बलराज साहनी पर ‘कला वसुधा’ का संग्रहणीय अंक

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पत्रिका – कला वसुधा – बलराज साहनी अंक
प्रधान संपादक – शाखा बंदोपाध्याय
संपादक – ड़ा. उषा बनर्जी
संपर्क – कला वसुधा , सांझी – प्रिया , बी – 8 , डिफेन्स कालोनी , तेलीबाग लखनऊ ।

अख़तर अली। पिछले दिनों पत्रिका कला वसुधा का बलराज साहनी अंक डाक से मिला , शाखा बंदोपाध्याय एवं उषा बनर्जी के संपादन में निकला यह अंक अपने आकार , प्रकार , सजावट ,लिखावट से चौंकाता है । एक अव्यवसायिक पत्रिका , वह भी प्रदर्शनकारी कलाओं पर केन्द्रित पत्रिका अपना पूरा अंक बलराज साहनी जी पर निकालने का साहस करती है और उसे बखूबी अंजाम देती है। पत्रिका के माध्यम से संपादक ने पाठकों तक सम्पन्न साहित्य पहुंचाया है ।बलराज साहनी जी ने रंगमंच , फिल्में और लेखन से समाज को जितना सम्पन्न किया, उसका उन्हें शुक्रिया । ख़राब साहित्य हमारी सोच की एड़ी को ज़ख़्मी कर देता है, इसे ध्यान में रख पत्रिका पाठकों तक पहुचाई गई है। पत्रिका निकालना और उसके लिए श्रेष्ठ रचनाएं तलाशना , ज़िम्मेदार रचनाकारों से लगातार संपर्क स्थापित करना और अपनी पत्रिका के लिये उनसे उनके अन्दर का श्रेष्ठ बाहर निकलवा लेने का चमत्कारिक काम कला वसुधा के बलराज साहनी अंक में देखने मिलता है । साहित्यकारों की भीड़ में ज़िम्मेदार लिखने वालो को तलाशना इसलिये चमत्कारी काम है।

कला वसुधा का बलराज साहनी अंक बलराज साहनी के व्यक्तित्व के अनुरूप निकला है। पत्रिका के एक एक पृष्ठ पर , पत्रिका चाहे जहां से खोल लो , हर पृष्ठ ज़हन में छप जाता है , दिमाग में अंकित हो जाता है। लिखने वालो ने जिसमें ख्वाजा अहमद अब्बास , भीष्म साहनी , अब्दुल बिस्मिल्लाह , सैय्यद सुल्तान अहमद रिज़वी , गौतम सिद्धार्थ , अखतर अली , दिनेश खन्ना , कल्पना साहनी , आलोक शुक्ला सहित लगभग बत्तीस लेखकों की टीम ने कला वसुधा के पृष्ठों पर बलराज साहनी के सम्पूर्ण जीवन को जिस तरह उकेरा , जिस तरह एक महान कलाकार को स्थापित किया है , जिस तरह एक चिन्तक का विश्लेषण किया है वह एक लघु पत्रिका को शोध ग्रन्थ में तब्दील कर देना है । पत्रिका में स्वयं बलराज साहनी के अनेको लेख उपलब्ध है जो इसे संग्रहणीय अंक बनाते है। अच्छे को अच्छे से लिखना ही उसे बहुत अच्छा बनाती है । चिकना कागज़ , स्पष्ट छपाई , त्रुटिहीन भाषा तथा बेहतरीन चित्रो का संकलन कला वसुधा को दिगर पत्रिकाओं से अलग रेखांकित करने का सबब है । जो एक अव्यसायिक पत्रिका निकालने के श्रम से परिचित है वे ही समझ सकते है कि इन पत्रिकाओं के संपादकों के पास किसी प्रकार की पांच सितारा जैसी सुविधा नहीं होती । जब तक संपादक मज़दूर की तरह काम नहीं करता पत्रिका रूपवान नहीं होती। कला एवं साहित्य से जुड़े हर व्यक्ति को कला वसुधा से जुड़ना चाहिये । इन दिनों कला वसुधा के संपादकीय कार्यालय में शाखा बंदोपाध्याय और डाक्टर उषा बैनर्जी पत्रिका के बलराज साहनी अंक दो एवं नौटंकी पर केन्द्रित अंक की तैयारी में दीवानगी की हद से गुज़र जाने के अंदाज़ में जुटे हुए है ।

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