शकील अख़्तर, इंदौर स्टूडियो। ‘अब भी यक़ीन नहीं होता कि मेरे पति, स्वर्गीय प्रभु जोशी के अंतिम संस्कार में चार लोग भी शामिल नहीं थे। श्मशान जाकर उनका अंतिम संस्कार मुझे और मेरे बेटे पुनर्वसु को ही करना पड़ा’। यह बात प्रभु जोशी की पत्नी और आकाशवाणी इंदौर की सेवानिवृत एनाउंसर अनिता जोशी ने भारी मन से कही। अनिता जी अपने बेटे पुर्नवसु के साथ दिल्ली में आयोजित इंडिया आर्ट फेस्टिवल 2023 में प्रभु जोशी की पेटिंग्स को प्रदर्शित करने आईं थीं। इस दौरान उनसे प्रभु दा से जुड़ी बातें होने लगी। पढ़िये यह संस्मरण, स्व.प्रभु जोशी की कुछ यादगार तस्वीरों के साथ। (स्मृति चित्र: प्रभु जोशी के साथ अनिता जी की यादगार तस्वीर। मुंबई में ली गई यह तस्वीर 6 मार्च 2020 की है। इस दिन अनिता जी का जन्मदिन था। जन्मदिन पर प्रभु जी ने यह गुलदस्ता भेंट किया था। इसके बाद आप दोनों ने कांदिवली के एक क्लब में डिनर लिया था।) तब रिश्ते-नाते टूट चुके थे: बेहद अफ़सोस और ग़म में डूबी अनिता जोशी ने कहा – ‘सबकुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि हमें संभलने का मौका तक नहीं मिल सका। कोरोना महामारी की त्रासदी का वो ऐसा वक्त भी था जब सारे रिश्ते-नाते टूट चुके थे। कोई किसी का नहीं था। ना अपना, ना पराया। किसी की मदद तो क्या, कोई किसी का हाल पूछने से भी बच रहा था। हम अकेले ही, उस काले वक्त से लड़ रहे थे’। यह कहते हुए अनिता जी चाहकर भी अपने आंसू नहीं रोक सकीं।याद दिला दें कि प्रख्यात चित्रकार और साहित्यकार प्रभु जोशी का कोरोना महामारी की दूसरी लहर में, 4 मई 2021 को निधन हो गया था। (स्मृति चित्र: प्रभु जोशी की पुरस्कृत पेटिंग ‘चालइल्ड मोनालिसा’ और उसके सामने अनिता जी।)
उस दिन पुनर्वसु को फीवर था: प्रभु जी की अंतिम यात्रा को याद कर वे बताने लगीं- ‘उस वक्त मैं और पुनर्वसु भी कोरोना से पीड़ित थे। बेटे पुनर्वसु को 102 फीवर था। प्रभु जी के पार्थिव शरीर को पुनर्वसु ने बड़ी मुश्किल से अकेले ही वाहन में खींचते और गिरते हुए रखा। वाहन में किसी का बैठना मना था। शव वाहन के ड्राइवर ने बेटे से कहा, अगर श्मशान घाट चलना है तो आपको अलग से आना होगा। तब पुनर्वसु ने अपना स्कूटर निकाला। उसे अकेला जाते देख मैंने रोका और कहा, मैं भी अंतिम संस्कार के लिये चलूँगी। पुनर्वसु ने कहा, ‘माँ वहां पर महिलाएं नहीं जातीं’। मैंने कहा, इन रिवाजों का आज मेरे लिये कोई अर्थ नहीं और मैं उसके साथ स्कूटर पर बैठ गई’। (स्मृति चित्र: मुंबई के नेहरू आर्ट सेंटर में प्रभु जोशी की चित्रकला प्रदर्शनी में मां और पिता के साथ पुनर्वसु जोशी। फरवरी 2020 में यह प्रदर्शनी लगाई गई थी। प्रभु जोशी की यह आख़िरी चित्रकला प्रदर्शनी भी थी। यह इस लेखक ने ही खींचा था।)
एक ही परिवार के 7 लोगों के शव: शोकाकुल अनिता जोशी ने बताया – ‘मेघदूत इंदौर के उस श्मशान घाट पर एक ही परिवार के सात लोगों के शव जल रहे थे। सभी कोरोना का शिकार हुए थे। उनके परिवार में केवल दो बच्चियां ही ज़िंदा बचीं थीं, 5 और 7 साल की। ऐसे में कौन अस्थियां लेने आता’? डोम ने कहा – ‘यहां पर शवों को जलाने के लिये जगह भी कम पड़ रही है। लोग अस्थियों को लेने तक नहीं आ रहे’। वहां पर एक जगह अस्थियों का पहाड़ खड़ा था। देर शाम को प्रभु दा का अंतिम संस्कार हुआ। मैंने वो सब देखा। हम रोते-रोते सब करने को मजबूर थे’। (स्मृति चित्र: रविन्द्र नाथ टैगोर की पेटिंग के साथ प्रभु दा की आदम क़द तस्वीर।)
