कल्पनाशील मंच पर बड़े कैनवास वाला नाटक

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शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। साढ़े छह सौ पन्नों के उपन्यास का नाट्य रूपांतरण आसान नहीं है। ख्यात निर्देशक और अभिनेत्री भारती शर्मा ने नाटक ‘पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी’ में यह कर दिखाया। उन्होंने बड़े कैनवास वाले इस विशद नाटक को कल्पनाशील मंच पर प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया। स्व.शरद पगारे रचित इस उपन्यास का दिल्ली के श्रीराम सेंटर में पिछले दिनों पहला मंचन हुआ। इसकी प्रस्तुति भारती जी के ‘क्षितिज थियेटर ग्रुप’ के करीब 30 कलाकारों ने दी। यद्दपि नाटक की प्रकाश योजना, इसकी अवधि और रूपांतरण में कुछ ज़रूरी संपादन की आवश्यकता भी महसूस हुई।निर्देशन,परिकल्पना के साथ ही अभिनय: नाटक को अनुभवी भारती शर्मा ने अपनी विद्वत्तापूर्ण दृष्टि से निर्देशित किया। नाटक में उन्होंने सम्राज्ञी की अहम भूमिका अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता का प्रदर्शन किया। नाटक में मुख्य भूमिकाएं निभाने वाले सभी कलाकारों ने भी अपने-अपने चरित्रों का यथा योग्य निर्वहन किया। इनमें मुख्य तौर पर प्रौढ़ धर्मा और युवा धर्मा, अशोक, दाई, पटरानी, विशाला, ललिता, खलातक, चारू, राजुला, दिव्यवर्ष जैसी भूमिकाओं वाले कलाकारों ने अपने अभिनय से प्रभावित भी किया। आपको बता दें कि भारती जी ने इस उपन्यास को मंच पर लाने के लिये करीब एक साल तक तैयारी की, उसके बाद यह नाटक दर्शकों के समक्ष पहुँच सका।गहरे रंगों में दबी कलाकारों की भावाभिव्यक्ति: नाटक की प्रकाश योजना में चटख़ लाल और पीले रंग का उपयोग किया गया। इससे केसरिया रंग का आभास भी हुआ लेकिन कहीं-कहीं ये इतने गहरे और गाढ़े हो गये थे कि कई दृश्यों में कलाकारों की सूक्ष्म भावाभिव्यक्ति इस रंग-आभा में दब सी गई। ज़ाहिर कि प्रकाश योजना पर नये तरीके से काम करने की ज़रूरत महसूस हुई। नाटक का संगीत जिज्ञासा जगाने वाला था, कथित मौर्य युगीन संगीत में अगर एक या दो गीत शामिल होते तो नाटक और भी रसपूर्ण और राहत देने वाला बन सकता था।नाटक की अवधि पर करना होगा विचार: बड़े कैनवास वाले नाटक में घटनाक्रमों के आपसी जुड़ाव को समझते हुए उनका निर्ममता से संपादन बहुत मुश्किल होता है। इसी वजह से ऐतिहासिक नाटक कई बार ज़्यादा अवधि के हो जाते हैं। यह नाटक भी दो घंटे से अधिक की अवधि का था। वह भी बिना ब्रेक के मंचित किया गया। बड़ी अवधि यकीनन दर्शकों को घड़ी देखने पर मजबूर करती है। हालांकि कुछ ऐसे दर्शक भी थे जो उपन्यास पढ़ चुके थे और वे नाट्य रूपातंरण को देखते हुए अगले दृश्य की उत्सुकता से बँधे रहे। नाटक को कुल 19 दृश्यों में बाँधा गया है। यदि दोहराव वाले संवादों और कुछ ग़ैर ज़रूरी दृश्यों को हटा दिया जाये तो यह नाटक और भी कसा हुआ बन सकता है।