शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। ‘मुझे लगता है अभिनय करते वक्त मंच पर मैं नहीं, मेरे वो गुरू होते हैं जिन्होंने मुझे थियेटर सिखाया’। महिन्द्रा एक्सीलेंस इन थियेटर अवार्ड्स (मेटा) में अपनी उत्कृष्ट नाट्य प्रस्तुति – ‘नि:संग ईश्वर’ (बांग्ला, संस्कृत) के लिये ‘बेस्ट एक्टर’ के विजेता सुमन साहा ने यह बात कही। ‘नि:संगो ईश्वर’ को बेस्ट प्रॉडक्शन सहित कुल 5 अवॉर्ड मिले हैं। इनमें बेस्ट प्रॉडक्शन के साथ ही, बेस्ट ओरिजनल स्क्रिप्ट (सुमन साहा / सोहम गुप्ता), बेस्ट स्टेज डिज़ाइन, बेस्ट लीड एक्टर (सुमन साहा), बेस्ट फीमेल एक्टर इन सपोर्टिंग रोल (चंद्रानी सरकार) शामिल है। मंच पर अवॉर्ड लेने वे जब भी आये, उन्होंने अपने रंग गुरूओं के प्रति कृतज्ञता जताई। ‘मेटा’ का आभार व्यक्त किया। ‘स्वांग’ और ‘चंदा बेड़नी’ को 4-4 अवॉर्ड: ‘नि:संग ईश्वर’ के बाद जिन दो हिन्दी नाटकों ने अपनी लाजवाब प्रस्तुतियों के लिये पुरस्कार जीते, उन नाटकों के नाम हैं- ‘स्वांग’ जस की तस’ और ‘चंदा बेड़नी’। इन दोनों ही नाटकों को जूरी ने 4-4 अवॉर्ड्स से अलंकृत किया। इनमें बेस्ट डायरेक्टर (अक्षय सिंह ठाकुर), बेस्ट साउंड एंड म्यूज़िक (अक्षय सिंह ठाकुर), बेस्ट एक्टर इन सपोर्टिंग रोल (पुरूष /अभिषेक गौतम) और बेस्ट एन्सेम्बल (रंग समूह) के अवॉर्ड्स शामिल हैं। एन्सेम्बल वाले अवॉर्ड मिलने पर आश्यर्य से भरे अक्षय सिंह ठाकुर ने कहा – ‘क्या ऐसा भी कोई पुरस्कार होता है! इसके मिलने से मैं हैरान भी हूँ और ख़ुश भी!’
‘चंदा बेड़नी’ की चंदा बेस्ट फीमेल एक्टर: ‘चंदा बेड़नी’ को बेस्ट लाइट डिज़ाइन (बादल दास), बेस्ट लीड एक्टर (महिला / रंजिनी घोष), बेस्ट एन्सेम्बल , बेस्ट कोरियोग्राफी (सुभोजित गुहा और मधुमिता चक्रबर्ती) के अवॉर्ड्स मिले। इन दोनों ही नाटकों के पुरस्कार ने मध्यप्रदेश की लोक नाट्य परंपरा को एक बार फिर रेखांकित किया है। बता दें कि ‘चंदा बेड़नी’ के मध्यप्रदेश के लेखक और निर्देशक स्व.अलखनंदन है और ‘स्वांग’ में बुंदेली नाट्य और संगीत परंपरा जीवंत होती है। इसके अलावा कन्नड़ नाटक ‘दशानना स्वप्न सिद्धी’ को बेस्ट कॉस्ट्यूम डिज़ाइन (राजेश्वरी कोडगु) का पुरस्कार मिला। ‘नि:संगो ईश्वर’ बंगला रंगमंडल ,’स्वांग:जस की तस’ रंगभारण कल्चरल सोसायटी, जबलपुर और चंदा बेड़नी रंगकर्मी, कोलकाता की प्रस्तुति रही। इस थियेटर ग्रुप की संस्थापक प्रख्यात निर्देशक और अभिनेत्री ऊषाा गांगुली रही हैं।
मासूम कलाकार की समझदार बातें: मलयालम नाटक ‘जीवंते मल्लखा’ में दीया की निभाने वाली बाल कलाकार साक्षीथा संतोष को उनके भावपूर्ण अभिनय के लिये स्पेशल जूरी अवॉर्ड दिया गया है। मंच पर इस बाल कलाकार ने किसी मासूम फरिश्ते की तरह अपने दिल की बात कही। 7 साल की साक्षीथा कहने लगीं- ‘यह अवॉर्ड उन्हें नहीं मिलता अगर उनके डायरेक्टर सर ने इतने अच्छे से रोल ना कराया होता और अगर हर दिन रिहर्सल पर जाने के लिये मम्मी पापा हेल्प न करते तो भी अवॉर्ड नहीं मिलता! साक्षीथा के कहने पर निर्देशक शाजान को मंच पर आना पड़ा।
शांता गोखले को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड: दिल्ली के कमानी सभागार में 20 मार्च की शाम मेटा के इस रंगारंग कार्यक्रमों और रंग हस्तियों से सजी इस शानदार समारोह का समापन हुआ। इस समारोह में भारतीय रंगमंच और साहित्य में अप्रतिम योगदान के लिये सुप्रसिद्ध पत्रकार, साहित्यकार,अनुवादक शांता गोखले को ‘मेटा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ प्रदान किया गया। उनके अलंकरण के साथ पाँच लाख रूपये की सम्मान राशि भी भेंट की गई।
नाट्य जगत को समृद्ध बनाने का संकल्प: समारोह में महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड के वाईस प्रेसिडेंट और कल्चरल आउटरीच के हेड जय शाह ने कहा- ‘मेटा, हमारे देश के नाट्य जगत को समृद्ध बनाने और उसकी सराहना करने की अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इस साल के विजेताओंने अपनी असाधारण रचनात्मकता और भावपूर्ण प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है। इन नाटकों ने संवाद को बढ़ावा देने और सामाजिक बदलाव को प्रेरित करने में थिएटर की अद्वितीय शक्ति को उजागर किया है। हम इन प्रतिभाओं को सम्मानित करते हुए गर्व महसूस करते हैं। आशा करते हैं कि अवॉर्ड हासिल करने वाले थियेटर ग्रुप्स और उनके कलाकार अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को हमेशा प्रेरित करते रहेंगे’।
