नाट्य समीक्षा: अख़्तर अली
नाटक –कोमल गांधार । लेखक – स्व.शंकर शेष । निर्देशक- जलील रिज़वी । प्रस्तुति- अग्रगामी नाट्य संस्था , रायपुर
गांधारी के आंसू और नूतन के पसीने से भीगी यह नाट्य प्रस्तुति चमकीली भाषा और विस्फोटक अभिनय का मीना बाज़ार थी। नूतन रिज़वी वह काव्य संग्रह है जिसके रचियता जलील रिज़वी है। जब 75 वर्षीय रिज़वी दम्पत्ति मंच पर अभिनय कर रहे हों तो उस नाटक को उत्सुकता पूर्वक नहीं श्रद्धा पूर्वक देखा जाता है। अग्रगामी ने शंकर शेष के चर्चित नाटक कोमल गांधार का मंचन मुक्ताकाशी मंच पर किया । मंचन के लिए यह तिथी तय करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योकि यह दिन नाटक के लेखक शंकर शेष का जन्मदिन की पूर्व संध्या है , एक निर्देशक अपने लेखक को इससे बड़ा और क्या तोहफ़ा दे सकता है कि उसकी जन्मतिथी पर उसका लिखा नाटक मंचित किया जाये।
शंकर शेष, रिज़वी के प्रिय नाटककार
शंकर शेष जलील रिज़वी के प्रिय नाटककार है । ‘कोमल गांधार’ जलील भाई ने पहले भी विभिन्न अवसरों पर किया है ,शंकर शेष की लेखनी से यह संस्था गहरे तक प्रभावित है , जबकि शंकर शेष की भाषा मंच की भाषा नहीं है , उपन्यास की भाषा में उन्होंने नाटक लिखे है , पूरे संवाद लेखक ने अपनी भाषा में लिखे है जबकि नाटक पात्रों की भाषा में लिखा जाता है । इनके नाटकों में शब्द बहुत अधिक होते है , अभिनेता को शेष रत्ती भर भी विश्राम नहीं देते , मंच पर अभिनेता को थका डालते है , लेखन की तकनीक के आधार पर यह उचित नहीं है लेकिन संवादों में गज़ब की शालीनता , सभ्यता , रोचकता , प्रभावशीलता , सम्मोहकता , उत्तेजकता , विस्फोटकता समाहित है जो किसी भी रंगकर्मी को अपनी गिरफ्त में लेने के लिया पर्याप्त है , यह भी लेखन का एक अंदाज़ है , सही वही नहीं होता जो हम सोचते है , हमारी सोच के विपरीत भी सफलताये लहराई है । शंकर शेष ने साहित्य का दरिया धारे के विपरीत तैरकर पार किया है।
गांधारी की नहीं धृतराष्ट्र की कहानी
कोमल गांधार महाभारत की महत्वपूर्ण किरदार गांधारी की कहानी नहीं है , जबकि नाटक के केंद्र में गांधारी ही है | कोमल गांधार धृतराष्ट्र की कहानी नहीं है जबकि धृतराष्ट्र इस नाटक का एक प्रमुख पात्र है | यह महिला की पीड़ा है जो गांधारी की आड़ में ज़ाहिर की गई है , यह पुरुष की निरंकुशता है जो धृतराष्ट्र के रूप में दर्शाई गई है | कथ्य में लेखक ने मौजूदा समाज के सामाजिक और राजनैतिक स्वरूप को उधेडा है , यह अपूर्ण समाज की सम्पूर्ण समीक्षा है , यह विचार की कलात्मक अभिव्यक्ति है , यह ज़रा भी कोमल नहीं बल्कि कठोर नाटक है | कोमल गांधार में नारी का मन , पुरुष का तन , पुरुष के अधिकार और नारी की आग का चित्रण है , न देख सकने और न देखने की विवेचना है , न समझा पाना और न समझने की ज़िद का फ़लसफ़ा है , थोपने और रचने का मनोविज्ञान है , साफ़ शीशे सा चमकता यह नाटक मंच पर अभिनय की कारीगरी के लिये भी याद किया जाएगा | भीष्म , शकुनी , दुर्योधन, संजय जैसे महत्वपूर्ण पात्रो को गढ़ना , उनकी पोशाक और ज्वेलरी पर ध्यान केन्द्रित करना मंच पर उनके चरित्र को गढ़ना इसलिए ज़्यादा प्रभावित करता है क्योकि निर्देशक भी स्वयं अभिनेता होकर मंच पर धृतराष्ट्र की भूमिका में मौजूद है |
मंचन से साबित होता है नाटक
