आदिल भाई और मिशन एनएसडी: स्वानंद किरकिरे

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स्व. आदिल कुरैशी से जुड़ी यादों को लेकर गीतकार, गायक और अभिनेता स्वानंद किरकिरे के लेख का पहला भाग आप पढ़ चुके हैं। अब पढ़िये लेख का दूसरा भाग। इसमें है स्वानंद जी के एनएसडी, दिल्ली में सेलेक्शन की दिलचस्प कहानी। प्रस्तुति: शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। छाया सहयोग: तनवीर फारूकी और बीनिश कुरैशी।मिशन एनएसडी के वो दिन: आदिल भाई ने एनएसडी में मुझे सेलेक्ट कराना अपना मिशन बना लिया था। मैं एनएसडी में प्रवेश लेने की कोशिश कर रहा हूँ, 1992 में चल रही थियेटर वर्कशॉप के दौरान ही उन्होंने यह बात आशीष विद्यार्थी को बताई। आदिल भाई के कहने पर ही आशीष, वर्कशॉप में से समय निकालकर मेरी तैयारी कराने लगे। एनएसडी के एक्ज़ाम के लिये मुझे एक मोनोलॉग भी तैयार करना था। उसकी रिहर्सल होने लगी। आदिल जी आते-जाते मुझे याद दिलाने की नीयत से कहने लगे -‘ रिहर्सल कर लो, किरकिरे साब’। एकज़ाम के लिये जिस दिन मुझे मुंबई जाना था, वे मुझे बस स्टॉप तक छोड़ने आये, मुझसे पूछा कि क्या पैसों की ज़रूरत है? उसके बाद डिनर बॉक्स देकर मुझे विदा किया।मेरी ग़लती से नहीं हुआ सेलेक्शन: उस साल मेरा चयन एनएसडी में नहीं हो सका, ये मेरी ग़लती थी। मैं मोनोलॉग की लाइनें भूल गया था। जब मैं इंदौर वापस आया तो आदिल भाई और कुछ साथी मुझे लेने आये। सभी यह सुनकर दु:खी हो गये कि मेरा सेलेक्शन नहीं हो सका है। आशीष विद्यार्थी कारण जानकर बहुत क्रोधित हुए। कहने लगे – ‘एक भी लाइन भूलना अक्षम्य अपराध है। पत्थर पर खुदे अक्षरों की तरह तुम्हारे अंदर लाइनें छप जाना चाहिये। यदि कोई नींद में भी पूछे तो तुम्हें एक एक्टर के रूप में धारा प्रवाह बोलते आना चाहिये’। आशीष सबके सामने नाराज़ हुए: आशीष ग़लत नहीं थे, मगर वो ये बातें वर्कशॉप में सबके सामने कह रहे थे, ख़ासकर उस लड़की के सामने, जो मुझे वहां मिली थी, जिसे मैं थोड़ा पसंद करने लगा था। आदिल भाई ये सब देख रहे थे। वर्कशॉप के बाद वे हमें आमिर खान की फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’ दिखाने ले गए। पूरी फिल्म जीत-हार, सफलता-असफलता के बारे में थी। आज समझ में आता है कि आदिल भाई हमें उसी दिन क्यों फिल्म दिखाने ले गये थे ? थका हुआ मन फिर से जीवंत हो उठा और हमने फिर से रंगमंच और अभिनय को दिल लगाकर सीखना शुरू कर दिया।दोस्ती में उम्र आड़े नहीं आई: आदिल भाई हम सभी से बड़े थे, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी ‘उम्र’ को आड़े नहीं आने दिया। घर पर अचानक उनकी मोटर साइकिल आकर रूकती थी। वे हमें यह कहते घर ले जाते कि चलिये बिरयानी खाते हैं। वहां डॉ. राहत इंदौरी और कुछ और शायर होते। हमें उन शायरों को सुनने का मौका मिल जाता। इसी तरह इंदौर के शनि मंदिर के समारोह में, मैं कभी प्रभा अत्रे का गाना सुनता, कभी किसी चित्रकार की प्रदर्शनी देखता, कभी सीधे बीवी कारंत का नया नाटक देखने के लिये, उनके साथ 140 किलोमीटर दूर भोपाल जाता। आदिल भाई एक ही मक़सद होता। हम सभी को कुछ अच्छा देखने या सुनने को मिल जाये। साथ में हँसना-बोलना हो, ज़ायकेदार ख़ाना भी चलता रहे। रवि ने जब की पैसे की बात: एक दिन मेरे दोस्त