शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। ‘अब आप कहीं भी नई फ़िल्म का ‘फर्स्ट डे-फर्स्ट शो’ देख सकते हैं या फिर फ़िल्मों का शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं। बड़ी शॉप्स, मैरिज हॉल, खुली छतों से लेकर मैदानों तक, इस तरह के सिनेमा की शुरूआत की जा सकती है। ‘जनता सिनेमा’ के माध्यम से हम इसी अभियान की शुरूआत करने जा रहे हैं। इंदौर में 23 सितंबर को, सेंट्रल इंडिया के सिने डिस्ट्रीब्यूटर्स और एक्जीबिटर्स के साथ मुलाक़ात से यह सिलसिला शुरू होगा’। यह बात ख्यात फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूटर और प्रोड्यूसर यूसुफ़ शेख़ ने कही। वे ‘जनता सिनेमा:आर्टिनी प्रो इंडिया’ के संस्थापक भी हैं। उन्होंने कहा, ‘जनता सिनेमा, फ़िल्म स्क्रीनिंग की एक नई डिजिटल तकनीक का नतीजा है’। उनसे हुई बातचीत में हमने उनकी इसी कल्पना और तकनीक के बारे में जानने की कोशिश की। यहाँ पढ़िये वही विशेष बातचीत। आपको बता दें, श्री शेख़ फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूटर कंपनी ‘परसेप्ट पिक्चर्स’ के प्रबंध निदेशक हैं। ‘येन मूवीज़’ उनकी 30 साल पुरानी फ़िल्म प्रदर्शन, वितरण और प्रॉडक्शन कंपनी है। इम्पा और एफएफआई के वे सक्रिय सदस्य हैं। (फ़िल्म ‘गदर 2’ का एक दृश्य।) स्क्रीनिंग की अत्याधुनिक तकनीक: यूसुफ़ शेख़ ने कहा, ‘डिजिटल सिनेमा प्लेयर फ़िल्म स्क्रीनिंग की अत्याधुनिक डिजीटल तकनीक है। आज इस तकनीक का दुनिया के 74 देशों में उपयोग हो रहा है। कान फ़िल्म फेस्टिवल में भी इसे अपनाया गया है। जिस तरह की यह तकनीक है, वह फिल्म निर्माताओं,वितरकों, सिनेमा मालिकों के लिये ही नहीं बल्कि यह हमारे पूरे देश के लिये ही उपयोगी तकनीक है। इसके माध्यम से हम सिनेमा को दूर दराज़ के इलाकों में पहुंचा सकते हैं। दुनिया में रिलीज़ होने वाली नई से नई फ़िल्मों को पहले दिन, पहले शो के साथ दिखा सकते हैं। हमारे देश के लिये यह तकनीक इसलिये भी वरदान है क्योंकि डिजीटल होने के साथ कम खर्चीली है। हमारी सरकार ग्रामीण इलाकों में 30 हज़ार सिनेमाघर बनाने का लक्षय रखती है जो जनता सिनेमा के हमारी कल्पना से संभव है। इस काम में हम केंद्र और राज्य सरकारों के सहयोग के लिये भी तैयार हैं। (यूसुफ़ शेख़ कान फिल्म फेस्टिवल में एक कार्यक्रम के दौरान।) इस तकनीक में पायरेसी का ख़तरा नहीं: यूसुफ़ शेख़ ने कहा – ‘फिल्म प्रदर्शन की इस मॉर्डन तकनीक से जुड़ी बड़ी बात यह भी है कि इसमें पायरेसी का ख़तरा नहीं है। इसमें मल्टी लेयर सिक्योरिटी सिस्टम है। इस कवच चक्र को तोड़ना मुश्किल है जो प्रोड्यूसर्स के लिये राहत की बात है। अनुभवी फ़िल्म वितरक ने कहा, हमने इन सभी बातों को लेकर मुंबई के फिल्म प्रोड्यूसर्स से जुड़े संगठनों को डिमॉन्स्ट्रेशन दिया है। कई प्रमुख निर्माताओं से इस विषय में मुलाकातें की हैं। अच्छी बात ये है कि बॉलीवुड के प्रोड्यूसर्स इस मुहिम के साथ हैं। उन्होंने इस काम को आगे बढ़ाने की मंज़ूरी दी है। मुंबई के अलावा हमने चेन्नई में, दक्षिण भारत के फिल्म प्रोड्यूसरों से भी मुलाक़ात की है। हमें यह बताते हुए ख़ुशी है कि उन्होंने भी इस क्रांतिकारी डिजिटल तकनीक को हरी झंडी दी है’। इंदौर से अहम यात्रा की शुरूआत: युसूफ़ शेख़ ने कहा – ‘मुंबई और चेन्नई के दो अहम चरणों के बाद अब हम तीसरे चरण में इंदौर से इस अभियान की शुरूआत कर रहे हैं। 