कला प्रतिनिधि, इंदौर स्टूडियो। ज्ञानपीठ के बाद साहित्य के क्षेत्र में सबसे बड़े पुरस्कार के.के. बिड़ला फॉउंडेशन के ‘व्यास सम्मान’ से इंदौर में ख्यात साहित्यकार प्रो. शरद पगारे को विभूषित किया गया। श्री पगारे को उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी’ के लिए यह सम्मान प्रदान किया गया। सम्मान के तहत केके. बिड़ला फाउंडेशन मंजूषा,प्रशस्ति प्रत्र और 4 लाख रुपए की सम्मान राशि प्रदान की गई। इंदौर प्रेस क्लब के राजेन्द्र माथुर सभागार में आयोजित सम्मान समारोह की मुख्य अतिथि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. रेणु जैन थी। विशेष अतिथि बिड़ला फाउंडेशन, नई दिल्ली के निदेशक डॉ सुरेश ऋतुपर्ण और पद्मश्री सुशील दोषी रहे। स्वागत उदबोधन प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविन्द तिवारी ने दिया। डॉ. पगारे के व्यक्तित्व पर प्रकाश वरिष्ठ पत्रकार मुकेश तिवारी ने डाला।
डॉ.पगारे का सम्मान, पूरे इन्दौर का सम्मान: मुख्य अतिथि प्रो. रेणु जैन ने कहा कि ‘डॉ. पगारे का सम्मान, पूरे इन्दौर का सम्मान है। हमारे लिए यह गौरव का क्षण है’। बिड़ला फाउंडेशन नई दिल्ली के निदेशक डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण ने कहा कि ‘डॉ शरद पगारे शब्द से मूर्ति बनाते है, वह अमूर्त को मूर्त कर देते है। रचनाकार वही सफ़ल है जो पाठक को अपने साथ लंबी यात्रा पर लें जाता है।’ आपको बता दें,’पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी’ मौर्य युग के वैभव से पाठक का परिचय कराती है। यह उपन्यास इसलिए भी अत्यंत लोकप्रिय है क्योंकि यह इतिहास में उपेक्षित नारी महान सम्राट अशोक की की मां धर्मा की कथा-व्यथा कहता है।
मेरा नहीं मेरी रचनाधर्मिता का सम्मान: व्यास सम्मान ग्रहण करने के बाद वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शरद पगारे भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि ‘मेरे शब्द आज खो रहे है, यह मेरा नहीं मेरी रचनाधर्मिता का सम्मान है।’ उन्होंने रचनाकारों से आव्हान किया कि ‘जिस तरह एक कलाकार रोज़ रियाज़ करता है उसी तरह रचनाकार भी रोज़ लिखें और ज्यादा से ज्यादा पढ़ें भी। डॉ पगारे ने कहा- ‘मैंने इतिहास से ऐसे पात्र उठाएं जिनका इतिहास में ज़िक्र न के बराबर मिलता है।’ कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत प्रेस क्लब उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी, कोषाध्यक्ष संजय त्रिपाठी और प्रो. सुशीम पगारे ने किया। संचालन श्रीमती श्रुति अग्रवाल ने और आभार मातृभाषा उन्नयन संस्थान के अध्यक्ष डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ ने माना।
अनेक संगठनों की तरफ से हुआ अभिनंदन: सम्मान समारोह में अनेक साहित्यिक व सामाजिक संगठनों ने डॉ पगारे का अभिनंदन किया। इस मौके पर प्रो. बी के निलोसे, प्रो शशिकान्त भट्ट, प्रो. जगदीश उपाध्याय, हरेराम वाजपेयी, प्रताप सिंह सोढ़ी, योगेन्द्रनाथ शुक्ल, प्रदीप नवीन, संतोष मोहंती, इन्दु पराशर, जय सिंह रघुवंशी, सत्यनारायण व्यास, सदाशिव कौतुक, मिलिंद मजूमदार, नीलम तोलानी, शिशिर उपाध्याय, अर्चना पण्डित, विपिन नीमा, डॉ कमल हेतावाल, शोभा प्रजापति, मदन दुबे, डॉ ज्योति सिंह, चंद्रशेखर शर्मा, विवेक वर्धन श्रीवास्तव, गौरव साक्षी, जसमीत सिंह, नवीन जैन सहित साहित्य, शिक्षा और पत्रकारिता जगत् के अनेक वरिष्ठ लोगों की मौजूदगी थी।
65 सालों से साहित्य साधना में रत: इंदौर के डॉ.शरद पगारे पिछले 65 साल निरंतर साहित्य के क्षेत्र में साधनारत हैं। अब तक उनके 8 उपन्यास,10 कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त इतिहास पर उनकी 12 पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। गुलारा बेगम शरद जी का सबसे लोकप्रिय उपन्यास है जिसके हिंदी में 11 संस्करण अब तक प्रकाशित हुए हैं। गुलारा बेगम उपन्यास पाठकों में इतना लोकप्रिय है कि इसका मराठी, गुजराती, उर्दू, मलयालम और पंजाबी में अनुवाद हो कर प्रकाशन भी हुआ है। प्रो. पगारे को देश में ऐतिहासिक उपन्यास लेखन की परंपरा को न केवल पुनर्जीवन दिया है वरन उसे नया मोड़ भी दिया है। आपने अपने उपन्यास लेखन में ऐसे चरित्रों पर कार्य किया है जो अपने काल में महत्वपूर्ण होने के बाद उपेक्षित रहे। श्री पगारे ने उन्हें अपनी कलम से न्याय दिलाने का कार्य किया है।
ऐतिहासिक बुरहानपुर पर रचे दो उपन्यास: डॉ. शरद पगारे ने ‘पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी’ जैसे उपन्यास ही नहीं, कई दूसरे खोजपूर्ण,रोचक और साहित्यिक उपलब्धियों वाले उपन्यास लिखे हैं। आपने मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक नगर बुरहानपुर पर दो उपन्यास ‘गुलारा बेगम’ और ‘बेगम जैनाबादी‘ हैं। हिंदी साहित्य में किसी नगर के ऐतिहासिक घटनाक्रम पर दो उपन्यास लिखने की दूसरी मिसाल नहीं मिलती। इसी प्रकार उज्जैन में 2000 वर्ष पूर्व हुए घटनाक्रम पर आपका लोकप्रिय उपन्यास ‘गन्धर्व सेन’ है। अनेक साहित्यिक सम्मानों से नवाज़े जा चुके प्रो.शरद पगारे का एक अन्य उपन्यास ‘उजाले की तलाश’ है। नक्सलवाद की पृष्ठभूमि पर लिखा गया यह उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद हुआ और देश के अंग्रेज़ी के प्रतिष्ठित पब्लिशर रूपा पब्लिकेशन से इसका प्रकाशन किया है। ‘जिंदगी के बदलते रूप’ आपका एक अन्य लोकप्रिय उपन्यास है। कथा संग्रहों में नारी के रूप,सांध्य तारा,चन्द्रमुखी का देवदास हिंदी के पाठकों में काफी लोकप्रिय है। डॉ. शरद पगारे की एक अन्य महत्वपूर्ण पुस्तक ‘भारत की श्रेष्ठ ऐतिहासिक कहानियां’ है। इस पुस्तक में उन्ही प्रेम-प्रसंगों पर उन्होंने कलम चलाई है जिनके ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ.पगारे से जुड़ी बड़ी बात यह भी है कि वे 90 साल की उम्र में भी निरंतर लेखन के काम में तन्यमता से जुटे हैं। वे ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं। लेखन और अध्ययन के काम में जुट जाते हैं।
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