तब इंसानी संवेदनाएं मर चुकी थी: अनिता जी ने कहा, ‘वह ऐसा समय भी था जब इंसानी संवेदनाएं मर चुकी थीं। सबको अपनी फिक्र थी। कोई किसी की मदद को तैयार ना था। हम वसंत विहार में गुलमोहर निकेतन नाम की जिस सोसाइटी में लोगों के सुख-दु:ख में भागे चले जाते थे। वहां पर कोई अपने फ्लैट से निकलने को तैयार न था। जब श्मशान से हम सोसाइटी के गेट पर पहुँचे, तब हमें गार्ड से विनती करना पड़ा – भैया कम से कम हमारे पैरों पर पानी तो डाल दो। हमारी विनती करने पर गार्ड का दिल पसीजा और उसने पानी डाल दिया’। (स्मृति चित्र: जहांगीर आर्ट गैलरी, मुंबई में प्रभु जोशी की चित्रकला प्रदर्शनी के दौरान गुलज़ार के साथ अनिता जोशी। प्रभु जी ने गुलज़ार साहब का भी पोट्रेट बनाया था।)
बीस घंटे बाद पुनर्वसु की नींद खुली : ‘हम दोनों अपने फ्लैट में पहुँचे। दोनों गहरे सदमे में थे। स्नान के बाद मैंने चाय बनाई और फिर हमने ज़रूरी दवाएं ली। पुनर्वसु ने कहा, मां मैं अब बहुत थक चुका हूँ, मैं सोने जा रहा हूँ। अब चाहे कुछ भी हो, मुझे मत जगाना। वह अपने रूम में सोने चला गया। अगले दिन की शाम तक उसके कमरे का दरवाज़ा नहीं खुला। तब तक 20 घंटे से ज़्यादा गुज़र चुके थे। इतने लंबे वक्त तक मैं अकेले ही अपने बेटे की चिंता में रही। खुद भी सुध-बुध खोती रही। पुनर्वसु का बेसुध होकर सोना ज़रूरी भी था। फीवर के बावजूद वह आख़िरी पल तक पिता की सेवा कर रहा था। यह सब करते हुए उसकी हालत बिगड़ चुकी थी’। (स्मृति चित्र: शैल चित्रों के लिये प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के भीम बेटका में प्रभु जोशी।)
प्रभु जोशी के वो आख़िरी लम्हे: अनिता जोशी ने कहा – ‘प्रभु जी अगर अस्पताल चले जाते तो शायद वो हमारे बीच होते। मगर वे अस्पताल में भर्ती होना नहीं चाहते थे। उन्हें पहले मेदांता और बाद में राजश्री अपोलो अस्पताल भी ले गये थे लेकिन वे किसी हाल में अस्पताल में भर्ती होने को राज़ी नहीं थे। इसकी वजह थी उनकी आँखों के सामने दम तोड़ते लोग या उस वक्त के दहशत भरे हालात। इसीलिये उनके लिये घर पर ही ऑक्सीजन सिलेंडर और इलाज का इंतज़ाम किया गया था। इन कामों में हमें आदरणीय श्रवण गर्ग जी और कीर्ति राणा के साथ ही डॉक्टर अपूर्व पौराणिक और श्रीमती नीरजा पौराणिक की भी मदद मिली। उन्होंने अस्पतालों में प्रभुजी के लिये बात की थी। (दिल्ली के ‘इंडिया आर्ट फेस्टिवल 2023’ में पुनर्वसु जोशी के साथ लेखक शकील अख़्तर। पार्श्व में दिखाई दे रही हैं फेस्टिवल में प्रदर्शित स्व. प्रभु जोशी की कुछ कृतियां।)
जब प्रभु जी की हालत बिगड़ने लगी: जब प्रभु जी की हालत बिगड़ी और ऑक्सीजन ख़त्म होने लगा। तब पुनर्वसु ने कहा, पापा अब हमें अस्पताल जाना ही होगा। हालांकि वो तब भी जाने को तैयार नहीं थे। मैंने जाने से पहले उन्हें नारियल पानी पीने को दिया। उन्होंने बमुश्किल वो पी लिया। वही उनका आख़िरी भोजन था। इस बीच कीर्ति राणा की मदद से एम्बुलेंस सुसाइटी में आकर खड़ी हो गई। पुनर्वसु उन्हें चेयर पर बिठाकर लिफ्ट से एम्बुलेंस तक पहुँचा। बस उतने ही वक्त ऑक्सिजन हटा। उन्हें एम्बुलेंस में लिटाकर साईंनाथ हॉस्पिटल ले जाने की तैयारी होने लगी। फिर से ऑक्सीजन लगा दिया गया लेकिन वह उनके आख़िरी लम्हे थे। उन्होंने पुनर्वसु से कहा, बेटा मैं थकने लगा हूँ। अब नहीं बचूँगा। बचूँगा के आख़िरी अक्षर ‘गा’ तक आते-आते उनकी आँखें पुनर्वसु पर इस पीड़ा के साथ स्थिर हो गईं कि अब इसे मैं कभी देख नहीं सकूँगा। इसके साथ ही उनकी सांस चली गई।