23 सितंबर को हम वहाँ पर सेंट्रल इंडिया के सभी डिस्ट्रीब्यूटर्स और एक्जीबिटर्स से मुलाक़ात करेंगे। हम उन्हें इस तकनीक से परिचित कराएंगे। उनके जो भी सवाल होंगे, उसके जवाब देंगे। इसके साथ ही देश में जनता सिनेमा के इस काम की औपचारिक शुरूआत हो जाएगी। इसके बाद हम सिने सर्किट के अलग-अलग समूहों से मुलाकात शुरू करेंगे। इससे पहले हम इंदौर में 22 सितंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करेंगे। उन्होंने बताया कि इंदौर के फिल्म एक्ज़ीबिटर और प्रोड्यूसर राकेश सभरवाल भी हमारे अभियान से जुड़े हुए हैं। (जनता सिनेमा की वेबसाइट पर प्रदर्शित फिल्मों की एक झलक। फिल्म चुनिये और उसे प्रोजेक्टर पर उसे देखिये, दिखाइये।) कम खर्च में फिल्मों का प्रदर्शन: यूसुफ़ शेख़ ने कहा, आप इस तरह के सिनेमा का निमार्ण किसी बड़े आकार की शॉप मैरिज हॉल, खुली छतों और मैदानों में कर सकते हैं। ढाबों, कॉरपोरेट कंपनी, क्लब्स, रेसिडेंशियल सोसायटीज़ में इसका लाभ लिया जा सकता है। इसके लिये किसी तामझाम की ज़रूरत भी नहीं है, सिर्फ एक प्रोजेक्टर और कम्प्यूटर की सहायता से बढ़िया रिजॉल्यूशन और साउंड के साथ फ़िल्म स्क्रीनिंग का आनंद लिया जा सकता है। युसूफ़ शेख़ कहते हैं- ‘हम इस तकनीक को हमारे डेमोक्रेटिक सिस्टम से जोड़कर देखते हैं। हमने वेबसाइट पर हमने लिखा है, जनता सिनेमा का मतलब है ‘सिनेमा का लोकतंत्र’ जनता के लिए, जनता की और जनता के द्वारा’। (जनता सिनेमा का प्रारुप, फ़िल्म स्क्रीनिंग की एक प्रतीकात्मक तस्वीर। किसी खुले ग्राउंड या छत पर इस तरह के सिनेमा की शुरूआत हो सकती है।) कैसे बनायें हम ‘जनता सिनेमा’: यूसुफ़ शेख़ ने बताया, इस तरह के सिनेमा का निर्माण एक से दो हज़ार वर्ग फीट की जगह में किया जा सकता है। इसके निर्माण में महज़ 8 से 10 लाख रुपये का खर्च आता है। इस तरह के सिनेमा गृह के लिये लोन भी लिया जा सकता है। ज़रूरत की जगहों पर फिल्म प्रदर्शन से जुड़ा कारोबार भी किया जा सकता है। इस संबंध में जनता सिनेमा की वेबसाइट jantacinema.artinii.com पर जाकर और भी जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं। यूसुफ़ शेख़ ने बताया कि जनता सिनेमा की वेबसाइट से जनता सिनेमा के प्लेयर को डाउन लोड किया जा सकता है। बर्शते आपके लैपटॉप या कंप्युटर पर विंडोज 10 होना चाहिये। इसके साथ ही आप अपने प्रोजेक्टर से दर्शकों को फ़िल्म दिखा सकते हैं। इसे एक कारोबार की तरह शुरू कर सकते हैं। (फ़िल्म ‘जेलर’ के एक दृश्य में रजनीकांत।) फ़िल्म निर्माताओं के लिये बड़ी ख़बर: श्री शेख़ कहते हैं, ‘जनता सिनेमा’ और इसकी तकनीक फिल्म निर्माताओं के साथ ही सिंगल या मल्टी स्क्रीन सिनेमा मालिकों के लिये भी एक अच्छी ख़बर भी है। ऐसे वितरक जो अपनी फिल्में रिलीज करने के लिए सिनेमाघरों की तलाश कर रहे हैं, वे भी इस तकनीक से फायदा उठा सकते हैं। इसी तरह जो इस तरह के थियेटर को बनाकर अपना बिज़नेस करना चाहते हैं, उनके लिये भी यह एक बेहतर विकल्प हो सकता है। जबकि जो दर्शक देश-विदेश की फ़िल्में अपनी पहुँच वाले इलाकों या जगहों पर देखना चाहते हैं, उनके लिये यह तकनीक सच में लाजवाब है। आगे पढ़िये –