रवि महाशब्दे ने उनसे कहा- ‘आदिल भाई, आप हम पर बहुत पैसे खर्च करते हैं, अच्छा नहीं लगता। हम अभी स्टूडेंट्स हैं। हमारे पास ज़्यादा पैसे तो होते नहीं, अच्छा नहीं लगता’। आदिल भाई बोले, ‘आप बिल्कुल सही कह रहे हैं साब। अब से एक पेमेंट आप करेंगे और एक पेमेंट मैं’। अब आदिल भाई ने इसकी भी बड़ी सुंदर व्यवस्था कर दी। जब भी हम किसी होटल में खाना खाते तो आदिल भाई बड़ा बिल चुकाते और चाय पीते वक्त हमसे चिल्लर मांगते। सिनेमा का टिकट तो वे ख़ुद खरीदते, लेकिन स्कूटर स्टैंड का पैसा हमें देना पड़ता। इस तरह उन्होंने हम बच्चों से दोस्ती भी क़ायम रखी और आत्म सम्मान भी बनाये रखा।जब एनएसडी में मेरा चयन हुआ: बाद में मेरा चयन एनएसडी में हो गया। आदिलभाई घर आए और बोले, “चलो चलें” और एक फोटोग्राफर के पास गए और मेरी एक तस्वीर ली। उन्होंने कहा, ‘आप इंदौर से पहले हो जिसका एनएसडी में चयन हुआ है। ये ख़बर अब पेपर में छापवाएँगे।’ जब एक बड़े अखबार के संपादक ने इसे खबर न मानकर नहीं छापा तो आदिल भाई इंदौर के सभी अखबारों के दफ्तर गए और आख़िरकार एक अखबार में ये खबर छपवा दी। हालांकि हमारी जानकारी ग़लत निकली, 1961 में एनएसडी के प्रथम वर्ष में विनायक और कुमुद चस्कर दोनों इंदौर से एनएसडी गए थे। जब मैंने यह बात आदिल भाई को बताई तो उन्होंने कहा, ‘अख़बार अगर इसको खबर मानकर छापेंगे नहीं तो हमको कैसे पता चलेगा इसलिए छपवाना था।’आदिल भाई और रवि पहुंचे दिल्ली: मैं जब एनएसडी से पास आउट हुआ तब मैंने शहीद भगत सिंह की रचनाओं पर आधारित अपना पहला नाटक ‘एक सपना’ लिखा और निर्देशित किया। तब आदिल भाई और रवि विशेष इंदौर से दिल्ली पहुँचे-सिर्फ नाटक देखने के लिए। आकर उन्होंने कहा, ‘जिस राष्ट्रीय विद्यालय के रंगमंडल में एमके. रैना, राम गोपाल बजाज जैसे महान लोगों ने नाटकों को निर्देशित किया, उस सूची में तुम्हारा नाम दर्ज हो गया है। आना तो बनता है’! सारे साथी उनके पास बैठे थे: आदिल भाई एनएसडी में भी सबसे घुल मिल गये। नाटक के बाद मैंने देखा, होस्टल के तकरीबन सभी लड़के उनके आसपास बैठे थे। आदिल भाई उन्हें अपनी बातों से हँसा रहे थे। बाद में उनके साथ हम दिल्ली घूमे। पुरानी दिल्ली की गलियों में कबाब खाने पहुँचे। अलग-अलग जगहें देखीं। नेशनल आर्ट गैलरी भी देखने गये।आदिल भाई ने तय किया मुंबई जाना: जब वैश्वीकरण शुरू हुआ तब सैटेलाइट टीवी नाम का एक नया माध्यम कलाकारों के सामने आया था। कई नये लेखकों, कलाकारों को अच्छा काम और पैसा मिलने लगा। बहुत से कलाकार भी इंदौर से मुंबई पहुंचने लगे। लोगों को काम मिल भी रहा था।आदिल भाई भी अब मुंबई के बारे में सोचने लगे।राहत साहब भी तब मुंबई में ही थे: उन दिनों राहत साहब मुंबई में ही थे। तब वे फिल्म ‘सर’, ‘मिशन कश्मीर’,’करीब’ जैसी कई फिल्मों के गाने लिख रहे थे। इस दौर में जिंदगी बनाने के सपने सच हो रहे थे। आदिल भाई भी उस प्रलोभन का विरोध नहीं कर सके। उन्होंने इंदौर में अपनी रोडवेज कंपनी की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी। वे मुंबई पहुँच गये लेकिन मुंबई हर किसी को रास नहीं आती। पूरी दुनिया से प्यार करने वाले आदिल भाई मुंबई को अपने पाले में नहीं कर सके।मुंबई का संघर्ष और एकाकी जीवन: पहली बार मुंबई में मैं उनसे एक पुराने कमरे में मिला। