स्व. मिर्ज़ा मसूद का अनकहा सच, सगे मामू ने धोखा दिया था!

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योग मिश्र, इंदौर स्टूडियो। ‘ये निशान आप देख रहे हैं ना, ये बंटवारे का ज़ख्म है’!… स्व. मिर्ज़ा मसूद ने मुझसे यह बात अपने ठुड्डी पर मौजूद चिन्ह को दिखाते हुए कही थी। एक मुलाक़ात में उन्होंने बंटवारे के बाद उनपर बीती यह तल्ख़ हक़ीक़त बयान की थी। उन्होंने बताया था किस तरह भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद उनके सगे मामू ने धोखा दिया था और उनका पाकिस्तान जाना रद्द हो गया था, लेकिन जो कुछ हुआ था, वह बहुत अच्छा ही हुआ था! मिर्ज़ा साहब का इंदौर में हुआ निधन: मिर्ज़ा मसूद छत्तीसगढ़ के मशहूर रंग निर्देशक, लेखक और आकाशवाणी के वरिष्ठ उदघोषक रहे, उनका 82 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने इंदौर में अंतिम सांस ली। ज़ाहिर है कि उनके निधन पर समूचे कला जगत में शोक की लहर है। उनके निधन पर मुझे उनकी कई बातों के साथ उस प्रसंग की भी याद आई, जिसका ज़िक्र मैंने इस लेख की शुरूआत में ही किया है। असल में मैं, मिर्ज़ा मसूद साहब, जलील रिज़वी सर और रंजन मोडक जी छत्तीसगढ़ एक युवा महोत्सव में नाट्य स्पर्धा के जजमेंट के आमंत्रित किये गये थे। उस कार्यक्रम में लंच के वक्त मिर्ज़ा साहब ने उनकी ज़िदंगी का यह प्रसंग सुनाया था। परिवार जाना चाहता था पाकिस्तान: उन्होंने बताया था – ” बंटवारे के बाद मेरा परिवार भी, दूसरे लोगों की तरह हिंदुस्तान से पाकिस्तान जाना चाहता था। इस वजह से हमारे घरवालों ने रायपुर में मौजूद अपनी सारी प्रॉपर्टी बेच दी थी। प्रॉपर्टी बेचकर जो भी रूपया-पैसा इकट्ठा हुआ, वो सब पाकिस्तान जा रहे अपने मामू को सौंप दिया था। वे उनके कुछ रिश्तेदारों के साथ पाकिस्तान जा रहे थे। उन्हें रूपये सौंपने का एक ही मक़सद था कि वे पाकिस्तान में किसी अच्छी जगह हमारे रहने का बंदोबस्त कर दें। मामू ने इस बात भरोसा दिया और वे पाकिस्तान रवाना हो गये। पीछे हमारा परिवार एक जानकार के घर पर वक्त काटने लगा। हमें इंतज़ार था पाकिस्तान गये मामू के ख़त या किसी संदेश का, जो नहीं आया।जब नहीं आया मामू का जवाब: मरहूम मिर्ज़ा साहब ने आगे बताया था – ‘पाकिस्तान जाने के कई दिनों बाद भी जब मामू का संदेश नहीं आया तब हमारे परिवार ने खुद ही उनसे संपर्क साधने के बारे में सोचा। यह काम मेरे ज़िम्मे आया और मैं माँ के साथ पाकिस्तान रवान हो या। उस ख़राब दौर और माहौल में हम किसी तरह हैदराबाद पहुँचे। वहाँ कुछ जानने वालों के ज़रिये मामू का पता लगाने की कोशिश करते रहे। आख़िर कामयाबी मिली। मगर जब मामू से मुलाक़ात हुई तो उन्होंने हम लोगों को पहचानने से ही इनकार कर दिया। ज़ाहिर है उनका ये सुलूक हम पर नागवार गुज़रा। पाकिस्तान जाने वाली ट्रेनें बंद: मिर्ज़ा साहब ने बताया – ‘ मामू की धोखेबाज़ी के बाद एक और घटना हुई। हैदराबाद से पाकिस्तान जाने वाली तमाम ट्रेनें बंद हो गईं। ऐसे हालात में हमें माँ के साथ लौटकर रायपुर आना पड़ा। मामू हमारी सारी जमा पूँजी हड़प चुके थे, अब हमारे लिये जीवन की गाड़ी को खींचना मुश्किल होने लगा था। ऐसे हालात में माँ को दूसरे घरों में जाकर काम करना पड़ा। इस तरह तंगहाली में मेरी बमुश्किल परवरिश हुई’। यह बात कहते हुए मिर्ज़ा साहब ने अपने गले के पास ठुड्डी के नीचे का ज़ख्म दिखाया। कहा- ‘ये बंटवारे का ज़ख्म है, यह हैदराबाद से लौटते वक्त लगा था’। जब कमेंट्री के लिये पाकिस्तान जाना पड़ा: मिर्ज़ा साहब आकाशवाणी के एक प्रख्यात एनाउंस रहे। एक बार उन्हें हॉकी की