फ्लैश बैकमें जाने से पहले की कड़ी: नाटक को फ्लैश बैक में ले जाने के लिये भी कुछ काम की ज़रूरत लगती है। फ्लैश बैक में नाटक के जाने का दर्शकों को एकदम से आभास नहीं होता है। उन्हें कुछ देर बात समझ में आता है कि नाटक धर्मा के वर्तमान से उसके अतीत में चला गया है। इस परिवर्तन पर काम करने की ज़रूरत है। यह एक अंतरण गीत से भी संभव हो सकता है। नाटक का यह पहला प्रदर्शन रहा, ज़ाहिर है कि इसके आगामी मंचनों में ऐसे कई ज़रूरी संशोधन या बदलाव दिखाई देंगे। हालांकि इतने बड़े नाटक को मंच पर फिर से प्रस्तुत करना भी आसान नहीं है। नेप्थय में रहकर राजपाठ का संचालन: नाटक सम्राट अशोक को सिंहासन तक पहुँचाने और नेपथ्य में रहकर उसके सत्ता में बने रहने के लिये संघर्षरत, उस मां की कहानी है जो असल में अशोक की माँ ही नहीं है। डॉ.शरद पगारे ने धर्मा नाम के जिस पात्र को बड़ी गहराई से उपन्यास में बड़ी संवेदनशीलता के साथ रूपांकित किया है, यह अद्वितीय है। एक तरह से उन्होंने सम्राट अशोक से जुड़ी और कम सामने आ सकी एतिहासिक सचाई से परदा हटाया है। हम जानते ही हैं कि अशोक के माता-पिता के विवरणों को लेकर इतिहास मौन है अथवा इसको लेकर विभिन्न मत हैं। अल्पज्ञात नारी पात्र का गहराई से चित्रण: शरद जी इतिहास के प्रोफ़ेसर और शोधार्थी रहे, हम देखते हैं उन्होंने अपने उपन्यास में इस अल्पज्ञात नारी पात्र का बेहद गहराई से चित्रण किया है। बेशक ऐसा वे कल्पना मात्र के आधार पर नहीं अपितु तथ्यों की पड़ताल के साथ ही कर सके। नाटक में दिखाया गया है कि असल में नेपथ्य में रहकर सम्राट अशोक की माँ ‘धर्मा’ राजपाठ चलाती है, उसे षडयंत्रों बचाती है। उसे सिंहासन तक पहुँचाती है। कमोवेश यहां यह कहना भी आवश्यक होगा कि शरद जी ने ‘गुलारा बेगम’, ‘बेगम जैनाबादी’ जैसे अपने ऐतिहासिक उपन्यासों में ऐसे ही पात्रों की खोज की है। यहीं पर जाकर इस महान् उपन्यासकार के संघर्ष से भरे शोध, निरंतर लेखन और विलक्षण प्रतिभा का भी पता भी चलता है। यह बात आने वाले वर्षों तक उन्हें साहित्य जगत में विशिष्ट बनाये रखेगी। श्रद्धांजलि स्वरूप नाटक का मंचन: नाटक के मंचन से पहले साहित्यकार डॉ.पगारे को याद किया गया। भारती जी ने कहा कि यह नाटक उनकी स्मृति में श्रद्धांजलि स्वरूप मंचित किया गया। नाटक को देखने के लिये शरद जी के परिजन इंदौर से दिल्ली आये थे। इनमें ख़ासकर उनकी धर्म पत्नी श्रीमती सुमन पगारे, डॉ. नीलिमा पगारे, श्रीमती अंजली खेड़े और सुपुत्र प्रो.सुशीम पगारे शामिल रहे। आरंभ में श्रीमती सुमन ने कहा कि ‘मैं शरद जी के लेखन की पहली पाठक थी, मेरे पढ़ने के बाद ही उनके लिखी किताबें, प्रेस में छपने के लिये जाया करती थीं’।मानता हूं कि पिताजी मौजूद हैं यहीं कहीं: प्रो.