‘रिटर्न टू पांडिचेरी’ में पहचान के बढ़ते सकंट का दर्द

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अजित राय, इंदौर स्टूडियो। दक्षिणी फ्रांस के ऐतिहासिक शहर सेंट ट्रोपे में हाल ही में निर्वाण फिल्म फेस्टिवल का आयोजन हुआ।  इस फेस्टिवल का शुभारंभ रघुनाथ मनेत की फ्रेंच फिल्म ‘रिटर्न टु पांडिचेरी’ के प्रीमियर से किया गया। यह फिल्म उन अनाथ बच्चों की कहानी है जिनकी पहचान का सकंट एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। फिल्म में रूबी नाम की एक ऐसी ही लड़की है जिसे जवान होने पर अपने माता-पिता की याद सताने लगती है। वह उनकी तलाश में फ्रांस से पांडिचेरी लौटती है। रघुनाथ की यह पहली फीचर फ़िल्म: यह रघुनाथ की भी पहली फीचर फिल्म है। इससे पहले वे ‘डांस आफ शिवा’ नामक वृत्त चित्र और दो शार्ट फिल्में – कर्मा और योग सेवेंथ चक्र बना चुके हैं। रघुनाथ मनेत भारतीय मूल के फ्रेंच वीणा वादक और नर्तक (भरतनाट्यम) है और पेरिस में रहते हैं। वे यहां फ्रेंच युवाओं को भारतीय नृत्य और संगीत की शिक्षा देते हैं। इस फिल्म में केवल एक ही पेशेवर कलाकार हैं फ्रेंच अभिनेत्री मारियान बोर्गो जिन्होंने बहुत उम्दा काम किया है। बाकी सभी दूसरे लोग ऐसे हैं जिन्होंने जिंदगी में कभी अभिनय नहीं किया है और यह उनकी पहली फिल्म है।अंग्रेज़ी से ज़्यादा फ्रेंच भाषा का प्रयोग: अच्छी बात यह थी कि सारी कार्यवाही फ्रेंच में हुई और अंग्रेजी भाषा का कम से कम प्रयोग किया गया। दूसरी फिल्मों में पिछले साल भारत से ऑस्कर पुरस्कार की आधिकारिक प्रविष्ठि जे एंथनी जोसेफ की मलयाली फिल्म ‘2018 – एवरीवन इज ए हीरो ‘, लीना यादव की हिंदी फिल्म ‘पार्च्ड ‘ और आशुतोष गोवारिकर की हिंदी फिल्म ‘स्वदेश’ फ्रेंच सबटाइटल्स के साथ दिखाई गई। इन सभी फिल्मों के निर्देशक भी यहां मौजूद थे। ‘रिटर्न टु पांडिचेरी’ में पहचान का संकट: रघुनाथ मनेत की फिल्म ‘रिटर्न टु पांडिचेरी’ विदेशियों द्वारा भारतीय अनाथ / गरीब बच्चों को गोद लेने, उन बच्चों की पहचान के संकट (आइडेंटिटी क्राइसिस), डांस थैरैपी, भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिकता, शास्त्रीय नृत्य आदि पर एक साथ बात करती है। फिल्म का एक सबसे सशक्त पक्ष उसकी सिनेमैटोग्राफी है। वेलु प्रभाकरण का कैमरा पांडिचेरी के खूबसूरत समुद्र, वहां की गलियां और जन जीवन के साथ चरित्रों के मनोभावों को भी प्रभावी ढंग से दिखाता है। वैसे तो फिल्म में अक्सर भगवान शिव को समर्पित नृत्य के माध्यम से दैनंदिन दुःखों से मुक्ति के प्रसंग भरे पड़े हैं, पर कभी कभी दिल का दर्द आंसू बनकर निकल हीं आता है। फिल्म का हर चरित्र सीने में दर्द को दबाए,अपनी जीवन यात्रा में लीन हैं। यह फिल्म मनुष्य के सांस्कृतिक पहचान की खोज को केंद्र में लाती है।