अद्वितीय प्रतिभा और रचनात्मकता का उत्सव: फेस्टिवल के प्रोड्यूसर और टीमवर्क आर्ट्स के प्रबंध निदेशक संजॉय के. रॉय ने कहा, यह अवॉर्ड भारतीय रंग जगत की अद्वितीय प्रतिभा और बहुमुखी रचनात्मकता का उत्सव है। इस वर्ष के विजेताओं ने विविध विषयों में नवाचार,कहानी कहने की कला और कलात्मक प्रतिभा को अनूठे ढंग से परिभाषित किया है। ‘नि:संगो ईश्वर’ की सशक्त कहानी से लेकर ‘स्वांग: जस की तस’ और ‘चंदा बेड़नी’ में दिल को छू लेने वाले अभिनय तक, हम ऐसे थिएटर को आगे बढ़ते हुए देख रहे हैं जो दर्शकों को चुनौती देता है, प्रेरित करता है और उन्हें गहराई से जोड़ता है। कला के प्रति उनके अटूट समर्पण और रचनात्मक अभिव्यक्ति की सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए सभी विजेता और नामांकित थियेटर ग्रुप्स बधाई के पात्र हैं। मैं यह भी कहूँगा कि जिन्होंने पुरस्कार नहीं भी हासिल किये, वह भी अपने कला के मानदंडों पर कुछ कम नहीं’।
367 एंट्रीज़ से लेकर अवॉर्ड का सफ़र : आपको याद दिला दें कि इस साल, मेटा को देश भर से 367 से अधिक प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। इनमें बंगाली, अंग्रेज़ी, हिंदी, बुंदेली, मलयालम और कन्नड़ सहित विभिन्न भाषाओं के नाटकों का प्रतिनिधित्व रहा। चयन समिति ने 10 नाटकों को परफॉरमेंस के लिये नामांकित किया। सभी नाटकों का प्रदर्शन दिल्ली के कमानी ऑडिटोरियम के साथ श्रीराम सेंटर में हुआ। 13 मार्च से 19 मार्च तक सभी प्रस्तुतियों को दिग्गजों की एक जूरी ने देखा और फिर 20 मार्च को अवॉडर्स् घोषित किये गये।
Who says theatre is dying: जूरी पैनल में सुप्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक और अभिनेत्री लिलेट दुबे, इशारा कठपुतली थियेटर की निदेशक के दादी पुदुमजी, प्रशंसित फिल्म निर्माता सुधीर मिश्रा, एनसीपीए, मुंबई में थिएटर प्रमुख ब्रूस गथरी और अनुभवी मीडिया और थिएटर व्यक्तित्व सुनीत टंडन शामिल थे। कार्यक्रम में लिलेट दुबे ने एक अहम बात कही। अनुभवी लिलेट ने कहा -‘Who said Indian theatre is dying, the 367 entries in Meta are proof that Indian theatre is very much alive and active with creative energy.’
ख़ास मेहमान कार्यक्रम में हुए शामिल: 20 वें महिंद्रा एक्सीलेंस इन थिएटर अवॉर्ड्स (मेटा) में कई विशिष्ट अतिथियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इन ख़ास मेहमानों में एनडीएमसी के अध्यक्ष केशव चंद्र, अनुभवी अभिनेता और लेखक, कबीर बेदी, प्रसिद्ध थिएटर और फिल्म निर्देशक रजत कपूर, पूर्व राजनयिक और लेखक विकास स्वरूप, और ग्रुप एग्जीक्यूटिव वाईस प्रेसिडेंट और ग्रुप कस्टमर एंड ब्रांड महिंद्रा ग्रुप आशा खरगा शामिल हुईं।
सांस्कृतिक पहल का प्रमुख हिस्सा: मेटा, महिंद्रा समूह की सांस्कृतिक पहल का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसे अग्रणी मनोरंजन कंपनी टीमवर्क आर्ट्स द्वारा संचालित किया जाता है। यह प्रतिवर्ष भारत के रंगमंच जगत की असाधारण प्रतिभाओं को सम्मानित और पुरस्कृत करता है। मेटा न केवल सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियों और कलाकारों को मान्यता देता है, बल्कि उन निर्देशकों, लेखकों और डिजाइनरों को भी सम्मानित करता है, जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर इस कला को जीवंत बनाया है। मेटा का प्रयास केवल पुरस्कारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका लक्ष्य रंगमंच के प्रति जागरूकता और गहरी सराहना पैदा करना है। यह मंच थिएटर कलाकारों और दर्शकों के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित करता है, उन्हें प्रेरित करता है और रंगमंच कला के माध्यम से संवाद और सांस्कृतिक आदान प्रदान को बढ़ावा देता है। आगे पढ़िये – ठाकुर ने सुनाई काले कव्वे की स्टोरी, अम्मा ने कहा- जस्ट चिल!..https://indorestudio.com/thakur-ne-sunai/