शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। बीबीसी के नाम से मशहूर फिल्म पत्रकार और समीक्षक बृजभूषण चतुर्वेदी का इंदौर में शनिवार 11 नवंबर को निधन हो गया। वे 86 बरस के थे। फिल्में देखना और उनपर लिखना बीबीसी का जुनून था।आजीवन वे इसी जुनून को पूरी लगन के साथ जीते रहे। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। उनके जाने से इंदौर में फ़िल्मी पत्रकारिता को बड़ा धक्का लगा है। इंदौर में फिल्म पत्रकारिता को शिखर तक पहुँचाने वाले जयप्रकाश चौकसे और श्रीराम ताम्रकार जैसे दिग्गजों के बाद बृजभूषण एक और ऐसा नाम रहे जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति थी। उनका फिल्म इंडस्ट्री के तमाम कलाकारों से सीधा संपर्क था। रामानंद सागर कहते थे बीबीसी: आप यह जानकर हैरान रह जायेंगे कि उन्हें बीबीसी नाम किसी और ने नहीं बल्कि डॉ. रामानंद सागर ने दिया था। वे उन्हें इसी नाम से बुलाते थे। रामानंद सागर, बृजभूषण के सिनेमा के प्रति समर्पण से बड़े प्रभावित थे। उनके समर्पण की बात उनके इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (IFFI) में निरंतर मौजूदगी से ज़ाहिर होती है। श्री चतुर्वेदी जी ने 52 राष्ट्रीय फिल्म फेस्टीवल में से 51 फिल्म फेस्टीवल कवर किए थे। इफ्फी के अलावा दूसरे समारोहों को भी मिला लें तो यह संख्या 60 से ऊपर तक जाती है। उन्होंने फिल्मों पर कई विशेषांक प्रकाशित किए। उनमें कई दिग्गज फिल्मी हस्तियों के साक्षात्कार शामिल हैं। फिल्मों से जुड़ी सामग्री का उनके पास बड़ा संग्रह रहा।
हॉकर से लेकर गेटकीपर तक बने: 13 साल की उम्र में, उन्होंने इंदौर की ही ज्योति टॉकीज़ में नौकरी की। यहां उन्होंने गेटकीपर से लेकर टिकिट बुक करने वाले क्लर्क तक का काम किया। वे इंदौर में नीलकमल सिनेमा में मैनेजर भी बने।इस तरह बचपन से फिल्मों की तरफ़ उनका रूझान एक जुनून में बदलने लगा। यह दिलचस्पी उनके फिल्म समारोहों में जाने और देश-विदेश के सिनेमा को देखने के बाद से और भी गहरी होती चली गई। 1960 से वे एक टीचर रहे। प्रिसिंपल के रूप में रिटायर हुए। परंतु फिल्मों पर उन्होंने 1950 के बाद से ही लिखना शुरू कर दिया था। वे बचपन में इंदौर के एक अख़बार के हॉकर रहे। परंतु बाद में शहर के सभी समाचार पत्रों में बतौर फ़िल्म समीक्षक प्रकाशित होने लगे। वे इंदौर में फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन के काम से वे तब से जुड़े थे जब इंदौर में महज़ दो-तीन फिल्म वितरक हुआ करते थे।
मिलनसार स्वभाव थी बड़ी ख़ूबी:
बीबीसी की एक और बड़ी ख़ूबी उनकी विनम्रता और मिलनसार स्वभाव रही। वे हरेक से खुलकर मिला करते थे। अपनी बात सहज रूप से कहा करते थे। इंदौर के समाचार पत्र ‘चौथा संसार’ में सेवाओं के दौरान मुझे उनसे पहली बार 1989-90 में मिलने का अवसर मिला था। उन दिनों वे अपने सिने विशेषांक की तैयारी ज़ोर-शोर से किया करते थे। फिल्मी डायरेक्टरी को लेकर भी काम किया करते थे। इसी साल स्टेट प्रेस क्लब के कार्यक्रम में मुलाकात के वक्त उन्होंने अपने निवास पर आमंत्रित किया था। हालांकि उनसे यह मुलाक़ात नहीं हो सकी। इंदौर स्टूडियो की तरफ़ से इस पत्रकार हस्ती को हमारी विनम्र भावांजलि। आगे पढ़िये-
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