ख़बरों के इम्प्रोवाइज़ेशन से जन्मा 6 अवॉर्ड वाला नाटक ‘रघुनाथ’

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शकील अख़्तर,इंदौर स्टूडियो। ‘अख़बार में छपी ख़बरों को इम्प्रोवाइज़ करने के प्रयोग से नाटक ‘रघुनाथ’ लिखने की शुरूआत हुई थी। यह आइडिया इतना दिलचस्प था कि मैं धीरे-धीरे इस नाटक को लिखने लगा’। यह बात असम के युवा लेखक,अभिनेता और निर्देशक बिद्युत कुमार ने कही। बिद्दुत कुमार अचानक तब चर्चा में आये, जब दिल्ली में आयोजित महिन्द्रा एक्सिलेंस इन थियेटर अवार्ड 2024 (META) में उनके नाटक ‘रघुनाथ’ पुरस्कारों की बरसात हुई। उनके नाटक को सर्वश्रेष्ठ नाटक, स्क्रिप्ट, निर्देशन, अभिनय, सैट और डिज़ाइन के छह पुरस्कार मिले। 369 नाटकों में से पहले श्रेष्ठ 10 नाटकों को चुना गया। फिर उन 10 बेहतरीन नाटकों के बीच उनके नाटक ने शानदार विजय गाथा लिख डाली। एक वर्कशॉप में आया आइडिया: बिद्युत कुमार ने कहा, यह  बात 2022 की है, तब हम नागाँव में एक वर्कशॉप कर रहे थे। मैंने वर्कशॉप में आये कलाकारों से कहा कि वे अगले दिन समाचार पत्र लेकर आएं। अगले दिन मैंने उनसे कहा कि वे अख़बारों में दिलचस्प ख़बर ढूंढकर, उसे इम्प्रोवाइज़ कर अभिनीत करें। यह प्रयोग दिलचस्प था। मैं उस रात घर पर पहुँचा। मेरी पत्नी भी एक एक्टर और डांसर हैं। उन्हें भी यह आइडिया अच्छा लगा। अब मैं इसी प्रयोग के आधार पर नाटक की कहानी लिखने लगा। मैं सीन लिखता और सोचता कि अब आगे क्या होना चाहिये।स्क्रिप्ट से पहले सिर्फ़ दृश्य लिखे: बिद्युत कुमार ने कहा -‘ मैंने सीधे स्क्रिप्ट नहीं लिखी। मैंने एक-एक सीन को लिखकर कहानी को आगे बढ़ाने का काम किया। मैं लिखे गये सीन्स कलाकारों को सुनाता और उनकी राय लेता रहा। कुछ मेरी लिखी कहानी पसंद नहीं आई, कुछ यह काम बहुत अच्छा लगा। इस तरह सभी के कुछ-कुछ इनुपट हमें मिलने लगे। इस तरह हम हर नज़रिये के हिसाब से अपने काम को आगे बढ़ाने लगे। एक दिन कहानी पूरी हुई और हमारा नाटक तैयार हो गया। जब नाटक के निर्माण की बारी आई, तब बहुत सारे कलाकारों ने इस नाटक में काम करने से ही मना कर दिया। मगर मैंने सोच लिया था कि यह नाटक करना है, मैंने एक नई टीम बनाई और नाटक तैयार होने लगा’।हक़ीक़त से संघर्ष की कहानी: बिद्युत ने कहा, ‘नाटक की कहानी सीधी-सादी है। इसमें कुछ खोने और कुछ पाने का दु:ख और सुख दोनों है। नाटक में दो कहानियां एक दूसरे के सामानांतर चलती हैं। एक कहानी में एक आदमी बाढ़ में अपनी इकलौती बच्ची को खो देता है। दूसरी कहानी में बाढ़ के दौरान ही एक तालाब से शिव की एक मूर्ति निकलती है। हालांकि यह बात झूठी है। इन दोनों ही कहानियों और उससे जुड़ी परिस्थियों पर, नाटक का नायक ‘रघुनाथ’ सोचता है कि लोग भगवान के लिये तो सबकुछ करते हैं, लेकिन बाढ़ से जूझने वालों के लिये कुछ नहीं। अब उनके लिये भी कुछ करना पड़ेगा। यही हमारा नाटक है। यह एक सच्चाई भी है और एक कल्पना भी’।सैट साधारण मगर ज़बरदस्त हो: युवा परिकल्पनाकार ने बताया – ‘ जिस तरह से यह असम के एक बाढ़ ग्रस्त गाँव की कहानी है, उसके हिसाब से मुझे लगा कि हमारा सैट साधारण होना चाहिये, मगर साधारण होने के साथ वह बेहद प्रभावशाली होना चाहिये। हमने मिलकर इस बात पर विचार करना शुरू किया। बहुत से आइडिया थे। फिर हमने बाढ़ के समय जो बाँस से तटबंध बनाये जाते हैं। उस आइडिये पर काम किया। असल में हमने गूगल पर सर्च कर देखा था कि बाढ़ में जब नदियां तटों को पाट देती हैं। गाँव और कस्बे में डूब जाते हैं, उनसे बचने के लिये कैसे काम किया जाता है। तब बाँस से तटबंध बनाने का आइडिया। यह काफी रोचका था और इसमें एक्टर्स के लिये बहुत कुछ करने का मौका भी था। वही हमने किया।नाटक में संगीत और प्रकाश:  उन्होंने कहा, लाइट के बारे में योजना बनाते वक्त हमारे मन में एक ही बात थी। ..कि हमें हर सीन के इमोशन को ठीक प्रवाह में लेकर चलना है।  