कल्पना की दुनिया से दूर वास्तविक दुनिया का ‘इल्हाम’

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चंद्रकांत बिरथरे ‘पथिक’, इंदौर स्टूडियो। इंदौर की पुरानी विक्टोरिया और आज की महादेवी वर्मा लायब्रेरी में मानव कौल लिखित नाटक ‘इल्हाम’ का मंचन हुआ। इस एब्सट्रेक्ट नाटक का निर्देशन तपन शर्मा ने किया। यह नाटक नाट्य संस्था ‘सहस्त्राधार’ ने प्रस्तुत किया। नाटक उसी स्थान पर मंचित किया गया जहाँ पर ‘सहस्त्राधार’ की टीम, अपने नाटकों की रिहर्सल करती है। नाटक एक ऐसे पात्र की कहानी है, जो मानसिक रूप से बीमार है। अपनी मनोदशा की वजह से वह एक काल्पनिक या आभासी दुनिया में जीने लगा है। दो दृश्यों के बीच घटित नाटक: एक बगीचे में लगी बेंच और एक मध्यम वर्गीय परिवार के ड्राइंग रूम के दो दृश्यों के बीच यह नाटक प्रस्तुत किया गया। नाटक का मुख्य पात्र भगवान (अविनाश चौधरी) एक बैंक में नौकरी करता है। वो निर्धन लोगों की मदद करना चाहता है। वह एक वृद्ध महिला को उसकी पेंशन के रूपयों में पाँच सौ रूपये ज़्यादा देता है। पूछताछ होने पर वह स्वीकार करता है- हां, मैंने बैंक के पैसों में वृद्ध महिला को हर महीने पाँच सौ रुपये ज्यादा दिये। इसी तरह से वह अपने आनंद की एक काल्पनिक दुनिया भी बना लेता है। ख़ुश होकर बगीचे में नाचता है। बगीचे में ही उसकी मुलाक़ात बच्चों से होती है। उनके साथ उसकी कल्पना में कॉमिक्स के पात्र चाचा चौधरी (ऋषभ रंधावा) और साबू भी जुड़ जाते हैं। उसे लगने लगता है कि उसकी काल्पनिक दुनिया ही वास्तविक दुनिया है। परिजनों की बातें समझ नहीं आती: आभासी दुनिया में रहने वाला भगवान जब भी अपने परिवार के बीच लौटता है उसे उनकी बातें समझ में नहीं आती। उसकी इस काल्पनिक दुनिया में मोहन (आकाश यादव) नाम का एक भिखारी भी आ जुड़ता है। भिखारी को जो मिल जाये उसी में संतुष्ट है। वह दुनिया के प्रलोभन से दूर है। नश्वर दुनिया का उसे इल्हाम है। इसके बावजूद वह अपने आनंद में रहता है। फिर ऐसा होता है कि चाचा चौधरी का जो काल्पनिक चरित्र है, वह साक्षात सामने आ खड़ा होता है। वह उसे जिंदगी की हक़ीक़त के बारे में बताने की कोशिश करता है, अंत में आभासी दुनिया में रहने वाला भगवान (अविनाश चौधरी) अपनी वास्तविक दुनिया में लौट जाता है।चली जाती है बैंक की नौकरी:  इस दौरान भगवान की पत्नी को बैंक से सूचना मिलती है कि वह करीब एक महीने से बैंक नहीं आया है। नतीजतन उसे नौकरी से निकाल दिया गया है। परंतु एक दिन जब भगवान वास्तविक दुनिया में लौट आता है तब सभी बड़े खुश होते हैं। इसके बाद उसकी मानसिक बीमारी का इलाज शुरू होता है। अविनाश ठीक हो जाता है। वह तय करता है कि अब वह कभी आभासी दुनिया में नहीं जाएगा। भगवान आभासी दुनिया को त्याग देता है। अपने जन्मदिन की पार्टी में अपने एक दोस्त मिश्रा (गौरव डगवार) से कहता है कि दुनिया में जो भी सुख-दु:ख और सपने हैं कि वे ही अपने हैं। भिखारी बने आकाश ने प्रभावित किया: अभिनय की दृष्टि से भिखारी मोहन की भूमिका में आकाश यादव दर्शकों पर अपना सबसे अधिक प्रभाव छोड़ते हैं। हालांकि उनके पास बोलने के लिये बहुत कम संवाद थे। मिश्रा का चरित्र निभाने वाले अभिनेता गौरव डगवार अतिरंजित अभिनय करते प्रतीत होते हैं। नाटक में भगवान की भूमिका निभाने वाले अविनाश चौधरी के अभिनय में आशा के अनुरूप परिपक्वता नहीं दिखी। वे स्पीच मॉड्यूलेशन पर भी बेहतर काम नहीं कर सके। नाटक में वे कहीं से भी बड़े-बड़े बच्चों के पिता नहीं लगे। नाटक के शेष कलाकार भी ठीक-ठाक ही थे।संवादों को लेकर हो काम: नाटक के संवादों को लेकर काम हो सकता है। इसमें फिलहाल गहराई नहीं लगी। स्पीच और वाइस पर भी काम नहीं हो सका। लगा कि इस नाटक को बहुत कम रिर्हसल्स के बाद ही मंच पर प्रस्तुत कर दिया गया। इस दृष्टि से भविष्य में निर्देशक तपन शर्मा को विचार करने की ज़रूरत है। नाटक में नेपथ्य सहयोग अक्षय विश्वकर्मा, सुमित सिरसिया और संगीत यशवर्धन का रहा। नाटक में फ्लैशबेक के लिए फिल्मी परदे का उपयोग निर्देशकीय कल्पनाशीलता को दर्शाती है। आगे पढ़िये –

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