सुभाष अरोड़ा, इंदौर स्टूडियो। ‘कांगड़ा शैली ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। इस शैली को सम्मानजनक ज्योग्राफिक इंडिकेशन अर्थात जीआई टैग (Geographical Indication Tag) हासिल हुआ है, परंतु इसकी नियमित शिक्षा के लिये देश में कोई संस्थान स्थापित नहीं हो सका है’। कांगड़ा शैली के चित्रकार और कला गुरू पद्मश्री विजय शर्मा ने यह बात एक मुलाकात में कही। वे पिछले दिनों संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित लघु चित्रकला के शिविर में, कांगड़ा चित्रकला का प्रशिक्षण देने आये थे। केंद्र सरकार से कदम उठाने की माँग: श्री शर्मा ने कहा, केंद्र सरकार को लघु चित्रकला पर केंद्रित एक फाइन आर्ट कॉलेज की स्थापना ज़रूर करना चाहिये। उन्होंने बताया कि हाल ही में कांगड़ा शैली की दो मिनियेचर पेंटिंग 31 करोड़ में बिकी थी। इनमें से एक चित्रकार नैनसुख ने 1750 में राजा बलवंत देव की संगीत सभा को लेकर बनाई थी। दूसरी नैनसुख के ही एक परिजन की 1775 में कृष्ण और गोपियां वाली मिनियेटर पेंटिंग शामिल थी। दोनों मिनिएचर पेंटिंग 1950 में हिमाचल प्रदेश के आयुक्त रहे एनसी मेहता के निजी संग्रह का हिस्सा थीं।
नीलाम की गई पेटिंग का धन किसे: श्री शर्मा ने कहा – ‘आख़िर नीलाम की गई पेटिंग का धन किसे मिला, क्या उसका आशिंक लाभ कलाकार को मिलेगा’? कला गुरू ने कहा, सवाल ये भी है कि नीलामी से मिली राशि क्या कला का मूल्य है या फिर यह उसकी प्राचीनता का।
कांगड़ा शैली, लघु चित्रकला की शैली: आपको बता दें, कांगड़ा शैली, लघु चित्रकला की एक शैली है। यह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में विकसित हुई थी। इस शैली में ठंडे नीले और हरे रंगों के प्राकृतिक कोमल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें विषयों का काव्यात्मक निरूपण किया जाता है। इस शैली की प्रेरणा वैष्णव परंपराओं से ली गई है। इस चित्रकला के पात्र समाज की जीवनशैली दर्शाते हैं। इसमें प्रकृति को भी खूब दिखाया जाता है। कांगड़ा चित्रकला के मुख्य केंद्र गुलेर, बसोहली, चंबा, नूरपुर, बिलासपुर और कांगड़ा हैं। इस चित्रकला को कांगड़ा के राज परिवारों की देन माना जाता है। नीचे चित्र दिये गये चित्र में कांगड़ा शैली की एक पेटिंग – भगवान शिव और पावर्ती के सम्मुख नृत्य।
राग माला पर रचे गये 28 लघु चित्र : कलाग्राम – मनीमाजरा, चंडीगढ़ में श्री शर्मा सहित हिमाचल के आठ और राजस्थान छः, कुल 14 कला सिद्ध कलाकार शामिल थे। इन कलाकारों ने राग माला पर 28 लघु चित्र तैयार किये , जो एक से बढ़कर एक हैं। मैं इस शिविर दौरान चार बार गया और उनके बीच रहकर उन्हें काम करते देखा जो सचमुच सुखद अनुभव था।
रागमाला पर चित्र बनाने के नियम: रागमाला पर प्रकाश डालते हुए कला गुरु श्री शर्मा ने बताया कि राग-रागिनियों एवं उनके ध्यान चित्रों का अंकन, उनकी प्रकृति, गायन काल, ऋतु और ध्वनि मेल के मान्य नियमों के अनुरूप किया जाता है। संगीत की अमूर्त ध्वनि की विषय वस्तु को रंग-रेखाओं द्वारा कागज पर उतारना बेहद परिश्रम साध्य है, जो पूरे विश्व में सिर्फ भारत देश की लघु चित्र शैली में देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि कांगड़ा शैली में रागमाला विषयक कई श्रृंखलाओं का चित्रांकन हुआ है। नीचे कांगड़ा शैली की एक और पेटिंग-वन में भगवान राम और सीता।
रेखाओं और रंगों का बेजोड़ संयोजन: श्री शर्मा ने बताया कि कांगड़ा शैली में रेखाओं और रंगों का संयोजन इसे बेजोड़ बना देता है। कालजयी भारतीय चिंतनधारा और सौंदर्य दर्शन की सजीव परंपरा का भी निर्वहन होता है,जिससे मानवीय भावनाओं की सम्मानपूर्वक संतुलित प्रस्तुति रहती है। पूरे भारतीय समाज में ऐसे चित्रांकन की स्वीकार्यता ने इस शैली को आज भी जीवित रखा है। चित्रकला शिविर में अन्य कलाकारों के साथ ही कला गुरू श्री शर्मा ने भी दो महत्वपूर्ण पेटिंग्स बनाई। इनमें पहली- राग नट नारायणल जिसमें विष्णु और शिव के विग्रह और दूसरा, रागिनी देव गंधारी का चित्र जिसमें शिवलिंग पूजा और राजसी महिला और पूजन सामग्री को रचा गया है। (इस रिपोर्ट के लेखक श्री सुभाष अरोड़ा ग्वालियर के ख्याति प्राप्त मूर्तिकार और कला समीक्षक हैं।) आगे पढ़िये – चाँदनी रातें: क्लासिक कृति पर कमाल का म्यूज़िकल ड्रामा शो – https://indorestudio.com/chandni-raten-drama-show/