चूँकि असम में लोक संगीत काफी प्रभावशाली है, इसलिये हमने उसी संगीत का नाटक में उपयोग किया। मगर जहां पर नाटक का भाव बदलता है, वहां पर हमने कुछ पश्चिमी संगीत भी इस्तेमाल किया है। आप जानते हैं, मैंने नाटक का निर्देशन भी किया और मुख्य भूमिका भी निभाई है। यह मुश्किल काम था, कई बार मैं इन दोनों के बीच फंस जाता था। मगर मैंने अभिनय के लिये मानसिक पर स्तर ख़ासी तैयारी की। उसने मेरे काम को आसान कर दिया।हमारा ग्रुप 2016 से सक्रिय: बिद्युत कुमार ने बताया – ‘हमारे थियेटर ग्रुप का नाम है – अभिमुख नटुनर नटघर, नोनोई, नागाओ। असम के नागाँव में हम इस ग्रुप के माध्यम से साल 2018 से काम कर रहे हैं। हम हर बार नाटक के लिये नई कहानी या कथ्य का चयन करते हैं। हालांकि लॉकडाउन के हमारे दो साल मुश्किल से भरे रहे। हमारे नाट्य ग्रुप में छह पुरूष और दो महिला कलाकार हैं। लाइट और म्यूज़िक ऑपरेटिंग के लिये दो सदस्य हैं। कॉस्ट्यूम और प्रॉपर्टीज़ का काम हम सब मिल-जलकर संभाल लेते हैं’। (बिद्युत कुमार प्रख्यात सिने अभिनेता कुलभूषण खरबंदा के हाथों अपने नाटक ‘रघुनाथ’ के लिये महिन्द्रा एक्सलेंस इन थियेटर 2024 का अवॉर्ड प्राप्त करते हुए।)ग्रुप में कोई पेशेवर एक्टर नहीं: हमारे ग्रुप में कोई भी प्रोफेशनल एक्टर नहीं है। सभी शौकिया तौर पर काम करते हैं। सब अलग-अलग बैकग्राउंड के लोग काम करते हैं। इनमें कुछ पहली बार ही नाटक से जुड़े हैं। कुछ हमारे इलाके के हैं और कुछ बाहर गाँव से आते हैं। इनमें से कोई अभी कॉलेज की पढ़ाई कर रहा है तो ई रिक्शा चलाकर गुज़र बसर करता है। परंतु थियेटर में आकर सभी को अच्छा लगता है। शुरू में हम नागाँव में नागाओं के एक नाट्य मंदिर में अपने नाटकों की रिहर्सल करते थे। यह नाट्य मंदिर सौ साल पुराना हो चुका है। बाद में हम लोग अपने गाँव के नोनोई बरोगोया मंदिर परिसर में रिहर्सल करने लगे।मणिपुर में हालात ठीक नहीं: उन्होंने कहा, बीते एक साल से मणिपुर के हालात ठीक नहीं हैं। आप जानते हैं, यहां पर बीते एक साल से हिंसा जारी है। इसका लोगों के कामकाज, आम जन-जीवन के साथ ही हमारे थियेटर पर गंभीर पड़ा रहा है। आज हम हर वक्त यही प्रार्थना करते हैं कि यहां पर एक बार फिर शांति हो, हिंसा थमे और सबकुछ पहले की तरह ठीक हो जाये। मेरे कई दोस्त हैं जो इन हालात से जूझ रहे हैं। इन अड़चनों के बावजूद हम लोग किसी तरह से नाटक तैयार कर रहे हैं, उनके परफॉरमेंस भी दे रहे हैं। चौथी क्लास में किया पहला नाटक: विद्युत ने कहा, मैं चौथी क्लास से मंच पर अभिनय करने लगा था। मेरे पहले नाटक का नाम था- ‘सेउजिया गारी’। मुझे अपने गाँव में बिप्लब ज्योति और निरूमोनी मैडम और जाने-माने निर्देशक प्रवीण सैकिया सर के साथ नाटक में काम करने का मौका मिला। स्कूल से कॉलेज तक थियेटर का सिलसिला चलता रहा। मगर 2004 में मेरे पिता का देहांत हो गया। उसके बाद हमारे गरीब परिवार को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बड़ा होने के नाते मुझे परिवार की जिम्मेदारी संभालने में हाथ बटाना पड़ा। मां गाँव के घरों में काम करने लगी और मैं ट्यूशन पढ़ाने लगा। नाटक करना बंद हो गया।5 साल बाद फिर लौटा नाटक में: करीब पाँच साल बाद ज्योति प्रसाद जी ने मुझे एक नाटक में दारू पीने वाले की भूमिका दी, जो लोगों ने बहुत पसंद की। इसके बाद राजेन फुकन दा ने अपने एक नाटक में काम दिया। उस नाटक को कई पुरस्कार मिले और मुझे कुछ पैसे भी। 2016 में मेरा एनएसडी, सिक्किम में चयन हो गया। उसके बाद से एक बार फिर मैं नाटक की दुनिया में लौट आया। आज मैं कहने लगा हूँ, कि मैं हां मैं थियेटर करता हूँ, एक आर्टिस्ट हूँ। मैं रघुनाथ के अलावा अब तक छह नाटकों का लेखन और निर्देशन कर चुका हूँ’। https://indorestudio.com/

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