…बावजूद इसके पुर्नवसु उन्हें हॉस्पिटल लेकर पहुँचा। जहां डॉक्टर ने कहा, इनकी 20 मिनट पहले ही डेथ हो चुकी है।…यानी आख़िरी समय तक प्रभु अस्पताल में भर्ती नहीं हो सके। तब वो कहने लगे थे, मरना है तो अस्पताल की जगह घर पर ही रहते हुए चले जाना अच्छा होगा’।
पिता के जाने के बाद मां का क्या होगा: ‘डॉक्टर की तस्दीक के बाद पुनर्वसु एम्बुलेंस को लेकर घर लौटा। घर आकर उसने इलेक्ट्रॉल पावडर का पानी मांगा। मुझे भी कहने लगा, मम्मी आप भी पी लो। पानी पीने के बाद पुनर्वसु ने कहा, मां ज़रा नीचे चलो। आपको पापा बुला रहे हैं। मैं उसकी इस बात पर हैरान रह गई। मैंने सवाल किया। बेटा अभी तो तू अस्पताल में उन्हें एडमिट कराने ले गया था। फिर उन्हें वापस कैसे ले आया ! .. मैंने नीचे जाकर देखा।… देखा कि अब प्रभु जी कभी भी घर लौटकर नहीं आयेंगे’। (स्मृति चित्र: मुंबई के ताज पैलेस में प्रभु जोशी की एकल प्रदर्शनी के दौरान चित्रकार सफ़दर शामी। प्रभु दा इसी तरह प्रतिभाओं के साथ खड़े रहे, जो भी हो सका, खुले दिल से वह सबके लिये किया ।)
सभी के लिये फिक्र में थे प्रभु जोशी: अनीता जी ने बताया, ‘जब तक उन्हें कोरोना नहीं हुआ था, वो अपने हर परिचित का हाल-चाल ले रहे थे। बीमारों की मदद के लिये जो हो सकता था, उसके बारे में बता रहे थे। उन्हीं दिनों उनके बड़े भाई को भी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। भाई की जब हालत बिगड़ी वे उन्हें देखने हॉस्पिटल गये थे। परंतु कोरोना की वजह से वे भी बच नहीं सके। उनके पूरे परिवार में सभी को कोरोना हुआ था। भाई के निधन और उनके परिजनों से मिलकर आने के अगले दिन से ही हम सभी में कोरोना के लक्षण नज़र आने लगे। मुझे सबसे पहले फीवर आया। फिर हम तीनों ही कोरोना की चपेट आ गये। देखते-देखते प्रभु की हालत बिगड़ी और हमने अपने जीवन का आधार खो दिया। यह सब इतना अचानक हुआ कि हम आज तक संभल नहीं सके। जाने से पहले तक वे अपने रचनात्मक लेखन और पेटिंग के अधूरे कामों में जुटे थे’। (स्मृति चित्र: अपने स्टूडियो में काम करते हुए विलक्षण सृजनधर्मी प्रभु जोशी। प्रभु दा एक चित्रकार ही नहीं विद्वान लेखक और विचारक भी थे। 5 उपन्यासों समेत उनके लेखन के बहुत से काम अधूरे रह गये हैं।)
अपनों ने हमसे नाता तोड़ लिया था: पुनर्वसु ने कहा, ‘वह एक ऐसा समय था, कि तब हमारे अपनों ने हमसे नाता तोड़ लिया था। कई तो फोन उठाने या मैसेज का जवाब देने से भी बच रहे थे। ना मां के परिजन आये, ना पापा के रिश्ते काम आये। मुझे आज कोई शिकायत नहीं। मगर उस वक्त अपनों की ज़रूरत थी। और कुछ नहीं तो फोन पर भी हाल- चाल पूछा जा सकता था। धीरज बंधाया जा सकता था। मगर अफ़सोस कि बहुत से करीबियों ने ऐसा भी नहीं किया। जो साथ दे रहे थे या हाल चाल पूछे रहे थे उनमें पापा के लेखक, पत्रकार, रचनाकार या कलाकार बिरदरी के दोस्त ही ज़्यादा थे। अगर हम उन्हें जवाब नहीं भी दे रहे थे, तब भी उनके संदेश आ रहे थे…कि जब भी ठीक समझो हाल-चाल बता देना, बात कर लेना। किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बता देना’। (स्मृति चित्र: भीम बेटका के वन में पगडंडी पर चलते प्रभु दा और उनके आगे पुनर्वसु।)
