अजित राय, जेद्दा, सऊदी अरब। ‘मैं जिस तरह की भूमिकाएं करना चाहती हूँ, जिस तरह की फ़िल्में करना चाहती हूँ, वह मुझे मिल नहीं रही हैं। मैं जल्द अपने प्रॉडक्शन हाऊस के बैनर तले मैं फिल्में बनाना शुरू करूँगी। अभी बहुत सारी ऐसी कहानियां हैं जिन्हें सामने लाना है’। चौथे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रियंका चोपड़ा ने यह बात कही है। उन्हें समारोह में ‘आनरेरी अवार्ड’ प्रदान किया गया। यह अवार्ड उन्हें हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री सारा जेसिका पारकर ने प्रदान किया। प्रियंका चोपड़ा अपने पति निक जोंस के साथ रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में शामिल हुई। दर्शकों से संवाद कार्यक्रम में प्रियंका चोपड़ा ने बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक की अपनी यात्रा के बारे में बातें की। युवा प्रतिभाओं को देना चाहती हूँ मौका: प्रियंका चोपड़ा ने प्रॉडक्शन हाउस खोलने के सवाल पर यह भी कहा, मुझे देश भर की युवा प्रतिभाओं को फिल्म निर्माण में मंच देना है। मुझे सिनेमा का क्राफ्ट आता है। इस नज़रिये से भी मैं साझा तौर पर फ़िल्म निर्माण करना चाहती हूँ’। उन्होंने बताया कि उनकी तीन एक्शन फिल्में आ रही है। प्रियंका ने कहा, मैं ह्वाइट टाइगर से भी इसीलिए जुड़ी क्योंकि वह किताब मेरे दिल के करीब थी। मुझे अभी बहुत कुछ करना है और परिवार को भी समय देना है’।
माता-पिता ने हर फ़ैसले में साथ दिया: प्रियंका ने कहा, उनके माता-पिता भारतीय सेना में डॉक्टर थे और हर निर्णय में हमेशा साथ देते थे। जब उन्होंने सन् 2000 में 96 देशों की प्रतिभागियों के बीच मिस वर्ल्ड का खिताब जीता तो उनकी उम्र केवल 18 साल थी। बाद में यह सफर जारी रहा जब उन्हें दो-दो बार नेशनल अवार्ड और पांच बार फिल्मफेयर अवार्ड से नवाज़ा गया। भारत सरकार ने 2018 में उन्हें पद्मश्री भी प्रदान किया। जब वे फिल्मों में आई तो वे किसी को नहीं जानती थी।
कम उम्र में मंजे अभिनेताओं के साथ काम: कम उम्र में शुरू में ही उन्हें अक्षय कुमार और सनी देओल जैसे मंजे हुए अभिनेताओं के साथ काम करने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि बरेली जैसे छोटे शहर की लड़की के लिए बॉलीवुड से हॉलीवुड तक का सफर आसान नहीं था। पिता अशोक चोपड़ा की दी हुई सीख कि खुद को पानी की तरह बना लो, बहुत काम आई। उन्होंने कहा कि वे हमेशा समस्या की जगह समाधान पर फोकस करती हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें जल्दी ही पता चल गया था कि वे कोई भी चीज बहुत शीघ्र सीख सकती है। वे ईश्वर में विश्वास रखती है इसलिए हर बाधा को एक अवसर के रूप में लिया।
सोनिया का रोल एक चुनौती थी: उन्होंने अक्षय कुमार के साथ अपनी शुरुआती फिल्म ‘ऐतराज’ का अनुभव साझा करते हुए कहा कि वह एक अलग तरह की औरत की भूमिका थी। सोनिया का वह रोल एक चुनौती थी। फिल्मी दुनिया का मुझे कोई अनुभव नहीं था। मैंने सोचा कि फिल्म में मुझे अपने चरित्र को जज नहीं करना चाहिए। इससे मुझे उस चरित्र को निभाने की क्षमता आ गई। इसी तरह ‘कृश’ में हुआ। यह भारत का पहला बड़ा सुपरमैन था। जब मधुर भंडारकर ने ‘ फैशन ‘ में मुझे लीड रोल में लिया तो कहा गया कि जिन फिल्मों में औरतें लीड रोल में होती हैं वे बॉक्स आफिस पर अच्छा नहीं करती है। मैंने खुद ही जगह-जगह जाकर फिल्म का प्रमोशन किया।
इंडस्ट्री में मेरा कोई गॉड फ़ादर नहीं: उन्होंने कहा कि फिल्म इंडस्ट्री में मेरा कोई गॉड फादर नहीं था। मैं किसी पॉवरफुल फिल्मी खानदान से नहीं थी। किसी को जानती तक नहीं थी। मुझे जो कुछ भी मिला वह सब मेरी मेहनत, माता-पिता के आशीर्वाद और ईश्वर की कृपा से मिला। मुझे उस दिन बहुत खुशी हुई जब मेरे पिता ने अपने घर की नेम प्लेट में खुद के नीचे मेरा नाम भी लिखवाया। उन्होंने कहा कि जब अनुराग बसु ने ‘बर्फी’ की कहानी सुनाई तो पहले तो मुझे लगा कि यह रोल नहीं कर पाऊंगी, पर लहरों के खिलाफ जाना मेरी आदत बन चुकी थी।
ऐसे मिला अनजाना-अनजानी में रोल: उन दिनों रणबीर कपूर न्यूयॉर्क में ‘अनजाना-अनजानी’ की शूटिंग कर रहे थे। मैं एक इवेंट में जाने की जल्दी में थी। अनुराग बसु ने कहा कि ठीक है, वे दूसरी फिल्म के लिए मुझसे बाद में मिलेंगे। मैंने उनसे पांच दिन का समय मांगा। मैं स्पेशल चिल्ड्रेन स्कूल गई और उन बच्चों के साथ सीखा और आ गई सेट पर। मैंने ढेर सारे वीडियो देखें। एक-एक मूवमेंट को सीखा। अनुराग बसु ने मेरी हिचक तोड़ने के लिए मुझसे गालियां देने को कहा। मैंने अंग्रेजी में गालियां देना शुरू किया तो मना कर दिया। कहा कि हिंदी में गंदी-गंदी गालियां दो। मुझे लगा कि मैं नहीं कर पाऊंगी। पर कई तरह के अभ्यास के बाद मुझे वह रोल मिल गया।
तरह-तरह की भूमिकाएं करना पसंद: प्रियंका चोपड़ा ने कहा कि उन्हें तरह-तरह की भूमिकाएं पसंद है। वे किसी एक खांचे में नहीं बंधना चाहती थी। इसीलिए उन्होंने ‘डान’ और ‘ गंगाजल -2 ‘ में एक्शन रोल भी किया। ‘गुंडे’ में भी अलग तरह का रोल था। जब ‘मेरी काम’ की शूटिंग चल रही थी, उसी दौरान मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई। मैं अंदर से दु:खी थी। तीन चार दिन बाद ही शूटिंग थी। मैंने सचमुच के फाइट सीन में अपने सारे दु:ख निकाल दिए। यहां तक कि मैं शादी के दौरान भी शूटिंग करती रही। (अजित राय अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के विशेषज्ञ और प्रतिष्ठित कला एवं सिने समीक्षक हैं।) आगे पढ़िये – अरब देशों में आतंकवाद का विरोध करती फ़िल्में – https://indorestudio.com/arab-desho-me-islamik-atankwad-ka-virodh/