पोएट्री ऑन द स्पॉट ! भोपाल में महिला लेखिकाओं के मंच ‘फेम फ्रायडे’ की शुरूआत, 22 रचनाकारों ने सुनाईं कविताएँ

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भोपाल, अपर्णा जोशी, इंदौर स्टुडियो डॉट.कॉम। भोपाल में महिला रचनाकाओं को एक मंच पर लाने की शुरूआत हो गई है। ‘फेम फ्रायडे’ नाम से एक मंच गठित किया गया है। इस मंच के तहत हाल ही में पहला कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें 15 लेखिकाओं ने हिस्सा लिया। हिंदी और अग्रेंजी में अपनी कविताएं सुनाईं। इस आयोजन में एक कवियित्री के रूप में मुझे भी हिस्सा लेने का मौका मिला। आपको बता रही हूं कैसा रहा ये आयोजन।

फेमा फ्रायडे का पहला इवेंट  ‘बैठक- द आर्ट हाउस गैलरी ‘ में शुक्रवार 24 अगस्त को आयोजित किया गया था । बड़ी बात ये है कि कार्यक्रम में 22 लेखिकाओं हिस्सा लेने में अपनी रूचि दिखाई। युवा रचनाकारों ने आयोजन में ना सिर्फ अपनी कविताएँ सुनाईं बल्कि दिए गए विषय पर ऑन द स्पॉट अपनी रचनाएँ भी लिखीं। वंदना ने लिखा-

मुझे विश्वास है कि तुम उस खोल से बाहर आ जाओगी / बैठी हो जहाँ तुम सिमटकर / तुम्हें उस आतंक से भी मुक्ति मिल जाएगी / पैर कंपकंपाते है जब बाहर निकलकर उस तक पहुँचने में / हाँ तुम इस देह की खोल से जरूर आ जाओगी बाहर / तब तुम्हें जरूरत नहीं होगी चमड़ी पर किसी तरह का लेप लगाने की / तुम उस आतंक पर भी पा लोगी विजय /तब तुम्हें नहीं तौला जाएगा मोटी-पतली,नाटी-लंबी की तराजू में / अँग्रेज़ी के हिज्जों को कैसे बोलती हो या फिर किसी गाँव की या देहात की छोकरी हो / कुछ परखा नहीं जाएगा 

लेखिका ( अपर्णा जोशी ) ने भी अपनी इस रचना का पाठ किया।

कांच के कतरे बीनते-बीनते, हाथ तेरे कट जाएंना / जीवन तेरा निर्झर जैसा, देख कहीं थम जाए ना / धुली हुई जो सुबह है आई, कंचन जीवन निर्मल करने / थाम ले आंचल इस सुबह का, ये आज यूं ही गुम जाए ना / झिलमिल आंखों में जो स्वप्न सजे, करना है साकार उन्हें / रात-दिवस की दौड़ धूप में,कहीं ये धूमिल हो जाएं ना / है कुछ आशाएँ तुझसे भी, कोई राह भी तेरी देखे है / उन आशाओं और राहों में,कोई आस दबी रह जाए ना

‘फेम फ्रायडे’ मंच की कल्पना शहर की दो युवा लेखिकाओं ऐश्वर्या और लावण्या ने किया है। वे कहती हैं -‘हम युवा लेखिकाओं को एक ऐसा मंच देना चाहते हैं, जहाँ ना सिर्फ अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर सकें बल्कि अभिव्यक्ति के बारे में अपनी समझ को बढ़ा सकें। उसे सशक्त बना सकें। यही वजह है कि हम जल्द ही लेखन कार्यशालाओं का भी आयोजन करने जा रहे हैं। कार्यक्रम में दोनों लेखिकाओं ने अग्रेंजी में अपनी रचनाएँ भी सुनाईं।

Aishwarya writes – You ask me why I smile to myself / Sometimes after I read a complete sentence / Because I am used to success in parts / And I fear that now I can’t remember fear / I am learning not to take a compliment as an offence / To quieted the laughter of my classmates and embrace the kind words I hear

Lavanya recites – Abhi aazad hone me wakt Baaki hai  /  I have a dream, nelson Mandela said / I have a dream, I say  / Of a time when women don’t have to say / I know how you feel / I’ve been through that too / Solidarity doesn’t have to rise from pain

इस आयोजन में जिन 22 महिला लेखिकाओं ने अपनी रुचि दिखाई। उन सबको भी याद करना ज़रूरी हैं, ये हैं-स्वपनिका कुमार,असमी सक्सेना, सौम्या जैन,श्रुति दुबे,अनुरिमा भाटी,आयुषी पाराशर,तेजस्वी जैन,अनुशा मोखरिवाले,वंदना दवे,हिमांशी अयलानी,निकिता ठाकुर,दीक्षा श्रीवास्तव,तुहिना वार्षने,प्रियंका राठौर,खुशबू सदानी,अपर्णा जोशी,शीरीन अनूप,महिमा शर्मा,शिखा विश्वकर्मा और अदिति मित्तल।

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