पं. मुस्तफ़ा आरिफ़, इंदौर स्टूडियो। फ़िल्म ‘जवान’ उत्तर भारत से लेकर दक्षिण तक और यूएई, यूके, अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक अपनी सफलता का नया इतिहास रच रही है। ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि आख़िर फ़िल्म में ऐसा क्या है, जिसने दर्शकों को बाँधकर रख दिया है। यह एक्शन थ्रिलर लगातार शानदार प्रदर्शन कर रही है। एक दर्शक के रूप में इस लेखक ने यह फ़िल्म सपरिवार मुंबई में देखी। अपनी इस समीक्षा में मैं आपको यह बताने की कोशिश करूँगा कि आख़िर क्यों इस फ़िल्म की आँधी चल रही है और क्यों लोग सिनेमाघरों तक खींचे चले आ रहे हैं? यहाँ तक कि बॉलीवुड और टॉलीवुड के कलाकार भी इस फ़िल्म को एक बार नहीं बार-बार देखने की चाह जता रहे हैं। जवान ने सिने-कला का दिखाया दम: असल में गौरी ख़ान और गौरव वर्मा निर्मित इस फ़िल्म ने सिने कला के कई मोर्चों पर अपना दम दिखाया है, बॉक्स ऑफिस पर अपनी बाज़ी मारी है। फिल्म की पटकथा, निर्देशन, अभिनय, संवाद, संगीत, संपादन सभी उत्कृष्ट हैं। फिल्म की पटकथा के लेखन के साथ ही इसका निर्देशन साउथ इंडियन फ़िल्मों के निर्देशक एटली ने किया है। अनिरूद्ध रविचंदर का लाजवाब संगीत और फिल्मांकन जीके विष्णु का है। इसकी एडिटिंग को लेकर रूबेन की भी ख़ासी तारीफ़ हो रही है। इसी तरह नयनतारा और विजय सेतुपति के साथ सभी कलाकारों के अभिनय की भी। यह पहला मौका भी है जब फ़िल्म के एक्शन और थ्रिलर दृश्यों और उनकी तकनीक को लेकर भी कोई सवाल नहीं है। फ़िल्म में शाहरूख 5 किरदारों में हैं और हर किरदार में वे दर्शकों को दिलो-दिमाग़ पर छा जाते हैं।
जुनून की वजह से सुपरहिट जवान: विक्रमसिंह राठौड़ यानि शाहरुख खान फिल्म में हर उम्र में जीकर अपने जुनून की वजह से जवान बने रहें। शाहरुख खान को 5 वर्ष का बच्चा भी देखा, जवान जेलर आज़ाद भी देखा और वृद्ध लेकिन सदाबहार शक्तिशाली जवान विक्रमसिंह राठौड़ के रूप मे भी अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ते भी देखा। कुल मिलाकर उनके जुनून ने फिल्म को अंत तक जवान बनाए रखा। मुंबई के जिस थियेटर मैंने इस फ़िल्म को देखा वहाँ दर्शक आख़िरी सीन तक मंत्रमुग्ध दिखे।सच्चे भारतीय की भूमिका में शाहरूख: संपूर्ण फिल्म में प्रारंभ से लेकर अंत तक एक देश प्रेमी सच्चे भारतीय की भूमिका में राजनीतिक और सामाजिक बुराई से शाहरुख खान एक जुनूनी जवान के रूप में जनमानस को सचेत करते, संघर्ष करते, उन्हें उनका हक़ दिलाते और एक देवदूत की तरह संदेश देते दिखाई दिए। पहले ही सीन में आतंकियो के प्रकोप से देवीय श्रद्धा से वशीभूत ग्रामीणजनो को मुक्त कराने का अनुष्ठान दिखाई दिया, और एक समर्पित भारतीय का जुनून शुरू हुआ। फिर दूसरे चरण मे एंसिफिलाईटीज़ से एक सरकारी अस्पताल में मारे गए 60 बच्चों की मौत और संघर्ष से जूझकर आक्सीजन अपने प्रयास से उपलब्ध कराने वाली चिकित्सक को कैसे राजनीतिक षड़यंत्र ने दोषी बनाकर जेल के सिख़ंचो के पीछे ढकेल दिया, एक मार्मिक और हृदय विदारक चित्रण देखने को मिला।
किसानों का मुद्धा कारगार तरीके से उठाया: अर्थाभाव में देश भर में दो लाख से अधिक किसानों की आत्म हत्या का मुद्दा न केवल कारगर ढंग से उठाया गया, अपितु किसानों के खातो में 40 करोड़ रुपए जमाकर कर कर्ज मुक्त कराकर आर्थिक संकट से मुक्त कराने का प्रभावशाली चित्रण निःसंदेह सराहनीय है। ये पैसा उस उद्योगपति से छीना गया, जिसका 40 हजार करोड़ रुपए का कर्ज बैंक ने माफ कर दिया था।
जनमानस को शिक्षित करती फ़िल्म: फ़िल्म एक भारतीय की ऊंगली के महत्व से भारतीय जनमानस को प्रेरित और शिक्षित करती है। शाहरुख ने संदेश दिया कि हम छोटी से छोटी चीज बाज़ार से खरीदने में हजार बार सोचते है, परंतु मतदान का उपयोग करते समय संपूर्ण चिंतन राजनीति के हवाले कर देते है। हम हमारे अमूल्य पांच साल और देश का भविष्य साम्प्रदायिक वैमनस्य और स्वार्थी राजनीतिक दलों के हवाले कर देते है, जो देश मे नफरत फैलाकर हमे बांटकर अपनी कुर्सी बचाकर देश को असहाय और पंगु बना देते है, निडर निर्भय होकर लूटते हैं।
सह कलाकारों का दमदार सदुपयोग: जवान दर्शकों को अंत तक जुनून से जोड़े भारतीय फिल्मों में फार्मूलाबाजी खास मसाला होती है, उसके बिना दर्शकों को ज़ायका नहीं आता। शाहरुख खान की स्वयं की कम्पनी रेड चिली इंटरटेनमेंट ने दर्शकों को बांधे रखने में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण और खलनायक दक्षिण भारतीय अभिनेता विजय सेतुपति का दमदार उपयोग किया है। कुल मिलाकर संदेशदूत शाहरुख खान की जवान दर्शकों को अंत तक जुनून से जोड़े रखती है। निर्देशक एटली की कहानी और निर्देशन दोनों बेहद कामयाब है। (समीक्षक पंडित मुस्तफ़ा आरिफ़ वरिष्ठ पत्रकार,लेखक और यू ट्यूबर हैं। ज्वलंत विषयों पर लगातार लिखते रहते हैं।) आगे पढ़िये –