पकंज स्वामी, इंदौर स्टूडियो। एकल नाटक ‘रेड फ्रॉक’ में एक घंटे तक अपने बेहतरीन अभिनय से आलोक चटर्जी ने एक बार फिर साबित किया कि वे हमारे समय के सबसे सक्षम और विद्वान अभिनेता हैं। नाटक में उनके संवाद, उनका अभिनय और कविता वाचन ने दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया। आशीष पाठक ने इस नाटक का लेखन और निर्देशन किया है। आलोक नाटक के मूल संदेश को बड़ी गहराई से संप्रेषित करने में सफल रहे। नाटक इंसानी दोहरेपन और पाखंड की परतें उधेड़कर रख देता है। प्रकाश जाधव पितृसत्ता का प्रतीक: यह नाटक एक सिद्धांतवादी व्यक्ति प्रकाश जाधव की कहानी है। प्रकाश जाधव जीवन में दोहरे मापदंड से बचने की कोशिश करता है। कहता है कि वह जीवन में कभी कोई समझौता ही नहीं करता। प्रकाश जाधव के इस सिद्धांत की भिड़ंत अपने पिता और घर से ही शुरु होती है। वह अपनी प्रगतिशीलता में किसी भी हद तक जाता है। परंतु जब उसका टकराव बेटी रागिनी से होता है। तब उसके रूढ़िवादी दृष्टिकोण और पाखंड का पर्दाफ़ाश होता है। उसकी प्रगतिशीलता की परतें उधड़ जाती हैं। प्रकाश जाधव जिस पितृसत्ता से भिड़ता रहा, उसी का वह एक प्रतीक बनकर उभरता है।
ज्वार की तरह चढ़ गया दोमुंहापन: नाटक की शुरूआत का एक संवाद है -‘’अपने सारे जीवन में जिस एक चीज से मैं बचने की कोशिश करता रहा। वो था – दोहरे मापदंड। एक सामान्य सिद्धांत अपनाया तो दृढ़ता से उसका पालन किया, कष्ट भी सहे, लेकिन एक बार ज्वार की तरह चढ़ आया, दोमुंहापन और उससे खुद को बचा नहीं पाया, मैं।‘’ यह संवाद ही पूरे नाटक की आधारशिला है। समझदार दर्शक समझ जाते हैं कि नाटक अंत में किस चरमोत्कर्ष पर पहुंचेगा।
एक घंटे तक प्रभावशाली अभिनय: लगभग 60 मिनट के इस नाटक में आलोक चटर्जी ने एकल अभिनय के माध्यम से प्रकाश जाधव के बाल जीवन, युवावस्था, पति और फिर पिता की भूमिका में अभिनय के विविध आयाम प्रस्तुत किये। इसके साथ ही उन्होंने यह सिद्ध किया कि वे समकालीन हिन्दी रंगमंच के सबसे सक्षम अभिनेता क्यों हैं। पूरे नाटक में ओवरलाउड होने के कई प्रसंग हैं लेकिन आलोक चटर्जी का अनुभव और सिद्धता है कि वे इस चालबाजी से अपने को बचाकर रखते हैं।
कविताओं का भी बेहतरीन वाचन: नाटक में विषय वस्तु को सुदृढ़ता देने के लिए दुष्यंत कुमार, कात्यायनी, मनजीत तिवाड़ा सहित कुछ कवियों की कविताओं का प्रयोग किया गया है। इन कविताओं का वाचन आलोक चटर्जी ने जिस सहजता व सरलता से किया है, वह वाकई में रंगमंच के अभिनेताओं को सीखना चाहिए। संवाद से कविताओं में आते हुए आलोक चटर्जी का प्रवाह देखने लायक है। आलोक चटर्जी को जितनी कविता की समझ है, उतनी भारतीय रंगकर्म में किसी कलाकार की नहीं है। उन्होंने 80 से ज्यादा लंबी कविताओं का नाट्य मंचन किया है।
आशीष पाठक की दोहरी सफलता: ‘रेड फ्रॉक’ में आशीष पाठक लेखन और निर्देशक के दोनों रूप में सफल रहे हैं। उनकी पहली सफलता तो यही है कि आलोक चटर्जी ने उन पर विश्वास व्यक्त किया। आशीष पाठक ने अपनी सोच को स्क्रिप्ट में तब्दील करने में कविताओं को जो प्रयोग किया है, वह सराहनीय है। उनके संवाद चुटीले हैं। दर्शक ध्यान से एक एक संवाद सुनना चाहता है। संवादों में व्यंग्य है और देश की समकालीनता की विसंगतियों पर करारा प्रहार भी।
