मीर ने रखी थी गंगा-जमुनी तहज़ीब की बुनियाद : माधव कौशिक

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विशेष प्रतिनिधि, इंदौर स्टूडियो। ‘आज हम जिस गंगा-जमुनी तहज़ीब की बात करते हैं, बरसों पहले उसकी बुनियाद प्रख्यात शायर मीर तक़ी मीर ने अपनी शायरी के माध्यम से रखी थी। आम हिन्दुस्तानी की सोच में वह तहज़ीब आज भी ज़िंदा है। आज कविता में जो कुछ लिखा जा रहा है, वह भी मीर की देन है’। यह बात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने कही है। वे दिल्ली के रवींद्र में जारी ‘साहित्योत्सव 2024’ में प्रख्यात शायर मीर तक़ी मीर की शायरी पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। दो दिवसीय इस संगोष्ठी का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि हैदराबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सैयद एहतेशाम हसनैन और विशिष्ट अतिथि के रूप में उर्दू के लोकप्रिय लेखक और गीतकार गुलज़ार शामिल हुए।मीर की शायरी में आम ज़िदंगी का सच: संगोष्ठी में गुलज़ार ने कहा – ‘मीर तकी मीर आम ज़िदंगी की हक़ीकत को सामने रखकर शाइरी करने वाले कवि थे। उन जैसे शायरों की शायरी और उर्दू का चस्का ही उन्हें ऐसे प्रोग्रामों में खींच लाता है। संगोष्ठी के दूसरे विशिष्ट अतिथि जामिया मिल्लिया के पूर्व कुलपति सैयद शाहिद मेहदी ने कहा- ‘मीर के कलाम में उनका व्यक्तित्व झलकता है। उन्होंने कहा, अगर हमें मीर को कुबूल करना है तो हमें उन्हें मुक़्कमल तौर पर अपनाना होगा। उनकी अच्छाईयों और उनकी बुराईयों के साथ’।‘दि हिडन गार्डन’ से समझें मीर को: प्रो. सैयद एहतेशाम हसनैन ने अपने सम्बोधन में प्रो. गोपीचंद नारंग की लिखी अंग्रेज़ी किताब ‘दि हिडन गार्डन’ का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि मीर को समझने के लिए इस किताब को पढ़ना भी ज़रूरी है। उन्होंने मीर के कुछ छंद प्रस्तुत कर उनकी शायरी की छिपे बिंदुओं पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी में उर्दू परामर्श मंडल के संयोजक चंद्रभान ख़याल ने प्रारंभिक वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि मीर तक़ी मीर ने सभी शैलियों में शायरी की है लेकिन उनका असल मैदान ग़ज़ल है। वो उर्दू ज़बान के ऐसे अज़ीम शायर हैं जिन्होंने हर दौर में कला प्रेमियों और विद्वानों से दाद हासिल की है। उनके पदचिन्हों पर चलने की कोशिश कई नए पुराने रचनाकारों ने की लेकिन उनकी विशेषताओं को कोई छू ना सका। मीर तो क्या कोई मीर जैसा भी ना बन सका।मीर की महानता ग़ालिब ने कुबूल की: जामिआ मिलिया इस्लामिया के उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. अहमद महफूज़ ने कहा कि मीर की महानता को ग़ालिब और उनके समकालीन कवियों ने भी क़बूल किया है। मीर ने जो मुसीबतें बर्दाश्त कीं और जो दर्द और ग़म झेले, वह उनकी शायरी को पढ़कर महसूस किया जा सकता है। संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. शाफ़े क़दवाई और दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात कवि शीन क़ाफ़ निज़ाम ने की। दोनों सत्रों में क्रमश: डॉ. सरवत ख़ान, हक़्क़ानी-अल क़ासमी, प्रो. कौसर मज़हरी, लीलाधर मंडलोई और डॉ. जानकी प्रसाद शर्मा ने मीर की शायरी पर अपने आलेख प्रस्तुत किये।

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