जगह, हमारी स्मृति और एक कोलाज की तरह अभिव्यक्ति देकर आगे बढ़ जाता है। नाटक में युवा कलाकारों ने ऊर्जा से भरा अभिनय किया है। नाटक का संगीत, इसका दूसरा प्रबल पक्ष है। नाटक के गीत, नाटक कीकहानी को भावपूर्ण पृष्ठभूमि देते हैं। नाटक में क्रांतिकारियों की सैनिकों की तरह पोशाखें, कोरियोग्राफ़ी, प्रकाश योजना इसके प्रभाव को और भी बढ़ाते हैं। नाटक के मंचन के बाद दर्शकों ने खड़े होकर कलाकारों के प्रति अपना सम्मान जताया। काफी देर तक लगातार तालियां बजाते रहे।बटुकेश्वर दत्त और क्रांतिकारी आंदोलन : पीयूष मिश्रा ने नाटक के लेखन के लिये गहन अध्ययन किया है। बटुकेश्वर दत्त के कथन और उनको लेकर लिखी गई पुस्तकों को आधार बनाया है। हम जानते ही हैं कि बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को असेम्बली में बम फेंका था। इस मामले में भगत सिंह को तो फांसी दे दी गई थी, परंतु बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा मिली थी। जीवन भर उन्हें इस बात का अफसोस रहा कि उन्हें फांसी क्यों नहीं दी गई? उनका देहावसान 20 जुलाई 1965 को हुआ था। नाटक में उनके हवाले से ही ऐतिहासिक तथ्य सामने आते हैं। इस नाटक स्वाभाविक रूप से बटुकेश्वर दत्त के साथ ही भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह, भगवती चरण वोहरा, सुखदेव, राजगुरू, शिवराम, यशपाल और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे किरदार भी मौजूद हैं। अगर किरदारों की मन मस्तिष्क में बनी रियल इमेजेस को दरकिनार कर नाटक को देखें तो तकरीबन सभी कलाकार अपनी भूमिकाओं से दर्शकों को प्रभावित करते हैं। नाटक में इन कलाकारों ने निभाईं भूमिकाएं: नाटक में जिन कलाकारों ने भूमिकाएं निभाईं हैं, उनके नाम हैं – देवांग बग्गा, सुफियान आलम, देवास दीक्षित, आशीष भट्ट, आशुतोष नंदन, विशाल कसाना, ज्योत्सना सिंह, वेद प्रकाश, सुजीत चौबे, बद्री चाव्हाण, हेमंत पांडे, इशा माटे, सुरजीत यादव, दाऊद हुसैन, मन और आयुष जोशी। तम्बू प्रॉडक्शन की यह नई और युवा टीम है। नाटक में लोक गायक के रूप में अनादि नागर की भूमिका आकर्षण का केंद्र रही। एक लीड सिंगर के रूप में वे जिस तरह से सुरों को साधकर नाटक को गति देते हैं, वह तारीफ के क़ाबिल है। वे कोरस में भी जान फूंकते हैं। इसी तरह नाटक के संगीत में रितुराज भोसले, प्रसन्न काले, अमित सारस्वत की सहयोगी भूमिकाएं रहीं। प्रकाश योजना राहुल जोगलेकर और संकेत पारखे की रही। नाटक में कोरियोग्राफ़ी अम्बिका चंद्रिका की है। प्रॉडक्शन की कमान राहुल कुमार और आयुष जोशी ने संभाली। साथ ही तम्बू प्रॉडक्शन के सहयोग के लिये कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा के प्रति भी आभार व्यक्त किया गया। (समीक्षक शकील अख़्तर, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। इंडिया टीवी के पूर्व सीनियर एडिटर रहे। एक कविता संग्रह के साथ आपके 7 नाटक प्रकाशित हो चुके हैं। दो नाटकों का एनएसडी, दिल्ली में मंचन हुआ है। कला विषयों पर निरंतर लिखते रहते हैं। संपर्क:mshakeelakhter@gmail.com)