रायपुर के मंच पर, नृत्य की पूजा में आरती के फूल!

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(रायपुर, अख़तर अली,इंदौर स्टुडियो डॉट कॉम)। कला की विभिन्न विधाओं में नृत्य अन्य की अपेक्षाकृत कठिन विधा है। यह एक श्रेष्ठ प्रदर्शन के बदले आप से पूरे जीवन भर की साधना और आराधना मांगती है। नृत्य जब तक नृतक में और नृतक जब तक नृत्य में न समां जाये नृत्य अपनी प्रस्तुति में आकार नहीं लेता है। हाल ही में रंग मंदिर रायपुर के मंच पर प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना सुश्री आरती सिंह की नृत्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला । ऋतुश्रंगार पर आधारित यह नृत्य प्रस्तुति देखना , देखे जाने का अब तक का सब से अच्छा देखा जाना लगा । नृत्य कहीं नदी , कहीं चाँद और कहीं नदी में चाँद था । कत्थक केवल देखने वाली विधा नहीं है , इसके देखने में इसका सुना जाना भी शामिल है। कर्ण प्रिय संगीत, मधुर गायन और आकर्षक आंगिग अभिनय ने ऋतुश्रृंगार की कल्पना को एक उंचाई प्रदान की । रायगढ़ घराने के सुप्रसिद्द रचनाकार ठाकुर वेदमणि सिंह की रचनाओं पर बसंत तिमोथी का संगीत संयोजन इस पाकीज़गी , रूहानियत और रूमानियत से लबरेज़ प्रस्तुति का अहम् हिस्सा रहा। नृत्य के अभ्यस्त दर्शकों के साथ-साथ नृत्य के नये दर्शको की समझ का ध्यान रखते हुये आरती ने अपनी प्रस्तुति को जिस तरह डिज़ाइन किया , जिस तरह उसका श्रृंगार किया , संगीत , वेशभूषा , प्रकाश व्यवस्था का जिस कुशलता से संयोजन किया गया, यह सूक्ष्म कलात्मकता की उम्दा कारीगरी लगी । प्रत्येक प्रदर्शनकारी विधा में दो प्रकार के दर्शक होते है , एक वे जो समझकर देखते है और एक वे जो देखकर समझने का प्रयास करते है , जो मंच पर है यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि प्रेक्षागृह तक आया प्रत्येक दर्शक अपने आने को ज़ाया न समझे और आरती ने अपनी इस ज़िम्मेदारी का निर्वाह सफलता पूर्वक किया। कत्थक नृत्य की यह प्रस्तुति जिन्होंने देखा वे ही न देख पाने वालों के नुकसान का अनुमान लगा सकते है।प्रस्तुत नृत्य, समूह नृत्य था ।एकल की तुलना में समूह नृत्य ज़्यादा कठिन होता है , आरती ने इस चुनौती को कामयाबी के साथ निभाया है। आरती ने नृत्य करने के साथ साथ इस समूह नृत्य को निर्देशित भी किया है ।आरती जी ने अपने गुरुओ से सीखते और अपने शिष्यों को सिखाते एक लम्बी यात्रा तय कर ली है ।आप आज पहचान की जिस उंचाई पर मौजूद है वहाँ सुविधा की किसी लिफ्ट से नहीं पहुची है बल्कि संघर्ष और परिश्रम की सीढ़ी सीढ़ी चढ़ कर उस बुलंदी को हासिल किया है जहां से उनका काम हर किसी को नज़र आ रहा है । मैंने लगभग डेढ़ दशक पहले भीमसेन भवन में आरती सिंह के कत्थक नृत्य की एकल प्रस्तुति देखी थी , मुझे अच्छी तरह से याद है तब विद्यानाथ जी के तबले की थाप पर आरती सिंह ने नृत्य की ऐसी प्रस्तुति दी थी कि भीमसेन भवन में घुंघरूओ से ज़्यादा तालियाँ बजी थी ।

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