कौन है ‘नाटू-नाटू’ के संगीतकार और गीत के रचनाकार?

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अजय बोकिल, इंदौर स्टूडियो। राजमौलि की सुपरहिट फिल्म ‘आरआरआर’ के गीत ‘नाटू-नाटू’ को ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया है। इसे बेस्ट ‘ओरिजनल सांग’ का अवॉर्ड मिला है। इस गीत अवॉर्ड मिलने के साथ ही फिल्म के संगीतकार एमएम कीरवानी एक बार फिर चर्चा में आ गये है। इसी तरह गीत के बोल लिखने वाले चंद्रबोस का भी लोगों की ज़ुबाँ पर नाम है। चलिये जानते है इन दोनों रचनाकारों के साथ ही इस गीत के फिल्मांकन की कहानी।कम लोग जानते हैं कीरवानी जी को: एम.एम. कीरवानी की संगीत जिस रचना को यह अवॉर्ड मिला, उन्हें हिंदी सिने संगीत में कम ही लोग जानते हैं। 1994 में आई हिंदी फिल्म ‘क्रिमिनल’ का कुमार सानू और अलका याज्ञिक का गाया गाना ‘तुम मिले दिल खिले, मुझे जीने को और क्या चाहिए’ आज भी लोगों  के जेहन में है। उसका संगीत एम.एम.करीम ने दिया था। यह करीम साहब ही ‘नाटू नाटू’ वाले किरावानी हैं। यह भी दिलचस्प बात है कि भारतीय फिल्मोद्योग और खासकर बॉलीवुड में मुस्लिम कलाकारों ने हिंदू नामों काम किया और शोहरत भी पाई, लेकिन इस तेलुगू संगीतकार ने मुस्लिम नाम से संगीत दिया और अपना अलग मुकाम हासिल किया। धर्म से ज़्यादा काम से मुकाम: इसका अर्थ यह भी है कि कीरावानी साहब के लिए नाम धर्म से ज्यादा अहम काम है। हालांकि कीरावानी का असली नाम तो कोडुरी मर्कटमणि कीरावानी है। लेकिन आरआरआर में भी उन्होंने इस के बजाए एम.एम.कीरावानी के नाम से संगीत दिया है। दक्षिण की फिल्मों के तो वो मशहूर संगीतकार हैं हीं, अब ‘नाटू नाटू’ के जरिए वो वैश्विक संगीतकार भी हो गए हैं। इसके पहले यह सम्मान संगीतकार ए.आर. रहमान को गीतकार गुलजार के साथ संयुक्त रूप से मिला था। विचित्र बात यह है कि कीरावानी अच्छे संगीत के साथ ज्योतिष में भी अंधश्रद्धा की हद तक आस्था रखते हैं। कहते हैं कि बगैर मुहूर्त के वो गाड़ी से नीचे भी नहीं उतरते।एक गायक भी हैं गीतकार चंद्रबोस: इस ‘नाटू नाटू’ गीत के गीतकार चंद्रबोस का पूरा नाम कनुकुंतला सुभाष चंद्र बोस है। लेकिन वो गीत चंद्रबोस के नाम से ही लिखते हैं। वो खुद पार्श्वगायक भी हैं। उनके पास प्रौद्योगिकी की डिग्री है, लेकिन जीवन गीत लेखन और संगीत को समर्पित है। कहते हैं कि ‘नाटू-नाटू’ का मुखड़ा उन्हें कार चलाते हुए सूझा। इस मूल तेलुगू गीत के बोल अर्थ भरे हैं। मसलन हिंदी में इसका अर्थ है – ‘खेतों की धूल में कूदते हुए आक्रामक बैल की तरह तुम नाचो, ढोल जोर से बज रहा है,बेटा राजू उड़ो और नाचो। खुरदरे जूतों से छड़ी की लड़ाई हो और युवा लड़कों के उस गिरोह की तरह नृत्य करें जो नीचे इकट्ठा हो रहे हों बरगद के पेड़ की छाया में…ऐसे नाचो जैसे कि तुम मिर्च के साथ ज्वार की रोटी खा रहे हो। चलो नाचो, नाचो और नाचो, चलो पागलपन से नाचो।लंबे समय तक ज़िंदा रहेंगे बोल: ऐसे बोल आजकल के फिल्मी गीतों में अपवाद स्वरूप ही सुनने को मिलते हैं। ‘नाटू नाटू’ में कुछ ऐसा तत्व है, जो इस गाने को लंबे समय तक जिंदा रखेगा। इस गाने को मूल तेलुगू में गायक राहुल सिपलीगंज तथा कीरावानी के बेटे काल भैरव ने गाया है। जबकि इसका हिंदी वर्जन रिया मुखर्जी ने लिखा है और गाया राहुल सिपलीगंज तथा ‍विशाल मिश्रा ने है। ऑस्कर अवॉर्ड गाने के तेलुगू वर्जन को ही मिला है।
गीत के बोलों पर सुपर डांस: पर्दे पर इस गीत पर जबदस्त डांस तेलुगू अभिनेता रामचरण और एनटीआर जूनियर ने किया है। एनटीआर जूनियर का जन्म 1983 में उनके दादा एनटी रामाराव के आंध्रप्रदेश (अविभाजित) के मुख्‍यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही हुआ था। इसकी कोरियाग्राफी (नृत्य संयोजन) प्रेम रक्षित ने की है। इस नृत्य शूटिंग में 20 दिन लगे। 43 बार रीटेक हुए। वैसे भी भारतीय फिल्मों में दो पुरूष नर्तकों का एकसाथ एक गति और लय में डांस करना अपने आप में अभूतपूर्व है। अमूमन फिल्मों में महिला नर्तको के साथ तो यह होता आया है। ‘नाटू नाटू’ में तो कई विदेशी सह कलाकार भी हैं। प्रेम रक्षित के अनुसार फिल्म के निर्देशक एस.एस. राजमौलि कुछ अलग और मौलिक चाहते थे। वही उन्होंने करने की कोशिश की और उसे वैश्विक स्वीकृति भी मिली।
यूक्रेन में फिल्माया गया है गीत: ‘नाटू नाटू’ गाना लाजवाब तो है ही, यह उस यूक्रेन देश के लिए अपने आप में शांति और उमंग का संदेश भी है, जो साल भर से  रूस के आक्रमण से जूझ रहा है। ‘नाटू नाटू’ यूक्रेन की राजधानी कीएव के उस भव्य राष्ट्रपति भवन की पृष्ठभूमि में फिल्माया गया है, जो आज निर्लज्ज सैन्य आक्रामकता के आगे सीना ताने खड़ा है। जब यह गाना शूट हो रहा था, तब यूक्रेन में शांति और सुकून था। रूस और यूक्रेन के बीच जारी यह युद्ध आज विश्व की महाशक्तियों के शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा बन चुका है। लेकिन यह युद्ध  कभी न कभी तो खत्म होगा। तब वहां के लोग फिर ‘नाटू नाटू’ गाने के साथ नाचे तो हमे आश्चर्य नहीं होना चाहिए। काश, वो दिन जल्द आए ! (अजय बोकिल भोपाल से प्रकाशित अख़बार ‘सुबह-सवेरे’ के वरिष्ठ संपादक और स्तंभकार हैं। वे समसामयिक विषयों पर निरंतर लिखते रहते हैं।)

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