राकेश अचल, इंदौर स्टूडियो। ग्वालियर में ‘भारत विमर्श’ नाम से जारी श्रुति परम्परा की गूँज अब पूरे देश में सुनाई देने लगी है। प्रगतिशील लेखक संघ ने 2 साल पहले इसकी शुरूआत की थी। गूगल सर्च इंजन के इस दौर में इस प्रेरक परम्परा के निर्वहन का महत्व इसीलिये है क्योंकि इसमें विषय विशेष पर शोधपूर्ण और सरस विमर्श सुनने-समझने को मिलता है। पुरानी और नई पीढ़ी का यहाँ पर पारिवारिक माहौल में मिलन होता है। वक्ता के कथन पर सहज ही सवाल-जवाब होते हैं। आईटीएम यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलाधिपति श्री रमाशंकर सिंह के एक ऐसे ही कार्यक्रम में मुझे यानी इस लेखक को ख़ुद यह अनुभव करने का अवसर मिला है। नीचे दी गई तस्वीर उसी कार्यक्रम की है। परम्परा का हो रहा सार्थक सदुपयोग: मनुष्य के पास जब स्याही नहीं थी, कागज नहीं था। तब ज्ञान के प्रचार-प्रसार का जो साधन था वो था आमने-सामने बैठकर सुनना और सुनाना। इसे ही हम ‘श्रुति’ परम्परा के नाम से जानते हैं। ग्वालियर में इस परम्परा का सार्थक उपयोग नयी और पुरानी पीढ़ी के बीच साहित्य, संस्कृति, इतिहास और राजनीति के आदान-प्रदान को लेकर किया जा रहा है। देखा जाये तो देश के अनेक शहरों में इस तरह की कोशिशें जारी है। कहीं इसे ‘स्टडी सर्किल’ कहा जाता है तो कहीं ‘चौपाल’। नाम भले अलग हैं लेकिन काम एक ही है – प्राणवान बनी रहे ‘श्रुति परम्परा’।
प्रगतिशील लेखक संघ की पहल: ग्वालियर में प्रगतिशील लेखक संघ की इकाई ने इस श्रुति परम्परा का दो साल पहले आरंभ किया था। यह काम महज़ एक दर्जन लोगों के साथ आरम्भ हुया था। परंतु दो साल की अल्प अवधि में ही इस संस्था ने एक ऐसा वर्ग तैयार कर दिया है जो कहता भी है और सुनता भी है। इसमें 18 वर्ष से लेकर 80 वर्ष तक के लोग आते-जाते रहते हैं। ये विमर्श आजकल स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अनछुए विषयों पर काम कर रहा है। देश जिन नायकों को विस्मृत कर चुका है उन्हें याद कर नई पीढ़ी से उनका परिचय कराने का पुण्य कार्य इस संस्था द्वारा किया जा रहा है। मजे की बात ये है की यहां कोई विचारधारा हो, सभी का स्वागत होता है लेकिन पोषण उसी विचार का किया जाता है जो राष्ट्र के मूल चरित्र को प्रतिबिम्बित करता हो।
44 विषयों पर हो चुकी चर्चा: अब तक इस मंच पर 44 से अधिक विषयों पर सारगर्भित विमर्श हो चुका है। वक्ता स्वयं विषय चुनते हैं और भरपूर तैयारी के बाद बातचीत के लिए उपस्थित होते हैं। युवक, युवतियां प्राध्यापक, राजनीतिज्ञ, समाजसेवी, कलाकार, चित्रकार, पत्रकार सब इस विमर्श का हिस्सा हैं। यहां होने वाले हर वक्तव्य को बाकायदा वीडियो अभिलेख रखा जाता है और इसे एक यूट्यूब चैनल के जरिये सर्व साधारण के लिए भी उपलब्ध कराया जाता है, ताकि जो लोग यहां नहीं आ सकते वे भी इस विमर्श से लाभान्वित हो सकें। वक्ताओं को कोई पारश्रमिक नहीं दिया जाता लेकिन स्मृति चिन्ह के रूप में देश के तमाम नायकों के चित्र और पुस्तकें भेंट की जाती हैं।
हर विमर्श का अनूठा अनुभव: हर विमर्श अपने आप में एक अनूठा अनुभव होता है। पिछले दो साल में यहां महात्मा गाँधी से लेकर कर्पूरी ठाकुर तक न जाने कितने वैज्ञानिकों, समाज सुधारकों, राजनीतिज्ञों, साहित्यकारों स्वतंत्रता सैनानियों पर विमर्श हो चुका है। कुछ के बारे में हम जानते हैं और कुछ के बारे में हमें कुछ भी पता नहीं होता। ऐसे में जिज्ञासा,उत्सुकता लगातार बनी रहती है। ख़ास बात ये है कि ये विमर्श एकतरफा नहीं होता है। श्रोता अपने वक्ता से पर प्रश्न और प्रति-प्रश्न कर सकता है। कोशिश की जाती है की हर जिज्ञासा का निदान हो, हर प्रश्न का उत्तर मिल सके।
भ्रामक नहीं शोधपूर्ण होता है विमर्श: हकीकत ये है की आप जिन विषयों पर यहां के विमर्श को सुनते हैं उससे जुड़ी तमाम सामग्री आज के गूगल विश्व विद्यालय में हासिल हो सकती है लेकिन ये जानकारी शुष्क होती है। कभी-कभी भ्रामक भी होती है किन्तु यहां जो कुछ कहा-सुना जाता है वो शोधपूर्ण और सरस होता है। कुछ विषय तो ऐसे होते हैं कि सुनने वाले चकित हो जाते हैं। कुछ ऐसे नायकों के बारे में भी विमर्श हुए जिनके नायकों के सहयोगी खुद बोलने आये। उनकी विश्वसनीयता तो असंदिग्ध होती ही है। नई पीढ़ी के लोगों को श्रुति परम्परा का हिस्सा बनाने के लिए उन्हें प्रोत्साहन स्वरूप पढ़ने के लिए भेंट में किताबें भी दी जातीं हैं और इसके सुखद परिणाम निकले हैं।
आईटीएम में दो दशक से यह परम्परा: ग्वालियर में विचार विमर्श और श्रुति-स्मृति को जीवित रखने का ऐसा ही महत्वपूर्ण काम आईटीएम विश्वविद्यालय भी लगभग दो दशकों से कर रहा है। यहां भी कला, संगीत, साहित्य, इतिहास, राजनीति और विज्ञान विषयों पर निरंतर ऐसे ही आयोजनों के माध्यम से एक ऐसी नई पीढ़ी को तैया किया जा रहा है जो सुनती भी है और सुनाती भी है। देश में हर शहर-कस्बें में ऐसी कोशिशें की जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि भारत जैसे देश में जो वेद हैं वे इसी श्रुति परम्परा की महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं। आगे पढ़िये –
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