महामारी ने किया बहुतों का अनर्थ: पुनर्वसु ने कहा, ‘आज मैं और मां किसी तरह संभलकर चलने की कोशिश कर रहे हैं। हालात बदल गये हैं, मगर हम अंदर से अब तक गहरे आघात में हैं। उस वक्त हम जैसे ना जाने कितने लोगों को इस भीषण त्रासदी का सामना करना पड़ा। सोचता हूँ ऐसी विकट स्थितियों से निपटने के लिये देश और दुनिया की सरकारों को मिलकर लगातार काम करते रहना चाहिये। इसी तरह हमें हमारे समाज और लोगों को भी प्रशिक्षित करने की ज़रूरत है ताकि ऐसे हालात में लोग एक-दूसरे की मदद कर सकें। ना कि संवेदनहीन होकर पीड़ितों को उनके हाल पर ही छोड़ दें’। (स्मृति चित्र: मुंबई में समंदर के किनारे प्रभु जी के साथ श्रीमती अनिता जोशी।)
अस्पतालों में पूरी व्यवस्थाएं होना चाहिये: अनिता जोशी ने कहा- ‘इमरजेंसी के हालात में देश के अस्पतालों में पूरी व्यवस्थाएं होनी चाहिये। प्राइवेट अस्पतालों के बेइंतेहा महंगे इलाज का भी कोई हल होना चाहिये। कोई अगर खर्च ना उठा पाये तो उसके पास मरने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं। समाज में संवेदनाएं भी ख़त्म नहीं होना चाहिये। अगर कोरोना जैसे हालात में इंसान ही इंसान के काम ना आये तो इंसानियत ही शर्मसार होगी। हालांकि ऐसे वक्त में बहुत से संगठनों और लोगों ने बढ़-चढ़कर मदद की। बहुतों की जान बचाई। भोजन-दवाएं, रहने की जगह देकर बड़ा उपकार किया’। (इंडिया आर्ट फेस्टिवल के निदेशक राजेंद्र पाटिल के साथ पुनर्वसु जोशी।)
साइंस की दुनिया से अब कला की यात्रा: पुर्नवसु ने बताया, ‘मैं 15 साल तक अमेरिका में बतौर साइंटिस्ट काम करता रहा। मगर कोरोना महामारी के इस हादसे के बाद मैं पिता की विरासत को संभालने और उनकी कला को देश भर में पहुँचाने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे ख़ुशी है कि विशेष रूप से लोग उनके वॉटर कलर (जलरंग) से जुड़े काम को पसंद करते हैं। उनके इस कठिन काम की गहराई को समझते हैं। उन्होंने हर माध्यम में, हर तरह का काम किया। मगर जलरंग में उनका किया गया काम विशिष्ट है। वे एक जीनियस पेंटर थे। उनके काम बेशक़ीमती हैं ‘।
बेहद प्रतिभाशाली व्यक्तित्व रहे पापा: पुनर्वसु ने कहा, मुझे गर्व है कि मेरे पिता एक बहुत अच्छे लेखक, कहानीकार के साथ ही आकाशवाणी, दूरदर्शन के बेहद काबिल अधिकारी रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल में बेहद नये और अलग तरह के कार्यक्रमों को रचा। कई प्रतिमान रचे। वे विरले और बेहद प्रतिभाशाली व्यक्तित्व थे। दिल्ली के इंडिया आर्ट फेस्टिवल में पापा की पेटिंग्स का पहली बार काम प्रदर्शित हुआ। इसे यहां लोगों ने काफी पसंद किया है। हम अब बैंगलुरू में उनके काम को प्रदर्शित करने जा रहे हैं। मैं इन दिनों मां के साथ मुंबई में रहता हूँ। खुद भी पेटिंग से जुड़ी बहुत सी बातों को सीखने की कोशिश कर रहा हूँ। साथ ही अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन जैसे संस्थानों के लिये अंग्रेज़ी-हिन्दी अनुवाद की पेशेवर सेवाएं दे रहा हूं’। आगे देखिये। प्रभु जोशी का आख़िरी इंटरव्यू –