‘कनुप्रिया’ की प्रस्तुति के साथ ‘भारंगम 25’ का समापन

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शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। दिल्ली के राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के मुख्य आतिथ्य में, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में ‘भारत रंग महोत्सव 2025’ का समापन हुआ। धर्मवीर भारती लिखित और रतन थियम निर्देशित ‘कनुप्रिया’ समापन संध्या की विशिष्ट प्रस्तुति रही। 28 जनवरी से 16 फरवरी तक आयोजित हुए इस अंतरराष्ट्रीय महोत्सव का इस बार नेपाल और श्रीलंका में विस्तार हुआ। मुख्य केंद्र दिल्ली के साथ ही देश के 12 दूसरे शहरों में 150 नाटकों का मंचन हुआ। एनएसडी परिसर और मंडी हाउस के विभिन्न सभागृहों में ही 73 नाटक प्रदर्शित हुए। ड्रामा स्कूल की स्वायत्तता के 50 साल पूरे होने पर एक विशेष डाक टिकट भी जारी किया गया। रंग-परंपरा के संरक्षण में सराहनीय भूमिका: अपने सम्बोधन में राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने कहा, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने रंगमंचीय परंपराओं को संरक्षित और समृद्ध करने में अपनी सराहनीय भूमिका निभाई है। समापन से जुड़े शाम के कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री उमा नंदुरी और अपर सचिव सुश्री रंजना चोपड़ा शामिल हुईं।अभिनेता राजपाल यादव भी रहे मौजूद: अभिनेता राजपाल यादव कार्यक्रम में भारंगम के ब्रांड एम्बेसडर ख्यात अभिनेता राजपाल यादव भी मौजूद थे। अध्यक्षता एनएसडी सोसायटी के उपाध्यक्ष प्रो. भरत गुप्त ने की। जबकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एनएसडी के पूर्व निदेशक, प्रो. राम गोपाल बजाज कार्यक्रम में शामिल हुए। राजपाल यादव प्रमाण पत्र वितरण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भी रहे। इसमें ‘अद्वितीय’ में नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत करने वाले समूहों को सम्मानित किया गया।57 देश इस महोत्सव का हिस्सा बने: स्वागत सम्बोधन में एनएसडी के निदेशक चितरंजन त्रिपाठी ने कहा, इस बार महोत्सव और ‘विश्व जन रंग’ के तहत कुल प्रस्तुतियों को मिलाकर 2100 नाटकों का मंचन हुआ। करीब 57 देश इस महोत्सव का हिस्सा बने। इस तरह आयोजन को दुनिया का सबसे बड़ा थिएटर महोत्सव बनने का गौरव हासिल हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि इस वर्ष पहली बार बीआरएम ने अंतरराष्ट्रीय दर्शकों तक अपनी पहुंच बनाई। एनएसडी के एसोसिएट प्रोफेसर शांतनु बोस ने आभार व्यक्त किया। संचालन टीवी एंकर श्रीवर्धन त्रिवेदी ने किया। 50 साल पूरे होने पर विशेष डाक टिकट: इस अवसर पर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की स्वायत्तता के 50 साल पूरे होने के अवसर पर एक विशेष डाक टिकट जारी किया गया। कार्यक्रम में मौजूद कर्नल अखिलेश कुमार पांडे ने इस डाक टिकट का पहला अलबम माननीय उपराज्यपाल को सौंपा। उन्होंने टिकट का औपचारिक विमोचन किया पूरे महोत्सव को सफल बनाने में रजिस्ट्रार प्रदीप के मोहंती के नेतृत्व के साथ ही, डॉ.प्रकाश झा और डॉ.गजलक्ष्मी जैसे सहयोगी अधिकारियों, एकेडमिक स्टाफ, छात्रों और कर्मचारियों का अपने-अपने स्तर पर योगदान रहा।
