अजित राय, इंदौर स्टूडियो। ‘फ़िल्म ‘कैनेडी’ का किरदार मैंने सुधीर मिश्रा से चुराया है। इस किरदार के बारे में मुझे सुधीर मिश्रा ने बताया था। यही वजह है कि यह फ़िल्म उनके नाम से शुरू होती है। फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद मैंने सबके सामने उनके पैर छुए’। कान फ़िल्म फेस्टिवल में ‘कैनेडी’ के प्रदर्शन के बाद, यह बात निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप ने कही। उन्होंने इस फ़िल्म के बारे में और क्या कहा ? पढ़िये उनके साथ हुई मेरी यह विशेष बातचीत।भ्रष्ट सिस्टम का सीक्रेट किरदार: अनुराग कश्यप ने कहा, फ़िल्म निर्देशक और पटकथा लेखक सुधीर मिश्रा ने ही फिल्म के नायक मुंबई पुलिस के पूर्व अधिकारी (उदय शेट्टी) के बारे में बताया था जो अपने भूत के साथ रहता है और भ्रष्ट सिस्टम के लिए सिक्रेट रूप से काम करता है। ऐसा आम तौर पर पुलिस आफिसर नहीं करते हैं। वह कुछ-कुछ साइकोपैथ जैसा है। वह उनके लिए रोबोट की तरह हत्याएं करता है। मैंने पटकथा लिखने के बाद उन्हें बताया। उन्होंने कहा कि जाओ जो करना है करो। किसी को तो बनाना ही था, तू बनाएगा तो अच्छी फिल्म बनेगी। उन्होंने मुझे आशीर्वाद दे दिया’।
लूमियेर में प्रदर्शन एक बड़ी घटना : अनुराग कश्यप ने कहा- ‘अब तक मेरी चौदह फिल्में कान फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी है। पर ग्रैंड थियेटर लूमिएर में मेरी फिल्म का प्रदर्शन होना बहुत बड़ी घटना है। हर फिल्मकार का यह सपना होता है कि उसकी फिल्म ग्रैंड थियेटर लूमिएर में दिखाई जाए। आपने भी देखा कि साढ़े तीन हजार की क्षमता वाला ग्रैंड थियेटर लूमिएर आधी रात को साढ़े बारह बजे दर्शकों से भर गया। रात के तीन बजे फिल्म के खत्म होने के बाद भी जिस तरह से लोग सड़कों पर सुबह तक फिल्म के बारे में हमसे चर्चा करते रहे, यह मेरे लिए अभूतपूर्व है’।
सनी लियोन को कास्ट करने की वजह: यह पूछने पर कि फ़िल्म में सनी लियोन को लेने की क्या वजह रही। अनुराग ने कहा, फिल्म में राहुल भट्ट और मोहित टकलकर के साथ मुझे एक ऐसी औरत चाहिये थी जो चालीस साल की हो और अभी भी सुंदर हो। सनी लियोन इस पर खरी उतरी। मुझे बस इतना ही संदेह था कि वे ऐक्टिंग करेंगी कि नहीं, ऑडिशन देंगी कि नहीं। वे आई और उन्होंने ऑडिशन दिया और चुन ली गई। सनी लियोन अभी भी सुंदर है। उन्हें सारी जिंदगी भेड़ियों और गिद्धों से डील करना पड़ा है। और उसने सरवाइव किया। उसने लोगों के जजमेंट झेला है। लोगों की ऐसी नज़रों से गुजरी है जिससे सबको नहीं गुजरना पड़ता। उसे पता है कि कैसे डील करना है। लोगों का क्या, उनकी एक्सपेक्टेशन वहीं है। वे सनी लियोन को सेक्स से उपर देखते नहीं है। फिल्म की कैटलिस्ट वहीं है। जो कुछ हो रहा वह उसी की वजह से हो रहा है। मेरे लिए उनका होना बहुत ज़रूरी था।
नायक के रूप में नवाज़ुद्दीन क्यों नहीं: इस सवाल के जवाब में अनुराग ने कहा – ‘मुझे एक ऐसा आदमी चाहिए था जो दैत्य दिखे। नवाजुद्दीन सिद्दीकी दैत्य नही बन सकता। उसको मैं अलग तरह से देखता हूं। उसे मैंने रमन राघव में एक साइकोपैथ का रोल दिया था, पर वह अलग तरह का था। उदय शेट्टी के रोल के लिए मुझे ऐसा आदमी चाहिए था जो दैत्य दिखे , मुझे राहुल भट्ट की आंखों में वह दिखा। फिर नवाज बहुत व्यस्त हैं। वह उतना समय नहीं निकाल सकता था। मुझे ऐसा अभिनेता चाहिए था जो फिल्म की शूटिंग से पहले आठ महीने दे। लोगों के लिए यह सब छोटी चीज है पर मेरे लिए एक एक चीज बहुत महत्वपूर्ण है’।
चरित्र की हथियार की दोस्ती: उन्होंने कहा, ‘मेरे चरित्र के लिए हथियार बहुत महत्वपूर्ण है और मेरा अभिनेता उससे कितना परिचित हैं। आपको फिल्म का ओपनिंग सीन याद है जिसमें राहुल चाकू से सेब छील रहा है और सेब कहीं से टूटता नहीं है। राहुल ने पांच सौ सेब काटे होंगे। इसके लिए उसने चार महीने प्रैक्टिस की। क्यों ? क्योंकि चाकू उसका हथियार है वह कब आता है उसके हाथ में और कब चला जाता है कोई नही जानता। या फिर उस सीन को याद कीजिए जिसमें वह आंखों पर पट्टी बांध कर गन खोल और बंद कर रहा है। उसने पांच महीने आंखों पर पट्टी बांध कर गन खोलने और बन्द करने की प्रैक्टिस की। राहुल ने आठ महीने छोटी छोटी चीजों की रोज प्रैक्टिस की। उसने इस रोल के लिए बहुत मेहनत की है’।