सुशीम पगारे ने कहा, उनके पिता नाटक को देखने के लिये खुद आना चाहते थे लेकिन वे नहीं आ सके। परंतु हम मानकर चलते हैं, कि वे श्रीराम सेंटर के इस सभागार में हमारे बीच ही कहीं मौजूद हैं। उन्होंने शरद जी के खंडवा से लेकर व्यास सम्मान दिये जाने तक के सफर को संक्षेप में बताया। यह भी कहा कि किस तरह उनके उपन्यासों को पढ़कर देश-विदेश से लोगों के फोन आते थे। पिता को याद करते भावुक सुशीम की आँखें भी भर आईं। आपको बता दें कि सुशीम देश के ख्यात खेल विशेषज्ञ और कमेंटेटर भी हैं। नाटक के मंचन के बाद ‘क्षितित’ की कलाकार टीम का दर्शकों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। मंच पर इन कलाकारों ने किया काम: नाटक में निर्देशक भारती शर्मा के साथ ही मेहुल कृष्णानी, ईशाना शुक्ला, तनीषा तिवारी, शिवम चौकसे, मोनिशा गोस्वामी, प्रियांशी माथुर, शाहबाज हुसैन, नूर चावला, सनी सिंह, लक्ष्य बंसल, सागर पंवार, वैभव त्रिपाठी, राजा पांडे, सार्थक बिष्ट, मोहन पटेल, कमल सिंह, निशांत केन, आशीष शर्मा, लक्षिता भारद्वाज, आर्यंक पाठक, शालिनी, सी. काव्य सजीव, अभिषेक भारद्वाज, हर्ष बंसल, अखिल पांडे और हर्ष यादव ने अभिनय किया।नेपथ्य में अहम भूमिका निभाने वाले कलाकार: निर्देशन में सहयोग – वैभव त्रिपाठी, शिवम चौकसे, मेहुल कृष्णानी और इशन्ना शुक्ला का रहा। प्रकाश योजना- हिमांशु बी जोशी, संगीत संचालन- देव बडाला का रहा। जबकि संगीत- राजा पांडे, श्वेतांक दीपक और मंच सज्जा – अब्दुल हकीम, सनी सिंह, निशांत केन, वैभव त्रिपाठी, मेहुल कृष्णानी, शाहबाज हुसैन ने की।  प्रॉपर्टी – सनी सिंह, हर्ष बंसल और  वेशभूषा – लक्षिता भारद्वाज, ईशाना शुक्ला, कमल सिंह, मोहन पटेल की रही। प्रचार-प्रसार और प्रिटिंग की कमान – शाहबाज़ हुसैन, दिव्यांशु कुमार, राजा पांडे और नूर चावला ने संभाली।(नीचे की तस्वीर में नाटक के मंचन के बाद भारती जी के साथ बाएं से ख्याति प्राप्त चित्रकार सिरज सक्सेना, लेखक स्व. डॉ.शरद पगारे के सुपुत्र प्रो.सुशीम पगारे और इस समीक्षक शकील अख़्तर (दाएं))(Creative writer, journalist and art critic Shakeel Akhtar is the founder-editor of Indore Studio. He has been writing on art and artists for the last 35 years. His creative world is also wide. He has written 7 plays. His shows have been held at the National School of Drama, Delhi, and other cities. ‘Mumbai Mirror’ has published his poetry collection ‘Dil Hi Toh Hai’, inspired by Dr Rahat Indori. His books are available on https://www.anootha.com  and Amazon. Many of his songs have been composed. Also, he has been associated with theatre, acting and AIR. He has acted in some short films, documentaries and films. Additionally, Shakeel Akhtar, who has served in various positions in five newspapers, has also been a senior editor of India TV. Affiliated to State Press Club, Madhya Pradesh, Shakeel Akhtar has been on the preview committee and jury of the International Film Festival of India, Bangalore International Film Festival and Jagran Film Festival: mshakeelakhter@gmail.com / indorestudio@gmail.com) आगे पढ़िये – दि प्ले ब्वॉय: एनएसडी, दिल्ली में सौ साल पुराना नाटक https://indorestudio.com/the-play-boy-nsd/

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