तकरीबन 1 लाख दर्शक आयोजन के साक्षी बने: भारंगम में इस साल भी नाट्य प्रस्तुतियों के साथ ही कई समानांतर कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। रानावि द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, कुल मिलाकर महोत्सव से जुड़े कार्यक्रमों एक लाख के करीब दर्शक भी जुड़े। मुख्य केंद्र दिल्ली में आयोजित हुए सामानांतर कार्यक्रमों में एनएसडी के छात्रों द्वारा संचालित उत्सव ‘अद्वितीय’, थिएटर एप्रिसिएशन कोर्स, विश्व जन रंग, ऐलाइड इवेंट्स, श्रुति और संवाद से जुड़ी गतिविधियां शामिल रहीं। हडको (HUDCO) के सहयोग से एक विशेष खंड ‘लोकरंगम’ भी महोत्सव का हिस्सा बना। अनेक नुक्कड़ नाटक भी खेले गये। कार्यक्रमों में कई रंग और कला हस्तियां शामिल हुईं। राधा-कृष्ण पर आधारित सशक्त प्रस्तुति ‘कनुप्रिया’: समापन समारोह के बाद, कमानी सभागार में नाटक ‘कनुप्रिया’ का मंचन किया गया। यह नाट्य प्रस्तुति धर्मवीर भारती लिखित कविता पर आधारित थी। इसे कोरस रिपर्टरी थिएटर ने मणिपुरी भाषा में आधुनिक और शास्त्रीय संस्कृत प्रभावों के समावेशी स्वरूप के साथ प्रस्तुत किया।  ‘कनुप्रिया’ राधा और कृष्ण के शाश्वत प्रेम की गहन अभिव्यक्ति है, जो विरह की पीड़ा, आध्यात्मिक तड़प और प्रेम के अनंत स्वरूप को अत्यंत भावनात्मक गहराई को प्रस्तुत करता है। इस नाटक का निर्देशन प्रख्यात निर्देशक रतन थियाम ने किया, और इसका मंचन कमानी सभागार में हुआ।स्टैंड-अप कॉमेडी ‘फ्लाई ऑन द वॉल’: दिन का एक और प्रदर्शन स्टैंड-अप कॉमेडी ‘फ्लाई ऑन द वॉल’ था। यह सैसन डेस फेम्स एंटरटेनमेंट के असीम बजाज द्वारा प्रस्तुत किया गया था, और लीना यादव द्वारा निर्मित किया गया था। हास्य से भरपूर, नॉस्टैल्जिया की यात्रा जैसे इस प्रदर्शन ने दर्शकों को हँसी के ठहाकों से भर दिया। एलाइड इवेंट्स के अंतर्गत, युद्धवीर बकोलिया के निर्देशन में ‘धरती की पुकार’ नामक नाटक प्रस्तुत किया गया। इस नाटक में एनएसडी के वरिष्ठ नागरिक कलाकारों ने भाग लिया, जो विशेष रूप से उनके लिए डिज़ाइन किए गए एक लघु पाठ्यक्रम में शामिल थे। नाटक में वैश्विक तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला गया।काठमांडू से कोलम्बो तक हुए नाट्य मंचन: भारंगम के दौरान गोवा में चार नाटकों का मंचन हुआ, जबकि बेंगलुरु में आठ, रांची में सात, गोरखपुर में पाँच, खैरागढ़ में छह, काठमांडू में छह, भोपाल में पाँच, कोलंबो में चार, बठिंडा में पाँच, जयपुर में पाँच, अहमदाबाद और अगरतला में पाँच-पाँच नाटकों का मंचन हुआ। दिल्ली, जो कि इस महोत्सव का केंद्र था, में सबसे लंबा और सबसे व्यापक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें 73 शो हुए। इस तरह कुल 150 नाटक मंचित किए गए।