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पिंजरे में बंद किसी बाघ को देख रहा हूँ। उनके चेहरे की मुस्कान गायब हो चुकी थी। मैं एक अलग ही थके हुए आदिल भाई को देख सकता था। उनके लिये अपनी पत्नी, तीन छोटे बच्चों की शिक्षा का खर्च और मुंबई में रहना मुश्किल हो चला था। सबसे मुश्किल काम दोस्तों की कंपनी के बिना उन्हें रहना था। कुछ वर्षों तक संघर्ष करने के बाद, आदिल भाई आख़िरकार मुंबई से इंदौर लौट गए लेकिन उसके बाद से आदिल भाई पहले जैसे नहीं रहे। सभी बड़े दिल वाले कहां होते हैं: इंदौर जैसे छोटे से शहर में सभी लोग बड़े दिल वाले नहीं होते, कुछ लोगों ने उनकी वापसी पर ताना मारा और वे निराश हो गये। फिर उन्होंने कई वर्षों तक अख़बारों में काम किया, लेकिन वह उत्साह, वह आत्म विश्वास और अच्छाई कहीं फीकी पड़ चुकी थी। बाद में वह हृदय रोग से पीड़ित होने लगे। देश-दुनिया में बदलते हालात का असर भी उन पर पड़ रहा था। सोशल मीडिया के आने के बाद लोग पहले की तरह मिलना-जुलना बंद कर चुके थे। आदिल भाई भी अब कम बात करने लगे, उनके चेहरे पर तैरने वाली हंसी धीरे-धीरे कम होने लगी। एक दिन उनके गंभीर होने की ख़बर मिली: एक दिन ख़बर मिली कि आदिल भाई बहुत गंभीर हैं। मैं तो नहीं जा सका, लेकिन रवि इंदौर चला गया। वहां से उसने फ़ोन किया , ‘कुछ भी सही नहीं लग रहा। उन्होंने मुझे देखा और बस थोड़ा सा हँस दिये’। मैंने सोचा, क्यों न मैं उनसे वही सवाल पूछूँ जो उन्होंने नौकरी छोड़ने से पहले मुझसे पूछा था। कभी सोचा नहीं था कि सबको सलाह देने वाले आदिल भाई को भी एक दिन सलाह की जरूरत पड़ सकती है! मैंने सोचा उन्हें जाकर फ़िल्म दिखाऊँ: मैंने ये भी सोचा कि इंदौर जाकर उन्हें ‘जो जीता वही सिकंदर’ दिखाऊं और कुछ कहूं…लेकिन मैं ऐसा कुछ नहीं कर सका…। और एक दिन आदिल भाई इस दुनिया से विदा हो गये। उनकी श्रद्धांजलि सभा में मैं इंदौर गया। प्रेस क्लब में उनके दोस्त जमा थे। मिलनसार आदिल भाई के लिये आधा इंदौर जमा था। कहने के लिये सबके पास एक ही वाक्य था -‘ उफ़! क्या आदमी था’! लेख में दिये गये चित्रों का विवरण। 1. ‘दबंग; में पत्रकारिता के दौरान प्रवीण खारीवाल के साथ आदिल जी । 2. गायक, गीतकार स्वानंद किरकिरे 3. आशीष विद्यार्थी के साथ आदिल कुरैशी 4. राहत इंदौरी और जावेद अख़्तर के साथ आदिल कुरैशी 5. एक्टर रवि महाशब्दे के साथ स्वानंद किरकिरे 6. आदिल जी और उनकी पत्नी के साथ स्वानंद 7. आदिल कुरैशी के साथ रवि महाशब्दे, वीरेंद्र सक्सेना और अजय कुमार 8. पकंज संघवी, राजेश दुबे रोमी, पृथ्वी सांखला और साथियों के साथ आदिल कुरैशी 9. मुंबई में रवि महाशब्दे के साथ सपत्नीक आदिल जी। 10. प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी और बेटी बीनिश के साथ आदिल कुरैशी 11.आदिल जी अपने परिवार और छायाकार तनवीर और दीपा फारूकी के साथ 12. एक कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए आदिल कुरैशी 13. गीतकार, गायक, अभिनेता स्वानंद किरकिरे 14. शकील अख़्तर और तनवीर फारूकी के साथ चर्चारत आदिल जी। 15. शाहिद मिर्ज़ा के साथ बनाई नाट्य संस्था ‘रंगशाला’ के कलाकार साथियों के साथ आदिल कुरैशी। https://indorestudio.com/

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