हमें कभी नहीं लगा मालती दीदी इतनी बड़ी कथाकार हैं !

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कीर्ति राणा, इंदौर स्टूडियो। ‘वो इतनी सहज थीं कि हमें कभी लगा ही नहीं कि हमारी बड़ी बहन इतनी बड़ी कथाकार हैं’। यह बात प्रतिष्ठित कथाकार स्व.मालती जोशी के भाई चंद्रशेखर दिघे ने कही। वे मालती जी के निधन पर उनकी स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे थे। इस कार्यक्रम में मालती जी के लिये लिखे पीएम मोदी के पत्र का वाचन किया गया। उनकी कहानियों पर बनाई गई गुलज़ार की दो फ़िल्में भी दिखाई गईं।सूत्रधार’ ने आयोजित किया कार्यक्रम: इंदौर में यह कार्यक्रम ‘सूत्रधार’ संस्था के श्री सत्यनारायण व्यास ने आयोजित किया। इस कार्यक्रम में मालवा की मीरा कहलाने वाली मालती जी के परिजन और कुछ करीबी शामिल हुए। हालांकि अपेक्षा के अनुरूप इस कार्यक्रम में शहर के बहुत कम साहित्यकार शामिल हुए। ग़ौर तलब है कि मालती जी का बीती 15 मई 2024 को नई दिल्ली में उनके निवास पर निधन हो गया था। 90 साल की मालती जी कैंसर से पीड़ित थी। ( पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद 20 मार्च, 2018 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित नागरिक अलंकरण समारोह में श्रीमती मालती जोशी को पद्म श्री पुरस्कार प्रदान करते हुए।)भरे मन से आई दीदी की याद: कार्यक्रम में मालती जी के भाई श्री चंद्रशेखर दिघे भी शामिल हुए। उन्होंने दीदी को भरे मन से याद किया। श्री दिघे ने कहा – ‘जब वे कथा कथन के लिए आती थीं, तब कार्यक्रमों में हम उनका हाथ पकड़ कर मंच पर ले जाते थे, अफ़सोस कि वे आज हमारे साथ नहीं हैं’। उन्होंने बताया, ‘मालती दीदी का कवि मन कॉलेज के दिनों में धड़का। मीरा-महादेवी में उनकी आस्था बढ़ने लगी। तब वे इंदौर के होल्कर कॉलेज में पढ़ती थीं। कॉलेज की होल्कर गैदरिंग में उन्होंने सस्वर अपनी कविताओं का पाठ किया। अपनी रचनाओं से वे देखते-देखते वह सबकी चहेती बन गईं। बाद में प्रख्यात साहित्यकार शिव मंगल सिंह सुमन जी ने उन्हें ‘मालवा की मीरा’ नाम से सम्बोधित किया। जब दीदी ने  ऋषिकेश जोशी और डॉ सच्चिदानंद जोशी को जन्म दिया तब मालती दीदी को लगा कि बच्चों के लिए भी लिखना चाहिये। इस तरह उन्होंने पराग, नंदन पत्रिकाओं के लिए भी लिखना शुरू किया। धर्मयुग के लिये निरंतर लेखन किया: 1970-71 में धर्मयुग का बोलबाला था, तब उसके लिए भी निरंतर लिखा तथा बड़ा पाठक समूह बना। 2022 में अंतिम कहानी नवनीत में छपीं उनमें लेखकीय दंभ कभी नहीं रहा। अपनी हर रचना के साथ टिकट लगा लिफाफा भेजती रही। ‘नवनीत’ के संपादक ने लिखा बहनजी हमें क्यों शर्मिंदा कर रही हैं, हम आपका लिखा क्यों वापस भेजेंगे। कभी नहीं लगा, वे बड़ी लेखिका हैं: यह अनुभव कभी नहीं हुआ कि वो इतनी बड़ी लेखिका हैं। अमेरिका की कई लायब्रेरियों में तक उनकी किताबें मौजूद है। घर पर मेहमान आ जाएं तो फौरन ही रसोई में कुछ अच्छा बनाने में व्यस्त हो जाती थीं, परिवार में वो बहुत ही सहज रहती थीं। जोशी-दिघे परिवार में परिजनों के साथ सेवकों-कर्मचारियों का पूरा खयाल रखती थीं। फरवरी 2023 में “वीणा” में उनकी अंतिम कविता प्रकाशित हुई थी। उस कविता को पढ़कर लगता है जैसे उन्होंने सबसे विदा होने वाली काव्य रचना की है।