‘विश्व जन रंग’ में डेढ़ हज़ार एंट्रीज़: इन नाटकों के अलावा, ‘विश्व जन रंग’ नामक एक प्रतियोगिता का भी आयोजन हुआ। इस बार पिछले वर्ष से भी अधिक पंद्रह सौ  प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। इस प्रतियोगिता में नाट्य शास्त्र और पंचम वेद की अवधारणाओं पर आधारित नाटकों को आमंत्रित किया गया था। इन नाटकों में समावेशी प्रगति, सतत् विकास और वैश्विक सद्भाव के मूल्यों को दर्शाया गया। समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए, कुछ विशेष नाटकों को भी प्रस्तुत किया गया। इनमें वंचित समूहों, जैसे कि स्वदेशी समुदाय, LGBTQIA+ समुदाय, बच्चे, वरिष्ठ नागरिक और यौन कर्मियों को भी शामिल किया गया। इसके अतिरिक्त, तीन महीने के सर्टिफिकेट कोर्स के छात्रों ने दिल्ली में कई लघु नाटक प्रस्तुत किए। इन सभी प्रदर्शनों को मिलाकर बीआरएम कुल 2 हज़ार से अधिक नाटकों का मंचन किया गया। कई खूबियों के साथ कमियां भी रहीं: महोत्सव में बहुत से अच्छे और स्तरीय नाटकों का प्रदर्शन हुआ। परंतु कई नाटकों के चयन और उनके स्तर को लेकर प्रतिक्रियाएं रही। पारंपरिक प्रवृत्तियों और विचार से अलग नये प्रयोगों के अभाव की चर्चा भी होती रही। इस बार ब्रोशर, विवरण पुस्तिका का प्रकाशन भी नहीं किया गया। वेबसाइट के ज़रिये ही नाटकों की जानकारी मिल सकी। इस वजह से बहुत से दर्शक नाटक से जुड़े विवरणों से अपरिचित ही रहे। बुक माय शो के ज़रिये टिकट बिक्री को लेकर बहुत सी शिकायतें सामने आईं। एंट्री के समय दर्शकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। परिसर में षष्टि पूर्ति और परिसज्जा: इस बार परिसर को रंगमंडल के साठ बरस पूरे होने पर यादगार नाटकों और कलाकारों को याद कर परिसज्जित किया गया। बहावलपुर हाउस की इमारत पर भी वेशभूषाओं से सज्जित चरित्रों को देखना दिलचस्प रहा। इसमें बतौर आर्ट डायरेक्टर प्रो.अरूण कुमार मलिक की विशिष्ट भूमिका रही। (नीचे तस्वीर में  ‘भारंगम’ में वर्षों से नाटकों को देखने वाले राम चंद्र माहेश्वरी और श्रीमती कृष्णा माहेश्वरी के साथ लेखक शकील अख़्तर)(लेखक, पत्रकार और कला समीक्षक शकील अख्तर, इंदौर स्टूडियो के संस्थापक-संपादक हैं। वे पिछले 35 वर्षों से कला और कलाकारों पर लिख रहे हैं। ‘भारंगम’ सहित कई कला उत्सवों को कवर किया है। 7 नाटक लिखे हैं। एनएसडी,दिल्ली और दूसरे शहरों में उनके शोज़ हुए हैं। ‘मुंबई मिरर’ ने कविता संग्रह ‘दिल ही तो है’ प्रकाशित किया है। कई गीत संगीतबद्ध हुए हैं। रंगमंच, अभिनय और आकाशवाणी से जुड़े रहे। लघु फिल्मों, रिकंस्ट्रक्शन्स और फिल्मों में अभिनय किया है। पाँच अख़बारों में सेवाएं दे चुके शकील अख़्तर, इंडिया टीवी के सीनियर एडिटर रहे। आप इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया, बंगलुरू इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल और जागरण फिल्मोत्सव की प्रिव्यू कमेटी और जूरी में रहे। ई मेल: mshakeelakhter@gmail.com) आगे पढ़िये – दिल्ली में 21 फरवरी से इशारा अंतरराष्ट्रीय कठपुतली महोत्सवhttps://indorestudio.com/delhi-me-ishara-puppet-festival

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