कमेंट्री के लिए पाकिस्तान जाना पड़ा। उस वक्त उन्हें एक बार फिर मां ने कहा, पाकिस्तान में अपने मामू से मिलकर ज़रूर आना। मिर्ज़ा साहब ने कहा, मगर मेरा उस दगाबाज मामू से मिलने की ज़रा भी इरादा नहीं था। हालांकि अम्मी का दिल रखने मैंने उनके सामने हामी भर दी थी। पाकिस्तान जाकर वहाँ का मैंने जो हाल देखा, उसे देखकर मैंने खुदा का शुक्रिया अदा किया। मुझे लगा ये तो बहुत अच्छा हुआ कि हम अपने मुल्क से पाकिस्तान नहीं आये। उस वक्त मुझे पैग़बर हज़रत मुहम्मद की कही एक बात भी शिद्दत से महसूस हुई। उन्होंने अपने जीवन काल में हिंदुस्तान का ज़िक्र करते हुए कहा था, कि हिंदुस्तान से पुरसुकून ठंडी हवायें आती महसूस होती हैं। यह ख़ुदा का हम पर करम था: मिर्ज़ा जी ने कहा था – ‘यह ख़ुदा का हम पर करम ही था, उसने जो कुछ किया था, वह अच्छा ही किया था। हमारे मामू को दुर्बुद्धि दे दी और जिन्होंने लालच में आकर हम लोगों को पहचानने से इनकार कर दिया। नहीं तो यह खूबसूरत मुल्क छोड़कर मुझे पाकिस्तान में रहना पड़ता। जहाँ मेरे मामू जैसे लालची और खुदगर्ज़ लोग रहते हैं। इसीलिये मैंने पाकिस्तान जाकर मामू से मिलने का खयाल ही छोड़ दिया था। जो आदमी हमें बुरे वक्त में छोड़ गया जिसने हमें पहचानने तक से इन्कार कर दिया था, उससे मिलकर भी क्या करते! मैं पाकिस्तान से लौट कर जब अपने मुल्क में दाखिल हुआ, मैंने अपनी धरती को चूमा। उस दिन से मेरे लिये मेरा मुल्क काबा-काशी जैसा हो गया’।उन्होंने मुस्कुराकर बात टाल दी थी: उनसे संस्मरण सुनकर मैंने कहा – ‘आपको अपना यह संस्मरण जरूर लिखना चाहिए, इससे चंद उन लोगों को प्रेरणा मिलेगी, जो रहते यहां हैं, पर तरफदारी पाकिस्तान की करते हैं।” उन्होंने मुस्कुराकर कहा- ‘आपकी बात सही है, लेकिन लोग इस बात को कितना समझेंगे, कहना मुश्किल है’। मिर्ज़ा साहब की यह बात ख़त्म होते-होते नाट्य स्पर्धा के अगले दौर का वक्त हो गया। हम फिर अपने काम में व्यस्त हो गये। मगर आज जब मिर्ज़ा साहब हमारे बीच नहीं, उनकी ज़िदंगी में गुज़रा यह प्रसंग याद आ गया। उनके जाने का हरेक कला प्रेमी के साथ मुझे भी अफ़सोस है। मरहूम मिर्ज़ा जी ने आकाशवाणी के उदघोषक के रूप में ही नहीं रंगकर्म के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके शानदार व्यक्तित्व को विनम्र श्रद्धाजंलि। ऋग्वेद का एक श्लोक है-
संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।
अर्थात हम सब एक साथ चलें। एक साथ बोलें। हमारे मन एक हों। प्राचीन समय में सज्जन पुरूषों का एक जैसा आचरण था, इसी कारण वे वंदनीय हुए हैं। अलविदा मिर्ज़ा साहब अब आप हमारी यादों में रहेंगे। कला-साहित्य की बुलंद शख़्सियत: बता दें कि स्व. मिर्ज़ा मसूद को छत्तीसगढ़ सरकार ने चक्रधर सम्मान और चिन्हारी सम्मान से नवाज़ा था। राज्य के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि मिर्ज़ा मसूद जी ने अपना पूरा जीवन रंगमंच को समर्पित कर दिया। उनका निधन कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने कहा, मिर्ज़ा मसूद जी की करिश्माई आवाज़ और अंदाज उन्हें अद्वितीय बनाते थे। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में हिंदी कमेंटेटर के रूप में भी अपनी विशेष पहचान बनाई। मिर्ज़ा मसूद जी के कला और संस्कृति के क्षेत्र में योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा’। आगे पढ़िये, रेड फ्रॉक में आलोक चटर्जी का सम्मोहक अभिनय  https://indorestudio.com/red-frock-me-alok-chatterjee/

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