नाटक की उत्कृष्टता उसके लेखन से ज़्यादा उसके मंचन से साबित होती है । आलोच्य प्रस्तुति में निर्देशक जलील रिज़वी ने आलेख को जो आकर दिया है , जो डिज़ाइन दिया है उससे नाटक का भाव दर्शक तक बहुत ही प्रभावशाली अंदाज़ में जाता है । जलील रिज़वी और नूतन रिज़वी ने एक साथ मंच साझा कर मंच की ज़मीन को आसमान कर दिया । नूतन रिज़वी के अभिनय में जो मंच की तकनीक समाहित थी , संवादों की अदायगी में नाइंसाफी का जो दर्द झलका , मंच पर उनके शरीर संचालन में उनके अनुभव का जो पुट रहा उसने प्रस्तुति को उस मुकाम पर पहुंचाया जिसकी उम्मीद निर्देशक करता है । आयु की आय से समृद्ध होती जा रही नूतन रिज़वी के अभिनय में जवानी अपने चरम पर है। उसी प्रकार जलील रिज़वी ने निर्देशन और अभिनय की दोहरी ज़िम्मेदारी हमेशा की तरह सफलता के साथ निभाई । निर्देशक रिज़वी अभिनेता रिज़वी से टकराता नहीं है , अन्य अभिनेताओं को नाटक में पूरा स्पेस दिया गया है । अभिनय ही एक नाटक की सफलता और असफलता तय करता है , अभिनेता ही लेखक और निर्देशक के काम का परिणाम दर्शाता है , अभिनेता तभी सकारात्मक परिणाम देगा जब निर्देशक उसे तन्मयता से तराशेगा । जिन नाटकों में निर्देशक स्वयं अभिनय कर रहे हो उन नाटकों में छोटी भूमिका करने वाले पात्र पर निर्देशक की निगाहें करम कम होने का रिस्क रहता है पर कोमल गांधार में निर्देशक जलील रिज़वी ने अभिनेता जलील रिज़वी को ज़रूरत से ज़्यादा तवज्जों नहीं दिया है बाकी कलाकार भी पूरी तरह नवाज़े गए है । मंच पर रिज़वी दम्पत्ति का आपसी तालमेल गज़ब का प्रभाव पैदा करता है , यह एक प्रकार से अभिनय की जुगलबंदी है जो लम्बी साधना से संभव होती है , जब परिश्रम और इमानदारी का प्रतिशत बराबर रहता है तब कोमल गांधार सफल होता है , तब लेखक की परिकल्पना सार्थक होती है , तब कथा में समाहित विचार उभर कर प्रगट होता है , तब जिस समय दर्शक मंच वालो के सम्मान में ताली बजाता है तब खपा दी गई उम्र और लुटा दी गई राशि मानो सूद सहित लौट आती है |
रायपुर का रंगमंच प्रकाश व्यवस्था में मासूम
गांधारी और धृतराष्ट्र की प्रमुख भूमिका में क्रमशः जलील रिज़वी और नूतन रिज़वी के अतरिक्त युवा गांधारी सौम्या रिज़वी , भीष्म – प्रकाश खांडेकर , संजय- शेखर शुक्ला ने नाटक के प्रभाव को बनाए रखने अच्छी हिस्सेदारी निभाई | दासी – वीणा पंडवार और दुर्योधन – आर्यमन सिंग ने अपनी आंतरिक पीड़ा को व्यक्त करने में अपनी उपस्थति का अच्छा अहसास कराया । प्रकाश व्यवस्था के मामले में रायपुर का रंगमंच बहुत मासूम है । कोई भी नाट्य दल जब तक लाईट में रिहर्सल नहीं करेगा , तब तक अभिनेता और प्रकाश व्यवस्थापक एक-दूसरे को कवर नहीं कर सकेंगे । रायपुर में तो नाटक शुरू होने के दस मिनट पहले तक लाईट लगाने का काम ही पूरा नहीं हुआ होता है । प्रकाश के मामले में अभी हम अँधेरे में है , रंगमंच के इस क्षेत्र में हमे गंभीर होना होगा । नाटक की कथा वस्तु के अनुसार संगीत और प्रकाश पर बहुत ज़्यादा काम किया जा सकता था जो नहीं किया गया । नाटक छत्तीसगढ़ शासन के मुक्ताकाशी मंच पर हुआ , यदि नाटक वही के मिनी थियेटर में होता तो अपने होने से तीस प्रतिशत और बेहतर होता । यह मंच नाटकों के लिए उपयुक्त नहीं है । अगर इस मंच पर नाटक होते रहे तो एक दिन यह मंच नाटको का कब्रगाह बन जा जाएगा ।