पीएम मोदी के शोक पत्र का वाचन: इस भावसिक्त कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उनके निधन पर लिखे शोक पत्र का वाचन किया गया। साथ ही फिल्मकार गुलजार द्वारा उनकी कहानियों पर बनाई गई लघु फिल्में भी दिखाई गईं। जबकि अपने वक्तव्य में साहित्यकार डॉ. किसलय पंचोली ने उन्हें मध्यमवर्गीय परिवारों की संवेदनाएं अभिव्यक्त करने वाली सहज कहानीकार बताया।कहानियों में जीवन की अनुभूति: डॉ.किसलय पंचोली ने कहा, मालती जी अपनी कहानियों के विषयों को लेकर कहती थीं, मैं जीवन की छोटी-छोटी अपनी और अपने लोगों की अनुभूतियों को कहानी में पिरोती हूं। उनके गद्य-पद्य का हर शब्द दिल में उतर जाता है। वे अपने लेखन में जटिल शब्दों से बचती रहीं और आंचलिक शब्दों को सम्मान देती रहीं। अपने लेखन में उन्होंने मध्यमवर्गीय परिवारों की संवेदनाएं अभिव्यक्त की हैं। उनकी कहानियों के पात्र विद्रोही नहीं सामान्य हैं। बता दें कि मालती जी के हिंदी में 30 कहानी संग्रह और मराठी में 15 संग्रह आ चुके हैं।उनके प्लॉट से प्रेरित होकर लिखी कथा: डॉ.किसलय ने कहा, उनकी कहानी ‘राजधानी एक्सप्रेस’ से प्रभावित होकर मैंने भी उसी प्लॉट पर ‘नो पार्किंग’ कहानी लिखी थी। यह बात जब मैंने उन्हें बताई तो मेरी कहानी पढ़ने के साथ आशीर्वाद भी दिया। होल्कर कॉलेज से एजुकेशन के दौरान मालती जी कविताएं लिखती थीं। कवि शिवमंगल सिंह सुमन ने उनकी कविताओं से प्रभावित होकर ही उन्हें ‘मालवा की मीरा’ नाम दिया था। आकाशवाणी के उदघोषक रहे-रंगकर्मी संतोष जोशी ने मालती जोशी के निधन पर उनके पुत्र डॉ सच्चिदानंद जोशी को 17 मई को लिखे प्रधानमंत्री मोदी के पत्र का वाचन किया।गुलजार और जया बच्चन फिल्में बनाईं: गुलजार ने मालती जोशी की कहानी पर दो फिल्में बनाई हैं जिनमें एक ‘मन धुआं-धुआं’ और दूसरी ‘कल्चर’। प्रेस क्लब में हुए कार्यक्रम में इन दोनों लघु फिल्मों का प्रदर्शन भी किया गया। जया बच्चन ने उनकी कहानी पर धारावाहिक  ‘सात फेरे’ का निर्माण किया। उनकी कहानियों का मराठी, उर्दू, बंगाली, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, मलयालम, कन्नड़, अंग्रेजी, रूसी और जापानी सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया गया, जिससे विविध दर्शकों तक उनकी पहुंच और प्रभाव का विस्तार हुआ। मालती जी की अंतिम कविता:
समय के सिंधु में है
बिंदु भर अस्तित्व मेरा
इसलिये अभिमान भी करती नहीं मैं।
प्राप्य जो मेरा रहा है
वह मुझे सब मिल गया है
परम तृप्ति से हृदय का कलश
नित भरती रही मैं।…
(कीर्ति राणा वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक हैं। बीते 40 वर्षों से अपने विशिष्ट लेखन और राजनैतिक विश्लेषण के लिये पहचाने जाते हैं।) आगे पढ़िये, फिल्म ‘रिटर्न टू पांडिचेरी’ में पहचान के संकट का दर्द! – https://indorestudio.com/return-to-puducherry-me-pehchan-ka-sankat/

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