विलियम वर्ड्सवर्थ की कविता क्यों: फिल्म अंग्रेजी के मशहूर कवि विलियम वर्ड्सवर्थ की इस लाइन से शुरू होती है कि हम कवि नौजवानों के पास खुशी के साथ जाते हैं पर जल्दी ही यह खुशी निराशा और पागलपन में बदल जाती है। ऐसा करने की वजह पूछने पर अनुराग बोले, ‘हमारी फ़िल्म का कैरेक्टर यही है कि हमारी शुरूआत कहां होती है और हम खत्म कहां होते हैं। हम जब शुरू होते हैं तो पैशनेट होते हैं, आदर्शवादी होते हैं, ये होते हैं वो होते हैं सबकुछ होते हैं। हमारे अंदर आश्चर्य होता है उत्सुकता होती हैं। पर जब खत्म होते हैं तो मर चुके होते हैं। चीजें हमे प्रभावित नहीं करती। हम समझ जाते हैं कि दुनिया से कैसे डील करना है। हमारे भीतर का दैत्य बाहर आ जाता है। हम इस दैत्य को ह्यूमनाइज करके बाहर ले आते हैं। हमारे पास जस्टिफिकेशन होता है। यहीं फिल्म की कहानी है’।
क्राइम ड्रामा में दार्शनिक कविताएं: इस फ़िल्म में मेरी पिछली फ़िल्मों से अलग संगीत है। इसमें जाने-पहचाने प्रोटेस्ट सिंगर और पोएट, अमीर अजीज़ नज़र आते हैं। मैं उनके पास गया और कहा कि मुझे कविताएं चाहिए इस फिल्म के लिए। हम जिस माहौल में रह रहें हैं उससे संबंधित, खासतौर से कोविड वाले माहौल के लिए। हमें कोई पालिटिकल कमेंटरी नहीं करनी है पर पालिटिक्स से आप भाग नहीं सकते हैं। हम बात कर रहे हैं कि जो आम आदमी है वह कैसे झेलता है सबकुछ। जो बड़ा आदमी है उसतक तो हम पहुंचते ही नहीं है सिर्फ बातें करते रहते हैं। कोविड में सबसे ज्यादा लाभ उनको हुआ जिनके पास पहले से काफी पैसा था, बाकी सब तो मर गए। उनके काम-धंधे बंद हो गए।
भ्रष्ट सिस्टम का नया अंडरवर्ल्ड: आपकी फिल्म एक पाराडाइम शिफ्ट की ओर भी इशारा करती है कि मुंबई में अंडरवर्ल्ड के खात्मे के बाद उसके सारे काम (अपराध) भ्रष्ट सिस्टम करने लगा। यानी भ्रष्ट सिस्टम ने अंडरवर्ल्ड को रिप्लेस कर दिया। इस सवाल के जवाब में अनुराग कश्यप ने कहा – ‘ठीक कह रहे हैं। ऐसा ही हुआ। आज हमारे सारे गैंग्स्टर कहां है, राजनीति में हैं। आप बताओ कौन गैंग्स्टर राजनीति में नहीं है। सबसे ज्यादा अशिक्षित और गुंडा प्रवृत्ति के लोग या तो राजनीति में हैं या धर्म में हैं। जहाँ तक कैनेडी का सवाल है, इसमें कैरेक्टर खुद को रिप्रेजेंट कर रहा है, मुझे नहीं। इसलिए इस फिल्म में मेरी कोई पालिटिक्स नहीं है। उससे मैं दूर रहना चाहता हूं। क्योंकि समय बदलता है। केंद्र और राज्य की बात है। जो सरकारें जनता के द्वारा चुनकर आतीं हैं उन्हें हम कैसे रिजेक्ट कर सकते हैं। उनके बारे में हम अपने विचार दे सकते हैं। पालिटिक्स तो पीपुल्स से आती है। हम अमीर गरीब की राजनीति की बात कर रहे हैं। बाकी चीजें तो जनता जानती है।
फ़िल्म सत्य घटना से प्रेरित: आपकी फिल्म देखकर लगता है कि साफ-साफ उस घटना से प्रेरित है जब मुंबई के एक सबसे अमीर बिजनेस मैन के घर के बाहर विस्फोटक से भरी एक गाड़ी पकड़ी गई थी और इस मामले में राज्य के गृहमंत्री, पुलिस कमिश्नर और हप्ता वसूली करने वाले एक पुलिस अधिकारी का नाम सामने आया था। क्या यह सच है? अनुराग कश्यप ने कहा – जी हां। असली कहानी यहीं से शुरू होती है जो मैंने लिखा था। फिल्म में जो आपने देखा वह असल कहानी है ही नहीं। फिल्म में तो मैंने वही दिखाया जो मीडिया का परसेप्सन है।
टीवी एंकर्स का कैरीकैचर क्यों: इस सवाल के जवाब में अनुराग कश्यप ने कहा, ‘देखिये महाभारत में सबसे महत्वपूर्ण चरित्र कौन है, संजय। धृतराष्ट्र अंधा है, गांधारी की आंखों पर पट्टी बंधी है। एक संजय ही था जो सच बोलता था। आज के महाभारत में संजय ने ही आंखों पर पट्टी बांध ली है, वहीं जब झूठ बोलने लगे तो हमारा क्या होगा’? (अजित राय अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म उत्सवों के विशेषज्ञ और प्रख्यात कला समीक्षक हैं।) आगे पढ़िये –