कला प्रतिनिधि,इंदौर स्टूडियो। इंदौर में दो दिवसीय ‘स्वर मल्हार’ कार्यक्रम का समापन हुआ। इसमें स्व. पं. बापूराव अग्निहोत्री के साथ ही स्व. पं. गोविंद पोटघन, प्रभाकर गावड़े, डॉ. विवेक बंसोड़, अरविंद अग्निहोत्री, विवेक वाघोलीकर, श्रीमती सविता गोड़बोले, श्रीमती शुभदा मराठे को भावभीनी स्वरांजलि दी गई। ‘स्वर मल्हार’ आयोजन श्रुति संवाद संगीत समिति एवं अभिनव कला समाज ने किया। शुभारंभ बतौर मुख्य अतिथि महापौर पुष्यमित्र भार्गव, पं.संजय तराणेकर एवं ख्यात गायिका विदूषी शोभा चौधरी ने किया। स्वागत अभिनव कला समाज के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल, संयुक्त प्रधानमंत्री सत्यकाम शास्त्री, पं. सुनील मसूरकर, पं. दिलीप मूंगी, संतोष अग्निहोत्री, विश्वास पूरकर और खगेश रामदुर्गेकर ने किया। कार्यक्रम का संचालन विद्याधर मूले ने और आभार रोहित अग्निहोत्री ने माना।हारमोनियम पर देवेंद्र कोठारी की प्रस्तुति: आयोजन के अंतिम दिन प्रथम सत्र में स्व. बापूराव अग्निहोत्री के शिष्य देवेन्द्र कोठारी बड़ौदा ने हार्मोनियम पर सोलो प्रस्तुत किया। आपने अपने प्रस्तुतिकरण में अप्रचलित राग मारू बसंत को चुना। मध्यलय त्रिताल की बंदिश में राग के सौंदर्य को बरतते हुए आपने आलाप, झाला, मींड, गमक एवं आकर्षक तानों से प्रस्तुति को और निखार दिया। आपके वादन में स्व. बापूराव अग्निहोत्री के वादन की सुमधुर झलकियां परिलक्षित हुई। आपके साथ तबले पर सधे हुए अंदाज में बालकृष्ण सनेचा ने संगत की। डॉ.शिल्पा मसूरकर का कजरी गायन: कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में श्रोताओं को एक अलग मिजाज देखने को मिला। मंच पर डॉ. शिल्पा मसूरकर, पं. गौतम काले, डॉ. पूर्वी नीमगांवकर ने कमान संभाली। ख्यातनाम गायक पं. सुनील मसूरकर की शिष्या डॉ. शिल्पा मसूरकर ने मिश्र पहाड़ी राग पर आधारित कजरी ‘सावन की ऋत आई रे…’ सुनाकर श्रोताओं से खूब दाद बटोरी। इसके बाद राग शिवरंजनी पर आधारित ‘मतवारो बादल आयो रे…’ भजन से अपनी प्रस्तुति को निखारा। अंत में राग मेघ एवं मियां मल्हार पर आधारित ‘घिर-घिर आई बदरियां…’ की शानदार प्रस्तुति से समापन किया। राग ‘मेघ’ में गौतम काले की प्रस्तुति: इसके पश्चात बारी थी संगीत मार्तण्ड पं. जसराज जी के शार्गिद पं. गौतम काले की। यूं तो गौतम काले युवा शास्त्रीय गायकों में आला दर्जे का स्थान रखते ही हैं पर राग मेघ में ‘आई अति घूम धाम…’ की प्रस्तुति से श्रोताओं को उन्होंने अपनी अद्वितीय सांगीतिक यात्रा का परिचय दिया। इसके पश्चात मियां मल्हार पर आधारित मीरा बाई के भजन ‘सावा दे राहया जोरा रे..’ से दर्शकों को मोह लिया। अंतिम प्रस्तुति में गज़ल ‘बस एक तू ही नहीं ख़फ़ा हो बैठा…’ की प्रस्तुति दी। अपने गायकी की मिठास से दर्शकों को विभोर किया। डॉ.पूर्वी की राग देस में प्रस्तुति: दूसरे सत्र के अंतिम प्रस्तुति के रूप में वरिष्ठ गायिका डॉ. पूर्वी नीमगांवकर ने राग देस में निबद्ध दादरा ‘छा रही काली घटा…’ को प्रस्तुत कर श्रोताओं को अपनी गायिके के खास ठसक भरे अंदाज में प्रस्तुत कर वातावरण को सुरमयी कर दिया। उसके पश्चात पारंपरिक राग मिश्र गारा में झूला ‘बदरिया बरसे रे…’ प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति के पश्चात राग तिलंग में ग्वालियर घराने का टप्पा ‘यार दा हो निसारा…’ को प्रस्तुत कर अपनी सुरिली प्रस्तुति से कार्यक्रम को निखारा। अंत में द्रुत तीन ताल में स्वरचित तराना ‘तन तदियन तदियन देरें न’ प्रस्तुत कर खूब दाद बटोरी। दूसरे सत्र में तबले पर श्रीमती संगीता अग्निहोत्री, हार्मोनियम पर भरत जोशी, सारंगी पर जगदीश बारोट ने संगत की।पं. सचिन के नाम अंतिम सत्र रहा: अंतिम सत्र रहा वरिष्ठ स्पेनिश वीणा वादक पं. सचिन पटवर्धन के नाम। आपने सेनिया बंगज घराने की बारिकियों से श्रोताओं को रूबरू करवाया। अपनी प्रस्तुति में सर्वप्रथम आपने राग मालकौंस में बंदिश प्रस्तुत की, जिसमें आलाप, जोड़, झाला बजाकर सुरीले जाज़म में पेश किया। इसके पश्चात आपने मियां मल्हार में निबद्ध दो अप्रतिम गतें पेश कर अपनी प्रस्तुतियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। आपके वादन का अंदाज बहुत ही सुरीला था। आपके साथ तबले पर युवा तबला वादक मृणाल नागर ने बेहद अच्छी संगत की। आगे पढ़िये – https://indorestudio.com/josh-aur-jazba-jagate-rahene-rafi-ke-gaye-deshbhakti-ke-geet/