सुभाष अरोरा, इंदौर स्टूडियो। स्मृति परिदृश्य चित्रण का चौथा आयाम होती है। कलाकार की अचेतन स्मृति और अवचेतन कला कर्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है हरि कृष्ण कदम की पेंटिंग्स में। पेंटिंग करते हुए रंग और ब्रश से कैनवास पर उतरती कुदरत के परिदृश्य ऐसे लगते हैं जैसे हरि कृष्ण कदम के इशारों पर कदमताल करते हुए चले आ रहे हों। मैं ऐसे ही कुछ अवसरों का पूर्व में आनंद भी उठ चुका हूं। दो कला प्रेमी मित्रों के साथ मुलाक़ात: हाल ही में मैं अपने दो कला प्रेमी मित्रों प्रताप सिंह और नवीन श्रीवास्तव के साथ ग्वालियर के इस चित्रकार के घर पहुँचा। उस समय वे अपने एकल प्रदर्शनी की तैयारी में जुटे थे। घर के बाहर भी बहुत से कैनवास रखे थे और घर के भीतर जाने पर तो हमें सैकड़ों पेंटिंग देखने को मिली। पूरे कक्ष में प्रकृति वैविध्यपूर्ण कलाकृतियों में फैली थी। पृथ्वी पर भू-दृश्यों की अनंत श्रृंखला है जो दृश्यमान विशेषताओं ध्रुवीय क्षेत्र बर्फीले पहाड़, रेगिस्तान,बीहड़, समुद्र, समुद्री तटवर्ती परिदृश्य, पहाड़-पहाड़ियां, वॉटर बॉडी, वनस्पति आदि-आदि का ऐसा जीवित संश्लेषण जो कलाकार और दर्शकों के सौंदर्यबोध को झंकृत दे। ऐसी ही टंकार हमें हरि कृष्ण कदम की पेंटिंग्स देखकर महसूस हुई।
लैंड स्केप में समूचा परिवेश: हरे कृष्णा कदम के लैंड स्केप चित्रण में उनका समूचा परिवेश सजीव हो जाता है। वे नगर में सबसे बड़ी पेंटिंग बनाकर गिनीज बुक में कीर्तिमान दर्ज करा चुके हैं। समकालीन चित्रण पद्धति में महारत हासिल हरि कृष्ण कदम रंगों से खेलते-खेलते दम भर में चित्र तैयार कर देता है। उसे चलती-फिरती लैंडस्केप फैक्ट्री की संज्ञा दी जाए तो गलत न होगा। उसके लैंडस्केप में कोमल,कठोर और विरोधी रंगों का संतुलित संयोजन और संगति कलाकृति में दर्शक की दृष्टि को चलायेमान रखती है। नीले रंग वाली पेंटिंग में परलौकिकता और सादे रंगों वाली पेंटिंग्स में विराट सत्यबोधिता परिदृश्य होती है। शारीरिक और भौतिक चुनौतियों के बावजूद उनका कला के प्रति समर्पण और अटूट साधना सबके लिए प्रेरणादायी है। (लेखक सुभाष अरोरा ग्वालियर के ख्यात मूर्तिकार और कला समीक्षक हैं।) आगे पढ़िये- बबलगम चिल्ड्रन फिल्म फेस्टिवल की रिपोर्ट – https://indorestudio.com/yadgar-bubble-children-film-festival/