कला प्रतिनिधि, इंदौर स्टूडियो। रघु के साथ क्या होता है जब वह अपने नए स्कूल की नई नयी क्लास में आता है? क्लास के दूसरे बच्चे उसे गैंडा कहकर खिल्ली उड़ाने लगते हैं। सवाल है कि बच्चे अपनी क्लास के नये साथी के साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं? क्यों वे उसकी खिल्ली उड़ाने लगे हैं? ऐसे में अब रघु क्या करेगा?कमल काबुलीवाला की बेहतरीन प्रस्तुति: बचपन और ख़ासकर स्कूली दिनों की याद दिलाता ये है नाटक -‘मोटी चमड़ी वाला’। कमल प्रूथी जिन्हें हम कमल काबुलीवाला के नाम से भी जानते हैं, उनके निर्देशन में इस नाटक का दिल्ली के मैक्स म्युलर भवन में मंचन हुआ। नाटक के यहाँ पर दो शोज़ प्रस्तुत किये गये। इन्हें दर्शकों ने मंत्रमुग्ध होकर देखा और इसके रेखांकित किये गये संदेश को आत्मसात किया। यह बाल नाटक मूल रूप से जर्मनी भाषा में लिखा गया है, जिसका अनुवाद ख़ुद कमल काबुलीवाला ने किया है, नाटक में वे अपने साथी अभिनेता गिरीश जैन के साथ बेहतरीन अभिनय की छाप भी छोड़ते हैं। नाटक में तबले पर सहयोग राहुल साह ने दिया है।संवेदनशील विषय पर संदेश देता नाटक: 45 मिनट का यह एक लाजवाब नाटक है जिसमें स्कूलों और कॉलेजों में खिल्ली उड़ाने और दादागिरी करने जैसे अति संवेदनशील विषय पर संदेश दिया गया है। दुनिया का लगभग हर बच्चा इसका शिकार होता है। बच्चे जाने-अनजाने में दूसरे बच्चों की खिल्ली या मज़ाक बहुत सी वजहों से उड़ा देते हैं जैसे चमड़ी का रंग, शरीर का आकार, जाति, बुद्धि, मंदता, ऊंचाई, लैंगिक-रुझान, किसी का अंतर्मुखी या बहिर्मुखी व्यवहार, जब कोई एक्ज़ाम में अच्छे नंबर नहीं ला पाता या जब कोई हमेशा ही बढ़िया नंबर लाता है। किसी न किसी रूप में बच्चे खिल्ली का शिकार हो ही जाते हैं। खिल्ली उड़ाने के तरीके अनेक: खिल्ली उड़ाना सभी रूपों में होता है चाहे वह गाली-गलौज हो, छींटाकशी, छेड़छाड़ करना, अटपटे नाम रखकर चिढ़ाना, साथ न खिलाना, बहिष्कृत करना, बात न करना, ताने देना और तो और शारीरिक हमला और यौन शोषण भी। बहुत से बच्चे इस तरह के व्यवहार से बचने के लिए अपनी ही बनाई एक अदृश्य आतंरिक गुफा में चले जाते हैं, किसी से कुछ भी नहीं कह पाते और सिर्फ कुछ ही अपने सबसे अच्छे दोस्तों, भाई-बहनों, माता-पिता या शिक्षकों से बात करते हैं उनसे सलाह लेते हैं। लेकिन उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जो कई सालों तक बचपन के इस सदमे के बारे में बिना किसी को बताये चुपचाप इसे झेलते रहते हैं और कुछ इसके शिकार भी हो जाते हैं और अंत में आत्महत्या तक कर लेते हैं।हँसते-हँसते सोचने पर विवश करता नाटक: नाटक में रघु की कहानी हर दर्शक को उसके बचपन बचपन और स्कूली जीवन से जुड़ी यादों में खींच ले जाती है। नाटक हर उम्र के बच्चों, कॉलेज के छात्रों, शिक्षकों, माता-पिता को हंसने के साथ-साथ सोचने और विचार करने पर भी मजबूर करता है। नाटक उन सभी लोगों के लिए प्रासंगिक है जिन्हे हंसने, क्षमा करने, विचार-मंथन करने, मुद्दों और उनके हल पर चर्चा करने और जीवन में आगे बढ़ना पसंद है। आगे पढ़िये –