‘पॉपकार्न’ के बाद लिखा ‘रेड फ्रॉक’: आपको बता दें, आशीष पाठक ने अपने पहले नाटक ‘पॉपकार्न’ के बाद वर्ष 2009 में ‘रेड फ्रॉक’ लिखा था। लोकप्रिय तत्व होने के कारण ‘पॉपकार्न’ देश भर के रंग समूह द्वारा मंचित किया गया और नाटक ने लोकप्रियता हासिल की। वहीं ‘रेड फ्रॉक’ को मंचित करने के कई प्रयास हुए लेकिन अधिकांश सफल नहीं हो सके। यह पहला मौका है जब यह नाटक आलोक चटर्जी की बेहतरीन अदाकारी से दर्शकों के दिलो दिमाग में बड़ी गहराई से उतर सका।
नाटक में प्रतीकों का बखूब उपयोग: नाटक का एक संवाद-‘’घर में दो डस्टबिनों के साथ मैं अकेला पड़ गया।‘’ प्रतीक में अपनी बात कहता है। नाटक के संवाद में प्रतीकों का खूब उपयोग किया गया है। आशीष पाठक ने देश की सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक परिस्थितियों को नाटक की विषय वस्तु में में पिरोया है। आशीष पाठक ने मिठाई के डिब्बे को प्रतीक के रूप में विभिन्न तरीके से प्रयुक्त किया है। प्रकाश जाधव के पिता के समय मिठाई का डिब्बा रिश्वत के पैसे के रूप में प्रयुक्त होता है तो वृद्धावस्था में बेटी की तनख्वाह रखने के लिए वह डस्टबिन से एक मिठाई डिब्बा निकाल लेता है।
जाधव का प्रभावशाली एकालाप: नाटक के अंत में प्रकाश जाधव का एकालाप अत्यंत प्रभावशाली है। ‘’निन्यान्वे के सांप के ज़हर से नीले हो गए तुम..रंग छोड़ देने वाली लाल फ्रॉक ! अपने दो मुंहेपन के नीले रंग को ढंक लिया मैंने उस लाल फ्रॉक से।‘’ नाटक के अंत में प्रकाश जाधव का कान पकड़ कर दर्शकों के समक्ष बोलना – मैं बदतमीज प्रकाश / बिगड़ैल प्रकाश / शांत प्रकाश / बेहद शांत प्रकाश / प्रगतिशील प्रकाश / पाखंडी प्रकाश….। यह संवाद ही नाटक का सार है। आशा है कि ‘रेड फ्रॉक’ भविष्य में देश भर में मंचन होंगे और लोग जीवन के दोहरे मापदंड को समझ सकेंगे।
संगीत नाटक अकादमी द्वारा सम्मानित अभिनेता: आपको बता दें 65 वर्षीय आलोक चटर्जी को अभिनय में उनके योगदान के लिये साल 2019 के लिये संगीत नाटक अकादमी के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रदान किया। आलोक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से स्वर्ण पदक विजेता चटर्जी रहे। उन्होंने 1982 से 1984 तक भारत भवन में बतौर अभिनेता काम किया। NSD से स्नातक करने के बाद उन्होंने 1888 से 1990 तक रंगमंडल में बतौर अभिनेता काम किया। चटर्जी तीन साल तक एमपी स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक रहे। आप डेथ ऑफ ए सेल्समैन, नट सम्राट आदि जैसे अपने सीमा चिन्ह प्रॉडक्शन में बेहतरीन अभिनय के लिये जाने जाते हैं। उन्होंने NSD और FTII में पढ़ाया भी है। आगे पढ़िये – पीयूष मिश्रा के युवा और विद्रोही स्वर वाले गीतों ने फिर जीता दिल – https://indorestudio.com/piyush-mishra-ke-yuva-geet/