रूबी के सामने पहचान का संकट: फिल्म में हम देखते हैं कि रघुनाथ मनेत पांडिचेरी में अनाथ बच्चों का एक नृत्य स्कूल चलाते हैं। वहां रह रही दस साल की एक अनाथ बच्ची रूबी को फ्रांस की दो संभ्रांत और अमीर औरतें, मारियान बोर्गो और केरीन, गोद लेती हैं । उसे लेकर पेरिस आ जाती है। पेरिस में रूबी, मारियान और केरीन खुश हैं और यहाँ किसी चीज की कमी नहीं है। समस्या तब खड़ी होती है, जब रूबी बीस साल की होती हैं और उसे अपनी पहचान के संकट से गुजरना पड़ता है। उसकी यादों में बचपन के दृश्य कौंधने लगते हैं। वह अपनी दत्तक माताओं से कहती हैं कि उसे उसके अपने शहर पांडिचेरी जाना है और अपने वास्तविक माता-पिता से मिलना है।पांडेचेरी में बदलती है रूबी की दुनिया: मारियान और केरीन उसे लेकर पांडिचेरी आती है। रघुनाथ मनेत के नृत्य स्कूल में आते ही रूबी की दुनिया बदलने लगती है। यहां उसे पता चलता है कि वह एक खानाबदोश (जिप्सी) मां की संतान हैं। उसकी मां उसे रघुनाथ मनेत के अनाथालय के दरवाजे पर छोड़ गई थी। यहां उसकी दोस्ती एक युवक से होती है, पर उसका प्रेम उसे कोई राहत नहीं दे पाता। दूसरी ओर उसके बचपन का दोस्त दस साल से उसका इंतजार कर रहा है। यहां हम फ़्लैश बैक में उन दोनों के बचपन की कुछ अद्भुत छवियां देखते हैं। रूबी का गुरू के प्रति बढ़ता है आकर्षण: थोड़ी देर के लिए रूबी अपने नृत्य गुरु रघुनाथ के प्रति भी आकर्षित होती है पर वहां भी उसे निराशा ही हाथ लगती है। रघुनाथ शिव की नृत्य अराधना में इतना डूब चुका है कि उसके जीवन में किसी दूसरे के लिए कोई जगह नहीं बची है। अंततः रूबी की दोनों दत्तक माएं निराश होकर पेरिस लौट रहीं हैं और अंतिम दृश्य में हम देखते हैं कि रूबी अपने बचपन के दोस्त के साथ मोटरसाइकिल पर कहीं जा रही है।सेंट ट्रोपे में भारतीय संस्कृति का फेस्टिवल: दक्षिणी फ्रांस के समुद्री शहर सेंट ट्रोपे में भारतीय संस्कृति का निर्वाण फिल्म फेस्टिवल होना बहुत मायने रखता है। यह छोटा सा शहर दुनिया भर के सेलेब्रिटी को आकर्षित करता रहा है। यहा के बंदरगाह पर दुनिया भर के अमीरों के निजी जहाज लंगर डाले दिख जाएंगे। यहां हॉलीवुड और यूरोप की कई बड़ी फिल्मों की शूटिंग होती रहीं हैं। इस शहर से दिग्गजों को प्यार: विश्व प्रसिद्ध चित्रकार पिकासो से लेकर आधुनिक चित्रकारों तक,अर्नेस्ट हेमिंग्वे से लेकर ज्यां पाल सार्त्र जैसे लेखक, आर्सन वेल्स, मोनाको की महारानी और हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री ग्रेस कैली से लेकर लियोनार्डो डिकैप्रियो, क्वेंटिन तारंतिनों और आज के सुपरस्टार टाम क्रूज़ तक ने इस शहर को बहुत प्यार दिया है। इन सारी भव्यता के बीच इस शहर में फ्रेंच कमांडर ज्यां फ्रांसुआ अलार्ड और हिमाचल की राजकुमारी बन्नू पान देई की प्रेम कहानी यहां आज भी सांस ले रही है। (अजित राय प्रख्यात फिल्म और कला समीक्षक हैं। दुनिया के प्रमुख फिल्म उत्सवों को वर्षों से कवर कर रहे हैं। साथ ही एक रचनात्मक व्यक्तित्व के रूप में कला के विविध क्षेत्रों में अपना विशिष्ट योगदान दे रहे हैं।) आगे पढ़िये – भोपाल में सौ से ज़्यादा बच्चों के पाँच नाटक – https://indorestudio.com/bhopal-me-100-se-adhik-bachcho-ka-natak/

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