कला प्रतिनिधि, इंदौर स्टूडियो। हम हैं इंदौर, पूरी दुनिया पे छा रहे हैं हम / बन के क़ाफ़िला मुहब्बत का, जश्ने-सत्तन मना रहे हैं हम। मुंबई के शायर शकील आज़मी के यह कहते ही इंदौर के बास्केट बॉल स्टेडियम में तालियां गूँजने लगीं। यह वरिष्ठ रचनाकार, सत्यनारायण सत्तन के अभिनंदन समारोह में आयोजित यह यादगार मुशायरे का आयोजन था। इसमें देश के मशहूर शायरों ने बेहतरीन रचनाएं सुनाईं और श्रोताओं की बे-पनाह दाद से झोलियां भर लीं। कार्यक्रम में हुआ कवि गुरू सत्तन का अभिनंदन: इस कार्यक्रम में कवि गुरू श्री सत्तन का नागरिक अभिनंदन भी किया गया। इस अभिनंदन से अभिभूत 85 वर्षीय सत्तन गुरु, देर रात तक श्रोताओं के समक्ष अपनी रचनाएं सुनाते रहे। इस कामयाब मुशायरे का आयोजन ‘क़ाफ़िला मुहब्बत का’ संस्था ने किया।
मुशायरे में शायर शकील आज़मी ने अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल भी सुनाई। उन्होंने कहा –
छुपा के फूलों की पत्तियों में कफ़न में कांटे रखे हुए हैं
मिला न मर कर भी चैन हम को, बदन में कांटे रखे हुए हैं
फिर वह लगातार शे’र पढ़ते गए और दाद-पे-दाद बटोरते गएः
मैं थोड़ा-थोड़ा हरेक रास्ते पर बैठा हूं
ख़बर नहीं मुझे तू कहां से आएगा
वह चोटी की बनावट हो या टोपी की सजावट हो
बिना इंसानियत के कोई सफ़र पूरा नहीं होता
हवस का काम चल जाएगा लेकिन
मुहब्बत के लिए एक रात कम है
फ़रमाइश पर उन्होंने अपनी मशहूर ग़ज़ल ‘परों को खोल’ भी सुनाई। शुरुआत में स्थानीय शायरों के बाद जयपुर के युवा शायर इब्राहीम अली ज़ीशान ने कमाल कर दिया। अपनी राजस्थानी सादगी के साथ वे कलाम सुनाते रहे और सामईन के साथ मंच भी उन पर बे-तहाशा दाद लुटाता रहा। उन्होंने पढ़ाः
मुरझा रहा है दिल में तेरी याद का दरख़्त
क्या धूप पड़ रही है तेरे इंतज़ार की
क़त्ल कर के भी हमें दिल नहीं भरता उनका
लात भी मारते हैं, वह तलवार के बाद
फ़रमाइश पर उन्होंने अपनी लोकप्रिय नज़्म ‘अब मेरे पास बीस दिन हैं बस…’ भी पेश की।इन दिनों मुशायरों में अपनी नज़्मों से छा रहे अमरावती के अबरार काशिफ़ ने उर्दू पर अपनी नज़्म से आग़ाज़ किया। इंदौर को ‘इल्मो-अदब’ (ज्ञान व साहित्य) का गुलशन’ क़रार देते हुए उन्होंने सुनायाः
इस शहर की हवा में साहित्य का नशा है
आज की महफ़िल इस बात की गवाह है
रोशनी चाहिए थोड़ी-सी अंधेरे के लिए
मैं क्या आप से सूरज का पता मांगता हूं
उन्होंने ताज़ा कलाम के साथ अपनी मशहूर नज़्मों के हिस्से भी सुनाए। अध्यक्षता कर रहे सत्यनारायण सत्तन जब आख़िरी में अपना कलाम सुनाने आए तो लोगों ने उनके अभिनंदन के बाद खड़े हो कर तालियों के साथ उनका अभिवादन किया। गुरु तो गुरु हैं, अपनी चिरपरीचित वाक् पटुता से उन्होंने श्रोताओं को नियंत्रण में लेते हुए चुटीली उक्तियां, व्यंग्य व कटाक्ष के माध्यम से एकेश्वरवाद, संसार की नश्वरता सहित हिंदू-मुस्लिम एकता और आपसी सद्भाव के संदेश दिएः
‘मैं श्रीराम का भजन करूं, तू रख अल्लाह का ध्यान बंधु’।
महशर आफ़रीदी (मुंबई) ने आग़ाज़ इस शेर से कियाः
जिनकी अपनी लंगोटियां तक फटी हुई हैं
हमारी पगड़ी उछालने में लगे हुए हैं
अपनी पसंदीदा ग़ज़ल ‘आप को हो न हो…’ के बाद उनका यह शे’र भी ख़ूब सुना गयाः
हम भी कपड़ों को अगर तरजीह दें
फिर हमारी शख़्सियत किस काम की
शकील जमाली के अच्छे शे’र ख़ामोशी से सुने गएः
कोई बहाना कोई कहानी नहीं चलेगी
मुहब्बतों में ग़लत-बयानी नहीं चलेगी।मणिका दुबे (जबलपुर) ने कई अशआर के साथ अपनी पहचान ‘शहर के शोर में वीरानियां हैं…’ भी सुनाई। यह शे’र ख़ासा पसंद किया गयाः
हमारे शहर में गिरने लगा है ज़ोर का पानी
वहां बारिश हुई होगी तो क्या वह भीगता होगा।
ये अशआर भी पसंद किए गएः
डॉ. नदीम शाद
वह जिस को ख़ून कहते हैं, वही निकला है रह-रह कर
तुम्हारे बाद आँखों से कोई आँसू नहीं निकला
नईम फ़राज़
अल्लाह जाने फूलों से क्या बैर था उसे
कांटों पर निशां लबों के जो छोड़ कर गया।मुशायरे के युवा संयोजक अम्मार अंसारी और ‘क़ाफ़िला मुहब्बत का’ टीम की मेहनत और लगन का हर रचनाकार ने ज़िक्र किया। शकील जमाली, मुश्ताक़ अहमद मुश्ताक़, स्वयं श्रीवास्तव, अहमद रईस निज़ामी, हिमांशी बाबरा के अलावा इंदौर से अहमद निसार, इमरान यूसुफ़ज़ई और तजदीद साक़ी ने कलाम पेश किया। उम्दा संचालन नदीम फ़र्रुख़ ने किया। आगे पढ़िये – भारत रंग महोत्सव में क्या कुछ हो रहा है इस बार ? https://indorestudio.com/25-th-bharat-rang-mahotsav/