कला प्रतिनिधि, इंदौर स्टूडियो। ‘स्व. कुमार गंधर्व जी के जन्मशती वर्ष में उनकी विशेषताओं को बताने वाली 3 नई पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। इन पुस्तकों की विशेषता यह है कि आप QR कोड स्कैन कर कुमार जी के गायन से जुड़ी कोई भी बंदिश या भजन को सुन सकते हैं। नई पीढ़ी के विद्यार्थियों और शास्त्रीय संगीत में रुचि रखने वाले संगीत रसिकों के लिये यह एक नया अनुभव होगा’। वरिष्ठ गायिका सुश्री कलापिनी कोमकली ने यह बात स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘रूबरू’ में कही। कार्यक्रम में विदूषी गायिका का स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश और अभिनव कला समाज की ओर से आत्मीय सम्मान भी किया गया। जन्मशती के देश भर में आयोजन: कलापिनी जी ने बताया कि वे अपने पिता और गुरु पंडित कुमार गंधर्व जी के जन्मशती समारोह से जुड़े आयोजनों को वो पूरे देश में कर रही हैं। इस प्रसंग के लिये वे कई वर्षों से योजना बना रही थीं। उन्होंने कहा – ‘आयोजनों में कुमारजी के शिष्यों के साथ ही सभी घरानों के श्रेष्ठ गायकों को जोड़ा गया है। कुमार जी कहते थे कि हमें सभी घरानों की अच्छी बातों को आत्मसात करना चाहिए। हाल ही में कलापिनी जी को संगीत नाटक अकादमी द्वारा राष्ट्रपति अवार्ड से नवाज़ा गया है। पुरस्कार को लेकर अअपनी प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा – ‘पुरुस्कार को पाने के साथ, मेरी ज़िम्मेदारियां भी बढ़ गई हैं’।
कुमार जी गढ़ते थे कलाकार: वरिष्ठ गायिका ने कहा, कुमार जी शिष्य तैयार वाली फैक्ट्री नहीं थे बल्कि वे कलाकार को गढ़ते थे, उन्हें कला से प्रेम करना सिखाते थे। उन्हें विद्रोही कलाकार भी कहा जाता था लेकिन उन्होंने संगीत के मूल स्वरूप से उन्होंने कभी छेड़छाड़ नहीं की। उसी सरगम, आरोह-अवरोह के बावजूद अपनी सोच और उपज की वजह से कुमार जी का गायन सबसे अलग नज़र आता है। वे रागों को आत्मसात कर चुके थे। यही वजह है कि सौवें साल में भी संगीत जगत् में वे छाये हुए हैं और उन्हें उतनी ही दिलचस्पी से सुना जा रहा है।
मेरे लिये गाना आसान नहीं था: कलापिनी जी ने अपने पिता को एक सख्त गुरू बताया। उन्होंने कहा, मेरे लिये गाना आसान नहीं था। कुमारजी की बेटी होने की वजह से सुनने वालों की अपेक्षाएं बहुत ज़्यादा थीं। ऐसे में गुरू पिता बड़ी सख्ती बरतते थे। ज़ाहिर है मुझे बेहतर गायन के लिये कड़ी मशक्कत करना पड़ा। उन्होंने कुमार जी के इंदौर प्रेम से जुड़े संस्मरण भी सुनाए। कलापिनी जी ने कहा, संक्रामक रोग के मुश्किल दिनों कुमार जी कबीर से गहरे जुड़ गए थे। एक बार उन्होंने एक छोटी सी चिड़िया को लगातार चहचहाते देखा। इसकी वजह से उनकी नींद खराब हो रही थी। मगर तभी उनके मन में विचार आया कि जब इतनी छोटी चिड़िया के फेफड़ों में इतनी जान है तो फिर तो फिर मैं तो एक इंसान हूं। इसी प्रेरक जिजीविषा से उन्हें एक नया बल मिला।
कलापिनी जी का आत्मीय सम्मान: कार्यक्रम में सुश्री कलापिनी जी का स्टेट प्रेस क्लब, मप्र और अभिनव कला समाज की ओर से सम्मान किया गया। इनमें अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल, वरिष्ठ तबलानवाज़ पं.दीपक गरुड़, गायक पं.सुनील मसूरकर, अभिषेक गावड़े, सत्यकाम शास्त्री, सुश्री पूर्वी निमगांवकर, सुदेश गुप्ता, राजेंद्र कोपरगांवकर, पंकज क्षीरसागर, जयवंत शिंदे, रुखसाना मिर्ज़ा, अभिनेता रवि महाशब्दे, संदेश व्यास, सुश्री सिया व्यास, आकाशवाणी इंदौर के संतोष अग्निहोत्री, वरिष्ठ छायाकार तनवीर फारूकी एवं समाजसेवी अनिल त्रिवेदी जी शामिल रहे। कार्यक्रम का संचालन बहुविध संस्कृतिकर्मी एवं पत्रकार आलोक बाजपेयी ने किया। अंत में सुश्री कोमकली को स्मृति चिन्ह प्रवीण कुमार खारीवाल और देवास के वरिष्ठ पत्रकार मोहन वर्मा ने प्रदान किया। क्लब की ओर से प्रकाशनों की प्रतियां श्रीमती मीना राणा शाह, जयश्री पिंगले और रुखसाना मिर्ज़ा ने भेंट की। आगे पढ़िये –
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